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लक्ष्मी की नवजात बच्ची को बचाने में उसकी मदद कीजिए

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"पहली बार जब मैंने अपने बच्‍चे को देखा था तो खुशी से मेरी आंखे भर आईं थीं।" लक्ष्‍मी बताती हैं कि "मेरी प्रेगनेंसी आसान नहीं थी लेकिन जब पहली बार मैंने अपने बच्‍चे को गोद में लिया तो सारा दर्द छूमंतर हो गया। मेरा बच्‍चा प्रीमैच्‍योर बेबी है और अब उसे ज़िंदगी और मौत के बीच झूलना पड़ रहा है। मेरा नवजात बच्‍चा वेंटिलेटर के सहारे अपनी सांसे गिन रहा है।"

Help Lakshmi In Saving Her Newborn baby

ये लक्ष्‍मी का पहला बच्‍चा था। वो और उसका पति अपने पहले बच्‍चे के आने की तैयारियों में लगे हुए थे। उसका पति अपनी मोबाइल रिपेयर वर्कशॉप पर ओवरटाइम करता था ताकि वो अपने आने वाले बच्‍चे के लिए कुछ पैसे जमा कर सके।

"वो नहीं चाहता था कि बच्‍चे को किसी भी चीज़ की कमी हो और इसके लिए वो दिन-रात मेहनत करके पैसा कमाता था। रात को दुकान से देर से आता और सुबह जल्‍दी काम पर निकल जाता। बिना किसी ब्रेक के वो दिन-रात मेहनत करता था। वो बस अपने बच्‍चे को सारी खुशियां देना चाहता था।"

"हमने कुछ आर्थिक परेशानियां ज़रूर देखी थीं लेकिन वो नहीं चाहता था कि उसके बच्‍चे को कोई तंगी देखनी पड़े। लक्ष्‍मी कहती है कि उसका पति बड़ी बेसब्री से अपने आने वाले बच्‍चे का इंतज़ार कर रहा था।"

लक्ष्मी आगे कहती है कि "दिन-रात काम करने के बाद घर आकर मेरा पति मेरा और बच्‍चे का ख्‍याल रखता था। कुछ वक्‍त हमारे लिए मुश्किल भरा रहा लेकिन फिर भी उन्‍होंने काम और घर दोनों के लिए समय निकालने की पूरी कोशिश की। मेरी पूरी प्रेगनेंसी के दौरान मेरे पति ने मेरा बहुत साथ दिया।"

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प्रीमैच्‍योर बर्थ सामान्‍य बात है लेकिन कुछ मामलों में बच्‍चे की सेहत बहुत ज़्यादा बिगड़ जाती है। लक्ष्‍मी के बच्‍चे के साथ भी ऐसा ही हुआ।

लक्ष्मी की प्रेगनेंसी के पहले शुरुआती महीने तो आराम से निकल गए। "हम बड़ी बेसब्री से डिलीवरी की डेट का इंतज़ार कर रहे थे और अपने बच्‍चे के स्‍वागत की तैयारियों में लगे हुए थे। कुछ म‍ुश्किलों की वजह से मुझे प्रसव के लिए पहले ही जाना पड़ा और समय से पहले ही मेरे बच्‍चे की डिलीवरी हो गई। अपने बच्‍चे को अपने हाथों में मैंने ठीक तरह से पकड़ा भी नहीं था। उसके पैदा होते ही डॉक्‍टर्स उसे ले गए थे। उन्‍हें बच्‍चे में कुछ गलत नज़र आया और उसके कुछ देर बाद ही हमें पता चला कि बच्‍चे में प्रीमैच्‍योर बर्थ डिफेक्‍ट है। वो ठीक तरह से सांस नहीं ले पा रहा था और इसलिए उसे वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया।"

"अपने बच्‍चे को इस तरह देखना मेरे लिए बहुत मुश्किल था। कोई सोच भी नहीं सकता कि अपने इकलौते बेटे को यूं ज़िंदगी और मौत के बीच लड़ते हुए देखकर मुझे कैसा महसूस हो रहा है। दिन-ब-दिन उसकी हालत बिगड़ती जा रही है और अब उसमें कैल्शियम की भी कमी हो गई है। उसे निओनेटल सीज़र भी है जिसकी वजह से उसका शरीर नियंत्रित नहीं हो पा रहा है। मैं भगवान से उसकी सलामती की प्रार्थना कर रही हूं। मेरे बच्‍चे को जीने के लिए इस समय बस पैसों की ज़रूरत है और एक यही वो चीज़ है जो उसे बचा सकती है।"

फ़िलहाल बच्‍चे का ट्रीटमेंट एनआईसीयू में चल रहा है जिसका रोज़ का खर्चा 25 हज़ार रुपए है। वो एक महीने से अस्‍पताल में है और लक्ष्‍मी और उसका पति अब तक बच्‍चे के इलाज पर 12 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं। "अपने बच्‍चे की ज़िंदगी और उसकी सेहत की चिंता के साथ-साथ अब हम पैसों के बंदोबस्‍त में भी लगे हुए हैं। हमारा सारा जमा पैसा अब खत्‍म हो चुका है और अगर हम समय पर पैसों का इंतज़ाम नहीं कर पाए तो डॉक्‍टर उसका इलाज बंद कर देंगे।"

इस परिवार को अभी अपने बच्‍चे के इलाज के लिए और 8 लाख रुपयों की ज़रूरत है और इसके लिए उसने फंड इकट्ठा करना शुरु कर दिया है।

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"जितना जल्‍दी हो सके हम उसे घर ले जाना चाहते हैं। उसे जितना दर्द सहना था सह लिया अब हम उसे भरपूर प्‍यार देना चाहते हैं। मेरी आप सबसे गुज़ारिश है कि आप सब इस दुख की घड़ी में मेरी और मेरे परिवार की मदद करें।

"एक नन्‍ही सी जान को आपकी मदद की ज़रूरत है। मैं और मेरी पत्‍नी लक्ष्‍मी हमेशा आपके मदद के लिए एहसानमंद रहेंगे।" बच्‍चे के पिता भावुक होकर कहते हैं कि "हमें इस समय आपकी आर्थिक मदद की बहुत ज़रूरत है।"

तो चलिए हाथ‍ मिलाकर इंसानियत के नाते इस मजबूर मात-पिता की मदद करें। आपसे जितना भी हो सके उतना लक्ष्‍मी के बच्‍चे की जान बचाने के लिए मदद करें।

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