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भारत में पैदा हो रहे बच्चों की उम्र ढाई साल कम!

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बेंगलुरु। हाल ही में जब वायु प्रदूषण पर एक ग्लोबल रिपोर्ट जारी की गई, जिसमें गुरुग्राम सबसे प्रदूषित शहर के रूप में सामने आया और नई दिल्ली को दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी का दर्जा मिला, तब तमाम भारतीयों की आंखें झुक गईं। इससे भी शर्मनाक यह कि अगर आज कोई बच्चा भारत में पैदा होता है, तो उसकी उम्र औसत से ढाई साल कम होगी। यह हाल केवल भारत का नहीं बल्कि पूरे दक्षिण एशिया का है। यह हम नहीं बल्कि पर्यावरण पर एक वैश्विक रिपोर्ट 'स्टेट आफ ग्लोबल एयर-2019' कह रही है। हालांकि इस रिपोर्ट में नरेंद्र मोदी की सरकार की उज्जवाला योजना की तारीफ की गई है।

State of Global Air 2019 Report

एसओजीए2019 रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया में वायु प्रदूषण के मौजूदा उच्च स्तरों में हो रही लगातार वृद्धि के कारण वैश्विक स्तर पर लोगों की अपेक्षित उम्र में औसतन 20 महीनों की कमी हो जाएगी। खास बात यह है कि जिस वक्त पूरी दुनिया वायु प्रदूषण से जूझ रही है, उसी समय भारत ने प्रदूषण के स्रोतों पर लगाम लगाने के लिये कई महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं। घरेलू रसोई गैस से जुड़ी प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना, वाहनों के लिये भारत स्टेज 6 के मानक लागू करना तथा नया राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम आदि।

वर्ल्‍ड फोरम पर उज्जवला योजना की सराहना

हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट के उपाध्यक्ष रॉबर्ट ओकीफ ने कहा कि भारत सरकार के ये कदम बेहद कारगर साबित हुए हैं। अगर भविष्‍य में भी भारत ऐसे ही वायु गुणवत्ता में सुधार के संकल्प के साथ आगे बढ़ता गया तो आने वाले वर्षों में स्वास्थ्य के लिहाज से इसके उल्लेखनीय लाभ सामने आएंगे।

Ujjwala Yojana

हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट के द्वारा आज जारी की गई इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में लोगों की मौतों के प्रमुख कारणों में से प्रदूषण तीसरी सबसे प्रमुख वजह है और रैंकिंग के मामले में यह धूम्रपान से भी आगे है। दुनिया में हर साल सड़क हादसों और मलेरिया के मुकाबले वायु प्रदूषण सम्बन्धी बीमारियों से ज्यादा लोगों की मौत हो रही हैं।

कुल मिलाकर, वर्ष 2017 में बाहरी तथा घर के भीतर के वायु प्रदूषण से लम्बे वक्त तक सम्पर्क में रहने के कारण होने वाले पक्षाघात, मधुमेह, दिल का दौरा, फेफड़े का कैंसर तथा फेफड़े से सम्बन्धित अन्य गम्भीर बीमारियों से करीब 50 लाख लोगों की मौत हुई है। इनमें से 30 लाख मौतों की सीधी वजह पीएम2.5 है। इन मौतों में से आधा हिस्सा भारत और चीन के खाते में है। बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान जैसे दक्षिण एशियाई देश दुनिया के सबसे ज्यादा आबादी वाले क्षेत्र हैं। इन देशों में प्रदूषण से सम्बन्धित मौतों का आंकड़ा 15 लाख को पार कर चुका है।

चीन ने लगाया कोयले के प्रयोग पर प्रतिबंध

चीन और भारत वायु प्रदूषण के कारण दुनिया भर में होने वाली कुल मौतों के आधे हिस्से के लिये जिम्मेदार हैं। इन दोनों ही देशों में वर्ष 2017 के दौरान 12-12 लाख लोगों की वायु प्रदूषण के कारण मौत हुई। चीन ने इस दिशा में शुरुआती प्रगति दिखायी है और वह अपने यहां वायु प्रदूषण के स्तरों में कमी लाने के लक्ष्य को प्राप्त करना शुरू कर चुका है। असल में चीन ने बीजिंग के आसपास के जिलों में भोजन पकाने में कोयले के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है।

वायु प्रदूषण के कारण लोगों की जीवन अवधि या अपेक्षित जीवन अवधि पर क्या असर पड़ रहा है। वर्ष 2017 में दुनिया भर में वायु प्रदूषण के कारण किसी व्यक्ति की अपेक्षित जीवन अवधि में औसतन 20 महीने की कमी आयी है। इसका मतलब यह है कि आज पैदा हुआ बच्चा अपनी मौत के अपेक्षित समय से 20 महीने पहले ही मर जाएगा। वहीं, वायु प्रदूषण न होने की स्थिति में वह 20 महीने और जीता।

दुनिया की करीब आधी आबादी- यानी कुल 3.6 अरब लोग वर्ष 2017 में घरेलू वायु प्रदूषण की चपेट में थे। हालांकि वैश्विक स्तर पर इसमें सुधार का रुख है, जैसे कि अर्थव्यवस्थाओं के विकास के साथ ठोस ईंधन से खाना बनाने वाले लोगों की तादाद में कमी आयी है। मगर, भारत में 60 प्रतिशत आबादी अब भी ठोस ईंधन, जैसे कि लकड़ी इत्यादि जलाकर ही खाना बनाती है। इस समस्या से निपटने के लिये उज्जवला योजना एक ठोस कदम कहा जा सकता है।

घरेलू वायु प्रदूषण बाहरी हवा पर असर डालने का प्रमुख स्रोत हो सकता है। घरेलू प्रदूषण का उत्सर्जन बाहर की हवा में घुल जाता है। यह भारत में प्रदूषण के सभी स्रोतों में से सेहत पर असर डालने वाला सबसे बड़ा कारण बनता है। इस प्रकार बाहरी वायु प्रदूषण के कारण होने वाली हर 4 में से 1 मौतें भी वायु प्रदूषण के कारण होती हैं।

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English summary
According to a new global study - State of Global Air 2019, Exposure to outdoor and indoor air pollution contributed to over 1.2 million deaths in India in 2017.
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