यहां माहवारी के दौरान महिला को काटती है मधुमक्खी?
तेलंगाना के एक मंदिर में इस तरह का अंधविश्वास है. माहवारी में महिलाओं का मंदिर में प्रवेश वर्जित हैअगर मंदिर की तरफ जाते हुए किसी महिला को मधुमक्खी काट लेती है तो उसके आस पास मौजूद पुरुष यह समझने लगते हैं कि इस महिला की माहवारी (पीरियड्स) चल रही है और तब वे पुरुष उस महिला पर चीखने-चिल्लाने लगते हैं.अगर महिलाएं माहवारी के वक्त मंदिर में जाएंगी तो मंदिर अशुद्ध हो जाएगा.
यहां के लोगों के बीच एक मान्यता है कि जब किसी महिला को मासिक धर्म यानी माहवारी चल रही होती है, तब उसे मधुमक्खी काट लेती है.
अगर मंदिर की तरफ जाते हुए किसी महिला को मधुमक्खी काट लेती है तो उसके आस पास मौजूद पुरुष यह समझने लगते हैं कि इस महिला की माहवारी (पीरियड्स) चल रही है और तब वे पुरुष उस महिला पर चीखने-चिल्लाने लगते हैं.
माहवारी के दौरान महिलाओं को मंदिर में जाने की अनुमति नहीं दी जाती और यह समझा जाता है कि अगर महिलाएं माहवारी के वक्त मंदिर में जाएंगी तो मंदिर अशुद्ध हो जाएगा.
मिथक से जुड़ी कहानी
मंदिर के पुराने शास्त्रों को देखने पर ये मिथक से जुड़ी कहानी मालूम पड़ती है. मंदिर के प्रमुख देवता के रूप में विष्णु के अवतार श्री महाविष्णु की पूजा की जाती है.
कहानी के अनुसार क़रीब 1500 साल पहले श्री महाविष्णु की शादी रंगा नाम की एक आदिवासी महिला से हो गई और उसका नाम रंगनायक हो गया.
मंदिर में जो तालाब है वह देवता ने पानी पीने के लिए ख़ुद बनाया जिसे नेमालिगुंदम कहा जाता है.
स्थानीय लोगों का यह मानना है कि मधुमक्खियाँ माहवारी के दौरान मंदिर में प्रवेश कर रहीं महिलाओं को काटकर मंदिर की पवित्रता बचाए रखने में सहयोग देती हैं.
लोगों के बीच फैले इसी मिथक को जानने के लिए हमने मंदिर का दौरा किया और वहां गांववालों और मंदिर के पुजारी से भी बात की.
लोगों के बीच फैला अंधविश्वास
श्रीनिवास राजू नाम के एक भक्त ने एक पुरानी घटना को याद करते हुए कहा कि यह बात बिल्कुल सही है, जब महिलाएं माहवारी के दौरान मंदिर में आती हैं तो मधुमक्खी उन्हें काट लेती है. वे बताते हैं कि जब उनकी साली अपनी माहवारी के दौरान मंदिर के करीब आईं तो उन पर मधुमक्खियों ने हमला कर दिया था.
इसी बारे में जब महिलाओं से बात की गई तो उन्होंने बताया कि वे भी माहवारी के दौरान मंदिर में जाने से बचती हैं क्योंकि उन्होंने देखा है कि मधुमक्खियों ने उन महिलाओं पर हमला किया है जो माहवारी के वक्त मंदिर में गईं. महिलाएं बताती हैं कि ये मधुमक्खियां उन पुरुषों को भी काट लेती हैं जो माहवारी वाली महिलाओ के साथ मंदिर में आ रहे होते हैं.
जब मंदिर के पुजारी से पूछा गया कि आख़िर माहवारी के दौरान महिलाओं को मंदिर में क्यों नहीं आने दिया जाता, तो पुजारी ने कहा कि इस दौरान महिलाओं के शरीर की गंदगी खून के रूप में बाहर निकल रही होती है. जिस तरह बेडरूम और किचन में मूत्रविसर्जन करना वर्जित होता है वैसे ही माहवारी के दौरान महिलाओं को भी मंदिर में नहीं आने दिया जा सकता. पुजारी का मानना है कि इस तरह की प्रथाओं को मानने की यही प्रमुख वजहें हैं.
कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं
इसके बाद पुजारी इस बात पर ज़ोर देते रहे कि अगर किसी महिला ने माहवारी के दौरान मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश भी कि तो मधुमक्खियों ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया.
इसी इलाक़े में अंधविश्वासों को दूर करने की कोशिश कर रहे एक संगठन जन विज्ञान वेदिका का कहना है कि मधुमक्खियों के काटने और महिलाओ के माहवारी में कोई संबंध नहीं है यह महज अंधविश्वास है.
इस संगठन की सदस्य सृजना ने कहा कि ऐसे भी कई मौक़े आए हैं जब मधुमक्खियों ने पुरुषों पर भी हमला किया है
वे कहती हैं कि विज्ञान में इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि माहवारी के दौरान महिलाओं को मधुमक्खियां काट लेती हैं.
वे आगे बताती हैं कि एक स्कूल के पास पेड़ों पर मधुमक्खियों के बहुत से छत्ते हैं लेकिन जब कभी वे वहां जाती हैं तब तो किसी मधुमक्खी ने उन्हें नहीं काटा.
वे मानती है कि महिलाओं को माहवारी के दौरान मंदिर में प्रवेश ना करने के लिए इस तरह की बातें प्रचलित की गई हैं, क्योंकि समाज में यह डर रहता है कि अगर माहवारी के दौरान महिला ने मंदिर के तालाब में स्नान कर लिया तो तालाब का पानी गंदा हो जाएगा.
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