कारगिल जंग: द्रास, बटालिक की ऊंची पहाड़यिां बनी थीं दुश्मन का हथियार
रात में चढ़ते थे सैनिक
यह पहाडि़यां ही उस समय पाकिस्तान का हथियार बन गई थीं। दुश्मन ऊपर बैठकर हमारे सैनिकों की हर हरकत को देखता था। वहीं से वह सैनिकों पर फायर करता और बम बरसाता। उसके पास उस समय इस तरह के हथियार थे कि वह 250 किमी तक की रेंज पर निशाना लगा सकता था। ऐसे में हमारे सैनिक रात में इन पहाडियों पर धीरे-धीरे चढ़ते ताकि दुश्मन को उनकी भनक तक न लग सके। पूरी रात वह चढाई करते और अगली सुबह दुश्मन पर वार करते थे।
एनएच-1 को बना रहे थे निशाना
आज
द्रास
में
आपको
एनएच-1
के
तौर
पर
जो
पक्की
और
दुरूस्त
हालात
वाली
सड़क
नजर
आती
है,
युद्ध
के
समय
उसकी
हालत
बहुत
ही
बदतर
थी।
इस
रास्ते
से
सेना
के
लिए
रसद
और
डीजल
जैसी
जरूरी
चीजों
की
सप्लाई
उस
समय
की
जाती
थी।
भारतीय
सेना
की
कमर
तोड़ने
के
लिए
पाक
ने
इस
रास्ते
पर
हमले
करने
शुरू
किए।
इसके
लिए
उसने
तोलोलिंग
रेंज
को
अपना
निशाना
बनाया।
ऐसे
में
भारत
के
लिए
तोलोलिंग
पर
कब्जा
काफी
अहम
हो
गया
था।
खालुबार और जुबार हिल्स
बटालिक सेक्टर में मौजूद खालुबार और जुबार हिल्स भी काफी खतरनाक पहाडि़यां हैं और साथ ही भारत के लिए इनकी काफी अहमियत भी है। खालुबार और जुबार हिल्स पर अगर पाक अपना कब्जा कर लेता तो फिर उसके लिए सारी मुश्किलें आसान हो जाती। कैप्टन मनोज पांडे जो कि 11 गोरखा बटालियन के थे और उस समय ऑपरेशन कमांडिंग अफसर थे, खालुबार से दुश्मनों को खदेड़, इस पर फिर से भारत का कब्जा करा दिया। हालांकि इस कोशिश में वह शहीद भी हो गए थे। वहीं जुबार हिल्स पर फतह हासिल करने में 1 बिहार रेजीमेंट का खासा योगदान रहा।