अयोध्या फैसला: तीन गुंबद वाले ढांचे में सदियों से प्रार्थना करते आए हैं हिंदू
नई दिल्ली। दशकों पुराने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने फैसला सुना दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिंदू मुख्य गुंबद को ही राम जन्म का सही स्थान मानते हैं। रामलला ने ऐतिहासिक ग्रंथों के विवरण रखे, हिंदू परिक्रमा भी किया करते थे। चबूतरा, सीता रसोई, भंडारे से भी दावे की पुष्टि होती है।
अंग्रेजों द्वारा दीवार के निर्माण और आंतरिक गुंबद के करीब रामचबूतरे की स्थापना के बावजूद, हिंदू तीन-गुंबददार ढांचे के अंदर प्रार्थना करने के अपने अधिकार का दावा करते रहे। कोर्ट ने कहा कि ब्रिटिश सरकार ने वहां हिंदुओं के अधिकार को मान्यता दी थी। 1877 में उनके लिए एक और रास्ता खोला गया था। अंदर के चबूतरे पर कब्जे को लेकर काफी विवाद रहा है। साल 1528 से 1556 के बीच मुसलमानों ने वहां नमाज पढ़े जाने का कोई सबूत पेश नहीं किया।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि बाहरी चबूतरे पर मुसलमानों का कब्जा कभी नहीं रहा है। सुन्नी वक्फ बोर्ड इस स्थान के इस्तेमाल का सबूत नहीं दे पाया है। बाहरी चबूतरे पर हमेशा से हिंदुओं का ही कब्जा रहा है। ऐतिहासिक यात्रा वृतांतों से भी यही पता चलता है कि सदियों से मान्यता रही है कि अयोध्या ही राम का जन्मस्थान है।
कोर्ट ने कहा कि हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों की गवाही से पता चलता है कि राम नवमी, सावन झूला, कार्तिक पूर्णिमा, परिक्रमा मेला और राम विवाह जैसे धार्मिक अवसरों और त्योहारों पर, हिंदू भक्तों की बड़ी संख्या दर्शन के लिए विवादित परिसर का दौरा करती थी। 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद मुगल शासन समाप्त होने के बाद ब्रिटिश न्याय व्यवस्था लागू हुई थी।
जब ब्रिटिश सरकार ने रेलिंग लगाई
साल 1855 में ब्रिटिश सरकार ने रेलिंग लगा कर हिंदुओं को अंदर जाने से रोक दिया था। जिसके बाद भी हिंदू रेलिंग के बाहर से दर्शन करते थे। 1855 के बाद ही वहां बिल्कुल पास में राम चबूतरा बनाया गया, जहां पूजा की जाने लगी। राम चबूतरे का अंदर के केंद्रीय गुंबद के बिल्कुल नजदीक होने से इस बात का पता चलता है कि हिंदुओं की उस जगह को लेकर आस्था थी। वे रेलिंग के बाहर से अंदर झांक कर दर्शन करते थे, ताकि उन्हें ये महसूस हो सके कि वे अंदर ही पूजा कर रहे हैं।
इसके अलावा मुस्लिम गवाहों ने भी मस्जिद के अंदर और बाहर दोनों जगह हिंदू धार्मिक महत्व के प्रतीकों की उपस्थिति को स्वीकार किया है। उनमें से, तीन गुंबददार संरचना के बाहर वराह, जय-विजय और गरुड़ का चित्रण है। ये बात केवल आस्था और विश्वास की नहीं है, बल्कि यहां सदियों से पूजा होती आई है।
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