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एमपी में बीजेपी को बड़ा झटका, शहडोल से सांसद ज्ञान सिंह का निर्वाचन रद्द

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जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने शहडोल लोकसभा क्षेत्र से भाजपा सांसद ज्ञान सिंह का निर्वाचन रद्द कर दिया है। महावीर प्रसाद मांझी की चुनाव याचिका पर सुरक्षित रखे फैसले को एकल पीठ ने शुक्रवार को सार्वजनिक करते हुए उक्त आदेश जारी किए। पूरा मामला नामांकन-पत्र निरस्त करने को लेकर है। इस सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी महावीर प्रसाद मांझी ने ज्ञान सिंह के निर्वाचन को चुनौती दी थी। महावीर का कहना था कि वे मांझी जाति के हैं और निर्वाचन अधिकारी ने गलत तरीके से उसका नामांकन निरस्त कर दिया था।

हाईकोर्ट ने शहडोल सांसद का निर्वाचन निरस्त किया

हाईकोर्ट ने शहडोल सांसद का निर्वाचन निरस्त किया

शुक्रवार को मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस अतुल श्रीधरन की एकलपीठ ने कहा कि जाति प्रमाण-पत्र को आधार बताते हुए निर्वाचन अधिकारी द्वारा महावीर प्रसाद का नामांकन-पत्र निरस्त करना पूरी तरह अवैधानिक था। कोर्ट ने कहा कि महावीर का जाति प्रमाण-पत्र पूरी तरह वैध है और यदि उन्हें मौका मिलता तो वह जीत भी सकते थे। उधर सांसद ज्ञान सिंह ने फैसले के खिलाफ रिप्रजेंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट के तहत कोर्ट में आवेदन दिया, जिस पर कोर्ट ने उन्हें दो हफ्ते का स्टे दिया है। एक्ट में सांसद ने सुप्रीम कोर्ट जाने तक फैसले पर स्टे की मांग की थी।

गलत तरीके से रद्द किया गया निर्दलीय प्रत्याशी का नमाकंन

गलत तरीके से रद्द किया गया निर्दलीय प्रत्याशी का नमाकंन

बता दें कि, महावीर प्रसाद मांझी ने एक चुनाव याचिका जबलपुर हाईकोर्ट में दायर की थी। याचिका में कहा गया 2016 में शहडोल लोकसभा उपचुनाव में वो भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे थे लेकिन सत्ताधारी दल भाजपा के प्रभाव में निर्वाचन अधिकारी ने उनके जाति प्रमाण पर आपत्ति जताते हुए नामांकन पत्र गलत तरीके से निरस्त कर दिया। इस वजह से वो चुनाव नहीं लड़ पाए थे। नामांकन के साथ पेश किए गए जाति प्रमाण पत्र पर बीजेपी प्रत्याशी ज्ञान सिंह ने आपत्ति जताई थी। ज्ञान सिंह की आपत्ति पर चुनाव अधिकारी ने जाति प्रमाण पत्र को फर्जी मानते हुए मांझी का नामांकन निरस्त कर दिया था।

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इस तर्क के देकर कर दिया नमाकंन रद्द

इस तर्क के देकर कर दिया नमाकंन रद्द

उस समय चुनाव अधिकारी का नामंकन निरस्त करने के पीछे यह तर्क था कि जाति प्रमाण पत्र नायाब तहसीलदार ने जारी किया है जबकि जाति प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार एसडीएम और कलेक्टर को है। मांझी के अधिवक्ता अंकित सक्सेना ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता का जाति प्रमाण पत्र वर्ष 1991 में बना है जबकि एसडीएम और कलेक्टर द्वारा जाति प्रमाण जारी करने की अनिवार्यता वर्ष 2005 से लागू हुई है। इसके पूर्व तहसीलदार और नायाब तहसीलदार जाति प्रमाण-पत्र जारी कर सकते थे। एकल पीठ को यह भी बताया गया कि चुनाव अधिकारी को यह अधिकार नहीं है, वह किसी के जाति प्रमाण पत्र को गलत करार दे सकें। पीठ ने अपने आदेश में कहा है कि जाति प्रमाण की जांच का अधिकार जनजाति विभाग की उच्चस्तरीय छानबीन कमेटी को है।

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English summary
High Court quashes election of BJP MP Gyan Singh from Shahdol in Madhya Pradesh
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