NRC विवाद की पांच बातें, जानिए क्यों हैं ये अहम
नई दिल्ली। असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ रिकॉर्ड के मसौदे को तैयार कर लिया है और इसके अंतिम स्वरूप को पेश कर दिया है। इस मसौदे के सामने आने के बाद 40 लाख लोगों की नागरिकता पर सवाल खड़े हो गए हैं। जिन लोगों के नाम इस रजिस्टर में नहीं है उन्हें एनआरसी के अनुसार अवैध नागरिक माना गया है। लेकिन एनआरसी फाइनल मसौदे के सामने आते ही इसपर सियासी घमासान चालू हो गया है। एक तरफ जहां सत्ताधारी दल भाजपा इससे लोगों को परेशान नहीं होने की बात कर रही है तो दूसरी तरफ विपक्ष लगातार सरकार पर निशाना साध रहा है कि एनआरसी के जरिए सरकार लोगों को रातो रात अवैध नागरिक घोषित करना चाहती है। जिस तरह से पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने इसके खिलाफ मोर्चाा खोल दिया है उसके बाद भाजपा पूरी तरह से इस मुद्दे को लेकर आक्रामक हो गई है और इस मसले पर किसी भी सूरत में पीछे हटने के मूड में नहीं है। इस मुद्दे को लेकर संसद में भी सत्ता और विपक्ष के बीच घमासान जारी है।
क्या है एनआरसी
1951 की जनगणना के अनुसार नेशनल सिटिजेन रजिस्टर को बनाया गया था, जिसमे हर गांव में रहने वाले व्यक्ति की जानकारी दर्ज की गई थी। इसमे हर नागरिक का नाम, उम्र, पिता का नाम, पति का नाम, घर का पता, घर के सदस्यों के बारे में और उनकी आजीविका के बारे में जानकारी दर्ज की गई थी। इस रजिस्टर में हर व्यक्ति की जानकारी 1951 के बाद से दर्ज है और इसे डेप्युटि कमिश्नर, सब डिविजनल कमिश्नर ऑफिसर के पास केंद्र सरकार के निर्देश के बाद सुरक्षित रखा गया है। 1960 के बाद इस रजिस्टर को पुलिस के हवाले कर दिया गया था।
असम में एनआरसी को फिर से अपडेट करने की जरूरत क्यों पड़ी
आजादी के बाद से लेकर 1971 में जब बांग्लादेश का निर्माण हुआ तो असम में बड़े स्तर पर पूर्वी पाकिस्तान से लोगों का भारत में विस्थापन हुआ और युद्ध के बाद पाकिस्तान से अलग देश बांग्लादेश का निर्माण हुआ। 19 मार्च 1972 के बाद बांग्लादेश और भारत के बीच शांति समझौता हुआ जिसमे दोनों देशों के बीच दोस्ती, आपसी सहयोग और शांति को स्थापित करने पर समझौता हुआ था। लेकिन इशके बाद भी असम में बांग्लादेश के लोगों का आगमन जारी रहा। ऐसे में लगातार हो रहे इस विस्थापन के खिलाफ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ऑल असम स्टूडेंट यूनियन, ने 1980 में एक मेमोरेंडम दिया था, जिसमे उनसे अपील की गई थी कि इस मसले पर वह तत्काल ध्यान दें। जिसके बाद अवैध विस्थापित एक्ट 1983 में। यह एक्ट सिर्फ असम में ही लागू होता है, जिसका मकसद था कि गैर कानूनी तरीके से असम में रहे लोगों को वापस उनके देश में भेजना।
आखिर क्यों असम में भड़का गुस्सा, क्या थे इसके परिणाम
जिस तरह से सरकार ने अवैध नागरिकों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए इस एक्ट को बनाया था उसको लेकर लोग संतुष्ट नहीं थे और प्रदेशभर में सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया, इस आंदोलन में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और ऑल असम गाना संग्राम परिषद के लोग शामिल थे। इस आंदोलन की वजह से सरकार ने असम समझौता 15 अगस्त 1985 को साइन किया, जोकि आसू, आगसप, केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच था।
एनआरसी में कौन-कौन लोग आते हैं
जिन लोगों का नाम एनआरसी 1951 में दर्ज है या फिर 24 मार्च 1971 तक इन लोगों ने किसी भी चुनाव प्रक्रिया में हिस्सा लिया था, या फिर इन लोगों पर निर्भर लोगों के नाम एनआरसी में रजिस्टर हो उन्हें अवैध नागरिक माना जाएगा। जो लोग 1 जनवरी 1966 के बाद या फिर 25 मार्च 1971 के पहले असम में आए सरकार के विदेशी रजिस्ट्रेशन के तहत खुद को रजिस्टर कराया और उन्हें किसी भी सरकारी संस्था द्वारा अवैध प्रवासी या विदेशी नागरिक घोषित नहीं किया गया वो लोग इस रजिस्टर में अपना नाम दर्ज करा सकते हैं। जो विदेशी नागरिक 25 मार्च 1971 के बाद असम में आए उन्हें कानून के अनुसार अवैध नागरिक माना जाएगा और उन्हें देश से बाहर किया जाएगा। इसके अलावा सभी भारतीय नागरिकों और उनके बच्चे जोकि 24 मार्च 1971 के बाद असम में आएं उन्हें एनआरसी रजिस्टर के अनुसार देश से बाहर किया जाएगा। लेकिन ऐसा करने से पहले इस बात के पुख्ता सबूत देने होंगे कि इन लोगों का देश के किसी भी हिस्से में असम के बाहर 24 मार्च 1971 तक कोई घर नहीं है।
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उनका क्या होगा जिनका नाम एनआरसी 2018 में शामिल नहीं है?
20
जुलाई
2018
को
सरकार
ने
एनआरसी
के
फाइनल
दस्तावेज
को
सौंप
दिया
है,
इसके
अनुसार
प्रदेश
में
40
लाख
अवैध
नागरिक
रह
रहे
हैं।
जिन
लोगों
का
नाम
इस
रजिस्टर
में
नहीं
है
वो
लोग
अपना
नाम
शामिल
करने
के
लिए
आवेदन
कर
सकते
हैं।
जो
लोग
अपना
नाम
इस
रजिस्टर
में
शामिल
कराना
चाहते
हैं
वो
30
अगस्त
से
28
सितंबर
के
बीच
अपना
आवेदन
दे
सकते
हैं।
इसके
लिए
ये
लोग
टॉल
फ्री
नंबर
पर
फोन
करके
इस
बारे
में
जानकारी
हासिल
कर
सकते
हैं
और
अप्लिकेशन
रसीद
हासिल
कर
सकते
हैं।
प्रवासी
और
विदेशी
नहीं
ज
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