पाकिस्तान में हिंदू-क्रिश्चियन असुरक्षित, वहां की धार्मिक आजादी पर UN की संस्था ने जताई चिंता
नई दिल्ली- भारत में बने नए नागरिकता कानून के बीच संयुक्त राष्ट्र की एक संस्था की रिपोर्ट आई है, जिसमें पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों की आजादी को लेकर गहरी चिंता जताई गई है। इस संस्था ने साफ कहा है कि इमरान खान सरकार के कार्यकाल में 'उग्रवादी मानसिकता' वाले लोगों का प्रभाव बहुत बढ़ गया है, जो धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा निशाने पर हिंदू और क्रिश्चियन महिलाओं और लड़किया हैं, जिनका जबरन धर्मांतरण कराकर उनसे जबरिया शादी की जा रही है। यूएन की संस्था ने इन हालातों के लिए इमरान सरकार की ईश निंदा कानूनों को जिम्मेदार ठहराया है, जिसके कारण वहां धार्मिक कट्टरपंथियों के हौसले बहुत ज्यादा बुलंद हो चुके हैं।
ईश-निंदा कानूनों के चलते अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न
संयुक्त राष्ट्र की संस्था के मुताबिक इमरान खान नियाजी की तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी की सरकार ने भेदभाव वाले विधेयक पास करवाकर 'उग्रवादी मानसिकता' वाले लोगों को बढ़ावा दिया है, जिसके कारण धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। इमरान के शासन के दौरान धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति लगातार खराब हो रही है। 'पाकिस्तान रिलिजियस फ्रीडम अंडर अटैक' नाम की 47 पेज की रिपोर्ट में यूएन कमीशन ऑन द स्टैटस ऑफ वुमेन ने ईश निंदा कानूनों और अहमदिया-विरोधी विधेयको के कारण कट्टरपंथियों के हौसले बढ़ने पर चिंता जाहिर की गई है। रिपोर्ट के मुताबिक इन कानूनों के चलते मुस्लिम संगठन न सिर्फ धार्मिक अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न कर रहे हैं, बल्कि इसका इस्तेमाल राजनीतिक जमीन तैयार करने में भी कर रहे हैं। यह आयोग यूएन इकोनॉमिक एंड सोशल काउंसिल के अधीन है।
हिंदू और क्रिश्चियन सबसे ज्यादा पीड़ित
संयुक्त राष्ट्र की संस्था ने पाया है कि मुस्लिम देश पाकिस्तान में खासकर हिंदू और क्रिश्चियनों का उत्पीड़न हो रहा है और उनमें भी सबसे ज्यादा महिलाओं और लड़कियों को निशाना बनाया जा रहा है। रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा किया गया है कि, 'हर साल सैकड़ों को अगवा करके धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर किया जाता है और मुस्लिम पुरुषों से शादी के लिए बाध्य कर दिया जाता है। पीड़िताओं को अपने परिवार के पास लौटने की न के बराबर उम्मीद होती है, क्योंकि अपहरणकर्ताओं की ओर से गंभीर परिणाम भुगतने और लड़की और उनके परिवार वालों को नुकसान पहुंचाने की धमकियां दी गई होती हैं। उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं करने की पुलिस की इच्छा, न्यायिक प्रक्रिया की खामियों और पुलिस-न्यायपालिका दोनों का धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभाव वाला रवैया इस हालात को और गंभीर बना देता है।'
धार्मिक उत्पीड़ने के कई उदाहरण दिए
आयोग ने कई उदाहरणों के जरिए यह साबित कर दिया है कि पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है। मई 2019 में सिंध के मिरपुरखास के एक हिंदू वेटनरी सर्जन रमेश कुमार मल्ही पर कुरान की आयतों वाले पन्नों में दवा बांधने की वजह से ईश-निंदा का आरोप लगाया गया। जैसे ही इस अफवाह की खबर फैली उनकी क्लिनिक जला दी गई और उस इलाके में मौजूद हिंदुओं की सारी दुकानें आग के हवाले कर दी गईं। आयोग ने साफ कहा है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए अक्सर वहां ईश-निंदा कानूनों के उल्लंघन का फर्जी केस दायर किया जाता है, ताकि उनका उत्पीड़न किया जा सके। इसके अलावा इस रिपोर्ट में शादियों के लिए हिंदू और क्रिश्चियन महिलाओं और लड़कियों का जबरिया धर्मांतरण कराने की भी बात कही गई है। ये मामले सबसे ज्यादा पंजाब और सिंध प्रांतों में देखने को मिलते हैं, जिसमें पीड़िता अक्सर 18 साल से कम उम्र की होती है।
बच्चों का भी होता है उत्पीड़न
यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक हिंदू लड़कियों और महिलाओं के जबरन धर्मांतरण की एक वजह यह भी है कि ज्यादातर लोग गरीब और अशिक्षित परिवारों से आते हैं, इसलिए उन्हें व्यवस्थित तौर पर कट्टरपंथियों के लिए अपना शिकार बनाना आसान होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों ने कबूल किया है कि स्कूलों में भी उनके सहपाठी और शिक्षक उन्हें मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना देते हैं, उनका अपमान करते हैं, पिटाई करते हैं और जब भी मौका मिलता है उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है।
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