अमेरिका में हिंदुत्व ! क्या मंदिरों में पूजा करने वाली बहू ट्रंप को बनाएगी दोबारा राष्ट्रपति ?
नई दिल्ली। क्या हिन्दुत्व अब अमेरिका में भी चुनावी मुद्दा होगा ? एक दशक पहले इस सवाल पर अमेरिका में हैरानी हो सकती थी लेकिन अब नहीं। 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने पहली बार हिंदुत्व का कार्ड खेला था। ट्रंप ने नये मतदाता समूहों को जोड़ कर ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। 2020 में भी ट्रंप यही करने वाले हैं। उन्होंने 2020 की चुनावी तैयारी के लिए उस बहू को सीनियर एडवाइजर बना रखा है जो मंदिरों में पूजा भी करती है। ट्रंप को दोबारा राष्ट्रपति बनाने के लिए उनकी यह बहू चुनाव अभियान का खाका तैयार कर रही है। विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी को भी लगता है कि ट्रंप की कामयाबी में हिंदुत्व एक फैक्टर रहा है। इस लिए डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता और अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी गबार्ड भी राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ना चाहती हैं। 2016 में जब राष्ट्रपति बराक ओबामा की व्हाइट हाउस से विदाई हो रही थी तब उन्होंने कहा था कि भविष्य में एक दिन ऐसा भी हो सकता है कि कोई हिंदू अमेरिका का राष्ट्रपति बन जाए।
अमेरिका में हिंदू
एक आकलन के मुताबिक अमेरिका में हिंदू समुदाय की आबादी करीब 32 लाख है। हिंदू यहां अल्पसंख्यक हैं लेकिन योग्यता और आमदनी के मामले में वे अन्य धार्मिक समुदायों से बहुत आगे हैं। अमेरिका में पहले यहूदी समुदाय को ये गौरव हासिल था। झान और धन में सर्वोपरी रहने वाले यहूदियों का पहले अमेरिका में दबदबा था। इसकी वजह से ही अमेरिका, इजरायल( एक मात्र यहूदी राष्ट्र) का सबसे बड़ा संरक्षक है। अब हिंदू समुदाय की क्षमता भी यहूदियों के आसपास पहुंच गयी है। हिंदू और यहूदी अमेरिका की सबसे शिक्षित आबादी है। अमेरिका की 36 फीसदी हिंदू परिवारों की सालाना आमदनी एक लाख अमेरिकी डॉलर से अधिक है। अमेरिकी की आर्थिक और वैज्ञानिक तरक्की में भी हिंदू समुदाय की अहम भूमिका है। अल्पसंख्यक होते हुए भी हिंदुओं की स्थिति यहां बहुत प्रभावशाली है। इससे हाल के दिनों में इनका राजनीति महत्व बढ़ा है। माना जा रहा है कि 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में हिंदू वोटरों को रिझाने के लिए खूब जोड़ तोड़ होगी।
शलभ ने दिया था ट्रंप को 10 लाख डालर का चंदा
भारतीय मूल के अमेरिकी उद्योगपति शलभ कुमार ने 2016 में ट्रंप को 10 लाख डालर (करीब छह करोड़ रुपये) का चंदा दे कर राजनीतिक हलचल मचा दी थी। हरियाणा के रहने वाले शलभ पेशे से इंजीनियर हैं जिन्होंने अब अमेरिका में बड़ा बिजनेस खड़ा कर लिया है। वे रिपब्लिकन हिंदू कोलिजन के संस्थापक हैं। उन्होंने दावा किया था कि उनकी कोशिशों से 65 फीसदी हिंदुओं ने ट्रंप को वोट किया था। माना जाता है कि ट्रंप को राष्ट्पति बनाने में शलभ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।
मंदिरों में पूजा करने वाली ट्रंप की बहू
डोनाल्ड ट्रंप ने तीन शादियां की हैं और उनके पांच बच्चे हैं। ट्रंप की पहली शादी ओलंपिक खिलाड़ी इवाना से हुई थी जिनसे तीन बच्चे हुए - डोनाल्ड ट्रंप जूनियर, इवांका ट्रंप और एरिक ट्रंप। एरिक ट्रंप की पत्नी का नाम है लारा ट्रंप। पत्रकारिता और टेलीविजन की दुनिया में नाम कमाने के बाद लारा अपने ससुर डोनाल्ड ट्रंप के राजनीति कार्यों में सहयोगी बन गयीं। 2016 में राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान ही दीपावली का त्योहार था। कारोबारी से नेता बने ट्रंप पहली बार चुनावी मैदान में थे। हिलेरी क्लिंटन के मुकाबले ट्रंप की उम्मीदवारी बहुत कमजोर मानी जा रही थी। ट्रंप की टीम आलोचना से परे अपना काम कर रही थी। चुनावी रणनीतिकारों में कुछ भारतीय भी थे। उन्होंने भारतीय समुदाय के वोट के लिए खास रणनीति बनायी। ट्रंप को सलाह दी गयी कि वे हिंदुओं को रिझाने के लिए उनके त्योहारों में शरीक हों। इसी रणनीति के तहत अक्टूबर 2016 में ट्रंप की बहू लारा, वर्जिनिया के एक मंदिर में पहुंच गयीं। उन्होंने मंदिर के बाहर जूते उतारे, सिर को ढका और दीपावली की पूजा में शामिल हुईं। उस समय लारा ने एक कुशल राजनेता की तरह कहा था, मुझे हिंदू संस्कृति बहुत पसंद है और मैं इसका बहुत सम्मान करती हूं। अमेरिका के चुनावी इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि राष्ट्रपति पद के प्रमुख उम्मीदवार का कोई संबंधी पूजा करने के लिए मंदिर में गया। अक्टूबर 2019 में डोनाल्ड ट्रंप ने खुद व्हाइट हाउस में दिवाली मनायी थी।
डेमोक्रेटिक भी होड़ में
ट्रंप की कामयाबी देख कर डेमोक्रेटिक पार्टी भी इस होड़ में शामिल हो गयी है। अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी गबार्ड डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता हैं। उनकी नजर भी हिंदू वोट बैक पर है। उन्होंने डेमोक्रेटिक उम्मीदवार बनने के लिए पार्टी में भी इसी आधार पर दावा पेश किया है। तुलसी की उम्र केवल 39 साल की है। वे हिंदू मां और ईसाई पिता की संतान हैं। तुलसी बचपन से हिंदू धर्म की अनुयायी हैं। 2012 में वे अमेरिकी संसद की सदस्य चुनी गयीं। सांसद बनने के बाद उन्होंने हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ गीता पर हाथ रख कर शपथ ली थी। ऐसा करने वाली अमेरिकी की वे पहली नेता हैं। तुलसी अभी युवा हैं और खुद को लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित कर रही हैं। वे राजनीति में आने से पहले अमेरिकी सेना में थीं। हालांकि तुलसी को अभी लंबा रास्ता तय करना है। डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार कौन होगा, यह चुनाव से तय होगा। तुलसी को अलावा कमला हैरिस, पूर्व उप राष्ट्रपति जो बिडेन, एलिजाबेथ वारेन समेत करीब बारह नेता इस होड़ में हैं।