यहां हर ब्रू शरणार्थी परिवार को मोदी सरकार देगी 12 लाख रुपये, जानिए क्या है इन 5 हजार परिवारों का इतिहास?
नई दिल्ली- देश के कई हिस्सों में अभी भी नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों का दौर जारी है। इस कानून के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक उत्पीड़न का शिकार होकर आए हिंदू, क्रिश्चियन, बौद्ध, सिख, जैन और पारसी समुदाय के शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। इसी विरोध प्रदर्शनों के दौरान मोदी सरकार ने 30,000 ब्रू शरणार्थियों को त्रिपुरा में स्थाई तौर पर बसाने के लिए एक बहुत बड़ा समझौता किया है। इस काम पर केंद्र सरकार 600 करोड़ रुपये खर्च करेगी। यानि, अगर 5,000 परिवार मानें तो यह रकम प्रति परिवार करीब 12 लाख रुपये बैठेगी। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि ब्रू शरणार्थी कौन हैं और उनकी समस्या क्या है?
त्रिपुरा में बसाए जा रहे ब्रू शरणार्थी का इतिहास जानिए
30,000 ब्रू (रियांग) शरणार्थी भारतीय नागरिक हैं, जो 1997 से मिजोरम से आकर त्रिपुरा में रह रहे हैं। करीब 23 वर्ष पहले मिजोरम में मिजो जनजाति ने वहां अपना दबदबा कायम रखने के लिए दूसरी जनजातियों को निशाना बनाया था, जिन्हें वह बाहरी मानते थे। 1997 के अक्टूबर महीने में वहां ब्रू जनजाति के खिलाफ भारी हिंसा हुई, उनके दर्जनों गांव जला दिए गए थे। तभी से एक बड़ी ब्रू आबादी ने त्रिपुरा में शरण ले रखा है, जिनकी भाषा भी ब्रू कहलाती है। मिजोरम में ब्रू लोगों के खिलाफ तभी से माहौल बनना शुरू हो गया था, जब 1995 में यंग मिजो एसोसिएशन और मिजो स्टूडेंट्स एसोसिएशन ने इन्हें बाहरी घोषित कर दिया था। तभी से करीब 5,000 ब्रू जनजाति परिवार त्रिपुरा के कंचनपुर और उत्तरी त्रिपुरा के करीब 6 अस्थाई कैंपों में रह रहे हैं।
मिजोरम में अभी भी बड़ी तादाद में ब्रू समुदाय के लोग रहते हैं
ब्रू जनजाति की आबादी त्रिपुरा, मिजोरम और असम के दक्षिण इलाकों में फैली हुई है। इनकी सबसे अधिक जनसंख्या त्रिपुरा में मौजूद है और 1997 में मिजो बहुसंख्यकों की ओर से निशाना बनाए जाने पर उनका भागकर त्रिपुरा आने का भी शायद यही सबसे बड़ा कारण है। यह समुदाय नस्ली तौर मिजो से अलग है, उनकी अलग ब्रू भाषा है और शायद यही वजह है कि मिजो इन्हें बाहरी समझते हैं। हालांकि, करीब 30,000 ब्रू जनजाति के लोगों के पलायन के बावजूद मिजोरम में अभी भी करीब 40,000 ब्रू आबादी मौजूद है। दो दशक पहले वहां की लगभग आधी ब्रू आबादी त्रिपुरा आकर रहने लगी थी। जब, मिजोरम में इनके खिलाफ हिंसा होने लगी तभी से ब्रू जनताति के लिए पश्चिम मिजोरम में संविधान की 6ठी सूची के तहत ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल की मांग की शुरुआत हो गई थी।
वापस मिजोरम लौटने के लिए तैयार नहीं था ब्रू समुदाय
जाहिर है कि अस्थाई कैंपों में रहते हुए दो दशक से ज्यादा बीत गए थे, लेकिन ब्रू शरणार्थियों के लिए मूलभूत सुविधाओं की पर्याप्त व्यवस्था नहीं हो पाई थी। ब्रू शरणार्थियों की समस्या के समाधान के लिए 3 जुलाई, 2018 को मोदी सरकार ने त्रिपुरा और मिजोरम सरकार के बीच एक समझौता कराया। इसमें तय हुआ कि शरणार्थियों की सम्मानजनक मिजोरम वापसी होगी। लेकिन, कई वजहों से ये शरणार्थी वापस मिजोरम लौटने के लिए तैयार नहीं हुए। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के मुताबिक पिछले डेढ़ साल में सिर्फ 328 ब्रू परिवार ही वापस मिजोरम जाकर बस पाया है। पिछले साल 1 अक्टूबर को इन्हें वापस मिजोरम वापस भेजने का नौंवा प्रयास शुरू हुआ। उन्हें मिलने वाला राशन और कैश की सप्लाई रोकी गई। इसके विरोध में इस जनजाति के लोग सड़कों पर उतर आए।
अक्टूबर-नवंबर में चलाया था आंदोलन
पिछले साल 3 अक्टूबर से केंद्रीय गृहमंत्रालय ने ब्रू शरणार्थी समस्या का वैधानिक समाधान तलाशने के लिए फिर से मिजोरम और त्रिपुरा की राज्य सरकारों से बातचीत का दौर शुरू किया। नवंबर में जब उन्हें वापस अपने राज्य में भेजने की कोशिशें जारी थीं तो उन्होंने उत्तर त्रिपुरा में राशन और कैश सप्लाई जारी रखने की मांग को लेकर 12 घंटे तक सड़क बंद कर दिया था। इस प्रदर्शन के दौरान 6 नवंबर को कंचनपुर में त्रिपुरा राजपरिवार के वंशज प्रद्योत किशोर माणिक्य ने भी इन शरणार्थियों से मुलाकात की थी।
मोदी सरकार इन्हें बसाने पर खर्च करेगी 600 करोड़
आखिरकार गुरुवार को ब्रू शरणार्थी समस्या का तब स्थाई हल निकल गया, जब इस समस्या के स्थाई समाधान के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और ब्रू शरणार्थियों के प्रतिनिधियों के बीच उन्हें त्रिपुरा में ही बसाने को लेकर एक समझौते पर हस्ताकर किए गए। इस समझौते के दौरान त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब और मिजोरम के मुख्यमंत्री जोरामथंगा भी मौजूद थे। इसके तहत त्रिपुरा में 30,000 ब्रू शरणार्थियों को बसाने के लिए केंद्र सरकार 600 करोड़ रुपये देगी। समझौते के तहत सरकार इन्हें जीवन जीने के लिए सुविधाएं देगी। उन्हें 2 साल तक हर महीने 5,000 रुपये की नकद सहायता और 2 साल तक मुफ्त में राशन मिलेगा। उन्हें 4 लाख रुपये का फिक्स डिपॉजिट और घर बनाने के लिए 40 से 30 फुट का प्लॉट और डेढ़ लाख रुपये घर बनाने के लिए भी मिलेंगे। इनका राज्य के वोटर लिस्ट में नाम भी शामिल किया जाएगा।