परमवीर मेजर शैतान सिंह: जिनके नेतृत्व में 120 सैनिकों ने ढेर कर दिए 1200 चीनी सैनिक
नई दिल्ली। तारीख 18 नवंबर 1962 और समय था सुबह के करीब साढ़े छह बजे। मेजर शैतान सिंह के कंधे में आकर एक शेल लगा। कैप्टन रामचंदर यादव ने खून रोकने के लिए कपड़ा बांध दिया। इसी दौरान हरफूल घायल हो गए और मेजर शैतान सिंह ने उनकी पोजीशन लेकर फायरिंग करना शुरू कर दिया। इसी दौरान उनके पेट में गोली लगी। कुछ देर बाद रामचंदर ने मेजर शैतान सिंह को बेल्ट से बांधा और करीब 50 फुट नीचे की तरफ ले आए। रामचंदर यादव उस दिन को याद करते हुए बताया, 'मैंने उन्हें नीचे लिटाया और उनके हाथ में बंधी घड़ी की ओर देखने लगा। उस वक्त 8.15 मिनट हुए थे और अचानक घड़ी बंद हो गई। मैं समझ गया मेजर शहीद हो गए, क्योंकि उनके हाथ में घड़ी बंधी थी, वह पल्स वॉच थी।' यह कहानी है शहीद मेजर शैतान की, जिन्होंने करीब 4000 चीनी सैनिकों के साथ सिर्फ 120 जवानों के साथ टक्कर ली और करीब 1200 चीनी सैनिकों को मौत की नींद सुला दिया। परमवीरचक्र से सम्मानित शहीद शैतान का आज जन्मदिन है। उनका जन्म 1 दिसम्बर 1924 को राजस्थान के जोधपुर जिले के बंसार गांव में हुआ था। 1962 के युद्ध में शहीद हुए मेजर शैतान सिंह ने जो जंग लड़ी इतिहास में उसके उदाहरण बेहद कम मिलते हैं।
चीन सीमा से 3 किलोमीटर की दूरी पर संभाला मोर्चा
जम्मू-कश्मीर के लद्दाख सेक्टर में रेजांग ला पर पोस्ट तैनात थी, जिसकी कमान थी मेजर शैतान सिंह के हाथों में। 13 कुमायूं बटालियन की चार्ली कंपनी के 120 जवानों में 114 शहीद हो गए थे, सिर्फ छह जिंदा बचे थे। इन्हीं जिंदा बचे जांबाजों में दो के नाम हैं- रामचंदर यादव और हवलदार निहाल सिंह। सुनिए इन्हीं दोनों की जुबानी शहादत की रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानी। 'हम 23 अक्टूबर 1962 को चीन की सीमा से 3 किलोमीटर रेजांग ला पहुंचे। हमें यहां पर पोजीशन लेने का ऑर्डर मिला था। ऑर्डर के हिसाब से हमने खुदाई शुरू कर दी, बंकर बनाए। नवंबर के पहले हफ्ते तक हमने उस जगह को जंग के लिहाज से पूरी तरह तैयार कर लिया था। हमें पता था कि चीनी सैनिक यहां जरूर आएंगे।'
पोस्ट छोड़ने को कहा गया था, पर शैतान सिंह और जवान वहां से हिले नहीं
कैप्टन रामचंदर यादव ने कहा, '15 नवंबर को ब्रिगेड हेडक्वार्टर से फोन आया और पोस्ट खाली करने को कहा गया। ऐसा इसलिए कहा गया था, क्योंकि चीनी सैनिकों ने दूसरी जिस प्रकार से हमले किए थे, वो बड़े ही भयावह थे। मेजर शैतान सिंह ने सभी जवानों से बात की और अंतिम निर्णय यह हुआ कि पोस्ट छोड़कर कोई नहीं जाएगा।' निहाल सिंह ने बताया, कैप्टन शैतान सिंह के नेतृत्व में जवानों ने युद्ध की तैयारी शुरू की और रेजांग ला पर तीन प्लाटून तैनात की गईं। हर प्लाटून में 40 सैनिक तैनात किए गए। इन प्लाटून को नंबर्स के हिसाब से बांटा गया- 7,8 और 9। तीनों प्लाटून करीब 1 किलोमीटर की दूरी पर तैनात थीं। भारतीय सेना ने अपने बंकर इतनी ऊंचाई और सटीक जगह पर बनाए थे कि कोई भी चीन सैनिक बिना भारतीय सेना के बंकर में लगी एलएमजी गन के सामने आए वहां से गुजर नहीं सकता था। अब चीनी सेना का इंतजार हो रहा था। भारतीय सेना उनके हर मूवमेंट पर नजर रख रही थी।
पहले हमले में मारे गए चीन के 250 सैनिक
पहला हमला- सुबह 3 बजकर 45 मिनट का वक्त था। प्लाटून 7 की एलएमजी संभाल रहे नायक हुकुम सिंह ने देखा कि 8 से 10 चीनी सैनिक रेकी कर रहे हैं। उन्होंने सभी को मार गिराया। साथियों की मौत से गुस्साए करीब 400 चीनी सैनिक तोपों के साथ प्लाटून 7 की ओर आगे बढ़े। एलएमजी पर तैनात नायक हुकुम सिंह ने करीब 250 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया। उनकी एलएमजी ने इतन गोलियां बरसाईं कि वहां मौजूद एक खाई चीनी सैनिकों से भर गई थी।
एक बार में 400 चीनी सैनिक कर दिए थे ढेर
दूसरा हमला- पहले हमले में बुरी तरह मुंह की खाने के बाद चीनी सैनिक नई प्लानिंग के साथ आए और जोरदार गोलाबारी शुरू कर दी। इस बार एक भी चीनी सैनिक आगे नहीं आया, क्योंकि उन्हें पता था कि वे भारतीय एलएमजी की जद में आ आएंगे। भारी गोलाबारी से भारतीय सेना के बंकर ध्वस्त हो गए थे, लेकिन गनीमत यह रही कि भारत का एक भी सैनिक शहीद नहीं हुआ। सभी बम खाली जगहों पर गिरे। करीब 4 बजकर 45 मिनट पर दूसरा हमला शुरू हुआ। चीनी सैनिक आगे बढ़े, इस बार प्लाटून 8 की तरफ और भारत की एलएमजी ने करीब 150 चीनी सैनिकों को मार दिया। इसके बाद चीनी सैनिकों ने सर्किल बनाया और तीनों प्लाटूनों को घेरने का प्रयास किया। चीनी सैनिकों की कोशिश यह थी कि तीनों प्लाटूनों पर एक साथ हमला किया जाए। दूसरी तरफ भारतीय सेना भी तैयार थी। उधर चीनी सैनिकों तीनों प्लाटूनों की प्लाटून 7 पर हमला किया। जवाब में प्लाटून 7 की एलएमजी ने करीब 400 चीनी सैनिकों को ढेर कर दिया।
चीन का तीसरा हमला भारतीय सेना पर पड़ा भारी
400 चीनी सैनिक और ढेर हो चुके थे। उनके पास करीब 4000 जवान थे, इसलिए संख्या उनके लिए समस्या नहीं थी। अब चीनी सैनिकों तीनों प्लाटूनों पर एक साथ धावा बोल दिया। इस हमले में प्लाटून 7 की एलएमजी संभाल रहे हुकुम सिंह को गोली लग गई। उधर, प्लाटून 9 एलएमजी संभाल रहे निहाल सिंह के दोनों हाथों में भी गोली लग गई। उन्होंने गोली लगने के बाद एलमएजी के कुछ हिस्से फेंक दिए, जिससे कि दुश्मन उसका प्रयोग न कर सके। करीब साढ़े बजे मेजर शैतान सिंह को शेल लगा, उसके बाद उन्हें गोली लगी। वह जानते थे कि भारतीय सेना ने उस दिन जो वीरगाथा लिखी थी उस पर कोई यकीन नहीं करेगा, इसलिए उन्होंने रामचंदर यादव से कहा कि वह ब्रिगेड हेडक्वार्टर जाएं और जाकर सैनिकों के बलिदान बात बताएं, लेकिन रामचंदर ने उस वक्त मेजर को छोड़कर जाने से इनकार कर दिया। बाद में जब रामचंदर हेडक्वार्टर में गए तो ठीक वही हुआ, जिसका अंदेशा मेजर शैतान सिंह ने जताया था। किसी ने रामचंदर की बात पर यकीन नहीं किया। इसके बाद जब चीनी सेना अपने सैनिकों के शव लेने आई, तब भारतीय सेना की बहादुरी की खबरें सामने आईं।