NSW में अब अगले साल से पढ़ाया जाएगा हिंदी और तमिल, प्रस्ताव में हैं अभी और 5 भाषाएं
नई दिल्लीः एनएसडब्ल्यू स्कूल में अगले साल से तमिल और मैसेडोनियन के साथ-साथ अन्य पांच नई भाषाएं पढ़ाई जाएंगी। NSW पब्लिक स्कूल भाषा के पाठ्यक्रम का विस्तार किया गया है, जिसके तहत हिंदी, पंजाबी और फ़ारसी भाषा को पढ़ाने के लिए की प्रस्ताव पेश किया गया है। पाठ्यक्रम में भाषाओं की संख्या अब 69 पहुंच गई है।
यह दर्शाता है कि सिडनी की 39 प्रतिशत आबादी दूसरे देशों में पैदा हुई है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हमें भाषाओं को सीखने की दुनिया का सबसे अच्छा अभ्यास करने की आवश्यकता है और यह एक बहुभाषी, महानगरीय समुदाय से जुड़ने के लिए और ऑस्ट्रेलिया को आगे ले जाने की दिशा में एक बेहतरीन कदम है।
उन्होंने एसबीएस न्यूज को बताया कि तेजी से वैश्विक स्तर पर कार्यबल में काम करने के लिए युवाओं के लिए एक और भाषा बोलना महत्वपूर्ण होगा। साथ ही साल्ट ने यह भी कहा कि ऑस्ट्रेलिया का भविष्य अगर बहुभाषी नहीं है तो वास्तव में द्विभाषी है। बता दें कि पश्चिमी सिडनी के डार्सी रोड पब्लिक स्कूल में छात्र पहले से ही अंग्रेजी और हिंदी बोलते हैं। स्कूल की प्रिंसिपल ट्रुडी हॉपकिंस ने कहा कि शोध से पता चला है कि सबसे पहले अपनी मातृभाषा बोलना सीखना बच्चों के अंग्रेजी कौशल को बेहतर बनाता है। अंग्रेजी सभी की सबसे बड़ी भाषा है, लेकिन हिंदी बच्चों की सबसे बड़ी भाषा है जो दूसरी भाषा बोलते हैं।
इसके अलावा उन्होंने कहा कि "हमें लगता है कि यह फैसला हमारे स्कूल में और विस्तार करेगा क्योंकि हमारे स्कूल में अधिक हिंदी बोलने वाले बच्चे आते हैं।" उन्होंने अगले साल प्रस्ताव पर विषयों की सूची में तमिल को जोड़ने की योजना बनाई है। "हमारी अगली दूसरी सबसे बड़ी भाषा तमिल है और हम अपने स्कूल में उन बच्चों के लिए मौजूद हैं जो तमिल बोलते हैं।" सिडनी के स्कूल ऑफ एजुकेशन एंड सोशल वर्क के विश्वविद्यालय में प्रोफेसर केन क्रूक्शांक ने कहा कि एक भाषा सीखना अनिवार्य बनाया जाना चाहिए।
प्रो. केन क्रूक्शांक ने कहा कि ब्रिटेन में, छात्रों को 14 वर्ष की आयु तक एक भाषा का अध्ययन करना अनिवार्य है और अमेरिकी छात्रों में से 50 प्रतिशत अपने अंतिम परीक्षा के लिए एक भाषा का अध्ययन करते हैं। जबकि भाषा को लेकर ऑस्ट्रेलिया सबसे नीचले स्तर पर है। और यह बड़ी शर्म की बात है कि हमारे पास बहुभाषीय लोगों का एक बड़ा समुदाय है। लेकिन होता यह है कि बच्चे 12 साल की उम्र तक भाषा को पढ़ते हैं और फिर छोड़ देते हैं।