हिमाचल स्कूल बस हादसा: ‘मेरे चार पोते-पोतियों की अब तस्वीरें ही बची हैं’
'बस अब तो तस्वीरें ही बची हैं.' इन शब्दों के बाद मलकवाल कस्बे के पास के गांव खवाड़ा की 70 साल की सुरक्षा देवी इसके आगे कुछ नहीं बोल पाती हैं.
सुरक्षा देवी ने अपने दो पोते और दो पोतियां को सोमवार को हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा ज़िले के नूरपुर कस्बे में हुए स्कूल बस हादसे में खो दिए हैं.
हादसे में मरने वाले ज़्यादा बच्चे इसी गांव के थे.
'बस अब तो तस्वीरें ही बची हैं.' इन शब्दों के बाद मलकवाल कस्बे के पास के गांव खवाड़ा की 70 साल की सुरक्षा देवी इसके आगे कुछ नहीं बोल पाती हैं.
सुरक्षा देवी ने अपने दो पोते और दो पोतियां को सोमवार को हिमाचल प्रदेश में कांगड़ा ज़िले के नूरपुर कस्बे में हुए स्कूल बस हादसे में खो दिए हैं.
हादसे में मरने वाले ज़्यादा बच्चे इसी गांव के थे. हादसे में 27 लोगों की जान गई है जिनमें 23 बच्चे, बस ड्राइवर, दो अध्यापक और एक अन्य महिला शामिल हैं.
सात बच्चों का पठानकोट के अस्पताल में और चार बच्चों का नूरपुर के अस्पताल में इलाज चल रहा है.
हिमाचल: स्कूल बस खाई में गिरी, 27 की मौत
तस्वीरें लेकर बेबस खड़ीं सुरक्षा देवी
सोमवार को राम सिंह पठानिया मेमोरियल स्कूल की बस मलकवाल के पास करीब 400 फुट की गहरी खाई में गिर गई थी. मंगलवार की सुबह जब मैं खवाड़ा गांव पहुंचा तो सभी गांववालों की आंखें छलक रही थीं.
सबसे पहले सुरक्षा देवी के घर के बाहर उनसे मुलाक़ात हुई. वो अपने पोतों और पोतियों की तस्वीरें लेकर बेबस खड़ी थीं. बच्चों के दादा सागर सिंह ने बताया कि उसके बेटों के घर उजड़ गए.
सागर सिंह के मुताबिक़, चारों बच्चों को वह सुबह आठ बजे स्कूल छोड़कर आए थे पर उन्हें क्या पता था कि वह वापस नहीं आएंगे.
सागर सिंह ने आगे बताया कि वह तीन बजे स्कूल बस का इंतज़ार कर रहे थे कि किसी ने बताया कि गांव से 500 मीटर की दूरी पर बस खाई में गिर गई है. इसके बाद तो उन्हें चारों बच्चों की लाशें ही देखने को मिलीं.
सागर सिंह के घर से कुछ ही दूरी पर राघव सिंह का घर है. इस घर में घुसते ही दो बच्चों की मौत का एहसास बिना बताए हो जाता है. 45 साल के राघव सिंह ने अपने 14 साल के बच्चे हर्ष पठानिया और भतीजी इशिता पठानिया को बस हादसे में खोया है.
इशिता के पिता विक्रम सिंह सेना में नौकरी करते हैं. सुबह जब वह घर पहुंचे तो ग़म से बोल तक नहीं पा रहे थे. गांव के बुज़ुर्ग करतार सिंह ने बताया कि उनका गांव 50 साल पीछे चला गया है और मृतकों की गिनती ज़्यादा होने के कारण उन्होंने सामूहिक संस्कार का फ़ैसला किया है.
खाई से बच्चों को निकालना मुश्किल था
बीबीसी संवाददाता मंगलवार को सुबह उस जगह पर गए जहां सोमवार को हादसा हुआ था. सड़क के किनारे बच्चों के स्कूल बैग पड़े थे.
राहत के लिए पहुंचे पिरथिपाल सिंह ने बताया कि बस को काटकर लाशों और ज़ख़्मियों को बस से बाहर निकाला गया था.
खाई से कोई पगडंडी नहीं है और खड़ी चढ़ाई है. इस कारण राहत कार्यों में बहुत दिक्कतें आईं. गांववासियों और आसपास के लोगों ने हिम्मत दिखाकर ज़ख़्मियों को खाई से निकालकर सड़क पर लाया.
पिरथिपाल ने बताया कि यह हादसा मलकवाल और खवाड़ा गांव के बीच में हुआ था इसलिए पहले स्थानीय लोगों ने मानवीय श्रृंखला बनाकर लोगों को बाहर निकाला.
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