हिंदी पत्रकारिता के 189 साल पूरे: जानें इतिहास और विकास
नयी
दिल्ली
(ब्यूरो)।
आज
यानी
कि
30
मई
हिंदी
पत्रकारिता
दिवस
के
रूप
में
मनाया
जाता
है।
हिंदी
पत्रकारिता
को
पूरे
189
साल
हो
गये।
आज
ही
के
दिन
1826
को
पंडित
युगल
किशोर
शुक्ल
ने
पहला
हिंदी
उदंड
मार्तण्ड
का
प्रकाशन
का
प्रकाशन
किया
था।
तो
आईए
आज
आपको
हिंदी
पत्रकारिता
के
इतिहास
और
हिंदी
पत्रकारिता
के
विकास
के
बारे
में
बताते
हैं।
लेकिन
इससे
पहले
देश
के
सभी
नागरिकों
को
हिंदी
पत्रकारिता
दिवस
की
हार्दिक
बधाई।
हिंदी पत्रकारिता का इतिहास
पत्रकारिता उस स्वर्णिम दौर के इतिहास को अपने गर्भ में छुपाये हुए आधुनिक पत्रकारिता के काले धब्बों को छुपाने की कोशिश कर रही है जब इसका अस्तित्व मिशन के रूप समाज की सोई हुई चेतना को जगाने में व्यस्त था। वह ऐसा दौर था जब भारत माता को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करने का बीड़ा पत्रकारिता ने अपने कमजोर कंधों पर उठाया।
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अंग्रेजी लाठी की मार ने इसके सशक्त कंधों को कमजोर बना दिया, परन्तु देश की आजादी का सपना दिल में लिये इसने अपनी जान हथेली पर रखकर गोरे फिरंगियों का निडरता से सामना किया। सिर पर जूनून सवार था, तमन्ना थी अपनी मातृभूमि को वापिस हासिल करने की। फिर क्या था हाथ में तलवार से तेज कलम को थामा और आरम्भ किया एक मिशन जिसने हिंदुस्तान की आजादी को सुनिश्चित किया।
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देवर्षि नारद घूम-घूम कर संवाद-वहन करने वालों में अग्रणी थे। उन्हें जनसंचार का आदि आचार्य कहा जाता सकता है। 'बुद्धिमतां वरिष्ठम' हनुमान जनसंचार के नायक थे। महाभारत के कुरूक्षेत्र के 18 दिनों के महायुद्ध का आंखों देखा हाल को सुनाने वाले संजय संचार माध्यम के पुरोधा माने जाते हैं। भारतीय साहित्य में मेघ, हंस, तोता, वायु संचार के माध्यम के रूप में विर्णत है।
बाईबिल में स्वर्ग की पुष्पवाटिका में बाबा आदम और अम्मा हौवा की जो कथा है, वह एक प्रकार से संचार का प्रारिम्भक स्वरूप है। अम्मा हौवा ने कहा, 'क्यों न हम वह फल खाँए जो ज्ञान के वृक्ष पर लगता है, जिसको खाने से हमें पाप और पुण्य का ज्ञान हो जायेगा। यह फल हमारे लिए वर्जित तो भी हमें कोई परवाह नहीं करनी चाहिए। यही छोटी-सी वार्ता जनसंचार की एक कड़ी बन गयी।
हिंदी पत्रकारिता का विकास
उदंत मार्तण्ड हिंदी का प्रथम समाचार पत्र था। इसका प्रकाशन 30 मई, 1826 ई. में कलकत्ता से एक साप्ताहिक पत्र के रूप में शुरू हुआ था। कोलाकाता (उस समय का कलकत्ता) के कोलू टोला नामक मोहल्ले की 37 नंबर आमड़तल्ला गली से जुगलकिशोर शुक्ल ने सन् 1826 में उदन्त मार्तण्ड नामक एक हिंदी साप्ताहिक पत्र निकालने का आयोजन किया। उस समय अंग्रेज़ी, फारसी और बांग्ला में तो अनेक पत्र निकल रहे थे किंतु हिंदी में एक भी पत्र नहीं निकलता था। इसलिए ‘उदंत मार्तड' का प्रकाशन शुरू किया गया। इसके संपादक भी श्री जुगुलकिशोर शुक्ल ही थे। वे मूल रूप से कानपुर संयुक्त प्रदेश के निवासी थे।
प्रारंभिक रूप में इसकी केवल 500 प्रतियां ही छपना शुरू हुई थीं पर इसके पाठक कलकत्ता से बहुत दूर होने के कारण इसको लम्बे समय तक चलाया नहीं जा सका क्योंकि उस समय कलकत्ता में हिंदी भाषियों की संख्या बहुत कम हुआ करती थी और डाक द्वारा भेजे जाने वाले इस पत्र के खर्चे इतने बढ़ गए कि इसे अंग्रेज़ों के शासन में चला पाना बहुत कठिन हो गया और 37 अमरतल्ला लेन, कालूटोला, बड़ा बाज़ार से शुरू होने वाले इस प्रयास को 4 दिसम्बर 1926 रोकना पड़ गया।
उदन्त मार्तण्ड का शाब्दिक अर्थ
उदन्त मार्तण्ड का शाब्दिक अर्थ है ‘समाचार-सूर्य‘। अपने नाम के अनुरूप ही उदन्त मार्तण्ड हिंदी की समाचार दुनिया के सूर्य के समान ही था। यह पत्र ऐसे समय में प्रकाशित हुआ था जब हिंदी भाषियों को अपनी भाषा के पत्र की आवश्यकता महसूस हो रही थी। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर ‘उदन्त मार्तण्ड‘ का प्रकाशन किया गया था।