नई दिल्ली। फल बेचने वाले के नौ साल के बेटे श्याम को पढ़ाई के लिए बस पांच महीने ही मिल पाते हैं क्योंकि साल के बाकी समय में सीज़न की वजह से उसे अपना फल बेचने का काम संभालना पड़ता है। उसके परिवार को समय की मांग के अनुसार अलग-अलग जगहों पर जाना पड़ता। आखिरकार, वो एक जगह पर आकर बस गए जहां पर एक सरकारी स्कूल भी था। श्याम और उसकी बहन का उस स्कूल में एडमिशन करवा दिया गया।
सौभाग्य से स्कूल में मिड डे मील की सुविधा भी शुरु हो गई। इस तरह बच्चों को शिक्षा के साथ एक वक्त का खाना भी मिल जाता जिससे उनके गरीब परिवार को दो वक्त की रोटी का बंदोबस्त करने में होने वाली मुश्किलों से छुटकारा मिल गया। अब श्याम रोज़ अपनी बहन के साथ स्कूल जाता और वहां का स्वादिष्ट मिड डे मील खाता।
इन अल्पसुविधा प्राप्त बच्चों की मदद के लिए, यहां दान करें
भारत में कई धर्मों, संस्कृति और भाषाओं का मेल देखने को मिलता है। इसे दुनिया के सबसे तेज़ी से विकास करने वाले देश के रूप में भी जाना जाता है। साल 2018 में भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में उभर कर आया है।
ऐसे विकास के बावजूद भारत में अब भी कई जगहों पर भूखमरी ने पैर पसारे हुए हैं। पिछले 25 सालों में भारत ने बहुत तीव्र गति से विकास किया है लेकिन फिर भी इस देश में अपने पड़ोसी देशों सिवाय पाकिस्तान के सबसे ज़्यादा भूखमरी फैली हुई है।
भूखमरी को हटाने के उद्देश्य से 1995 में बच्चों को स्कूलों में पोषक खाना खिलाने के लिए मिड डे मील प्रोग्राम की शुरुआत की गई थी जिसके तहत सरकार स्कूलों में प्राइमरी और उच्च प्राइमरी कक्षा के बच्चोंं को ताज़ा खाना परोसती है। यूनिसेफ के अनुसार इस तरह के सभी कार्यक्रम सरकार द्वारा संचालित किए जाने के बावजूद देश के 60 मिलियन बच्चों में से-
50%
कुपोषण
का
शिकार
हैं
45%
अपनी
उम्र
के
हिसाब
से
बहुत
छोटे
हैं
20%
बहुत
पतले
हैं
75%
बच्चे
एनीमिया
के
शिकार
हैं
57%
विटामिन
ए
की
कमी
से
ग्रस्त
हैं
बच्चों
की
ऐसी
भयावह
स्थिति
के
लिए
कौन
ज़िम्मेदार
है?
जिन
बच्चों
के
माता-पिता
उनके
लिए
दो
वक्त
की
रोटी
का
भी
इंतज़ाम
नहीं
कर
पाते
उनके
लिए
तो
ये
सरकारी
कार्यक्रम
किसी
तोहफे
से
कम
नहीं
है
लेकिन
फिर
भी
इनकी
असफलता
की
वजह
से
बच्चे
भूख
से
मर
रहे
हैं।
भारत की जनसंख्या बहुत ज़्यादा है और इसकी भौगोलिक स्थिति भी बहुत बड़ी है, ऐसे में हर बच्चे को पोषण दे पाना बहुत मुश्किल है। बस यहीं काम आता है इस्कॉन फूड रिलीफ फाउंडेशन। ये एक गैर सरकारी, गैर धार्मिक और गैर-सांप्रदायिक सार्वजनिक धर्मार्थ संगठन वाली संस्थाा है जोकि अन्नामृता के ब्रांड के तहत काम करती है। इसके द्वारा सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के बच्चों के लिए मिड डे मील की व्यवस्था की जाती है। 7 राज्यों आंध्र प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, झारखंड, महाराष्ट्र, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में अन्नामृता की 20 रसोईयां हैं और इसके द्वारा हर रोज़ 1.2 मिलियन बच्चों को खाना दिया जाता है।
इस संस्था द्वारा बच्चों को ताज़ा पका हुआ खाना खिलाया जाता है और ये खाना ना सिर्फ पोषणयुक्त होता है बल्कि इस बात का भी ध्याान रखा जाता है कि इससे बच्चे रोज़ स्कूल आ पाने में भी शारीरिक रूप से सक्षम बन सकें। कई घरों में बच्चों को ठीक तरह से दो वक्त की रोटी भी नहीं मिल पाती है। उन बच्चों के लिए ये मिड डे मील ही उनके पूरे दिन के खाने का आधार होता है।
अन्नामृता का प्रभाव
साल 2004 से अन्नामृता देश के कई हिस्सों में मिड डे मील प्रदान कर रही है। इस संस्था के ट्रस्टी श्री गोपाल कृष्ण गोस्वामी का कहना है कि "संस्था द्वारा परोसे गए खाने से बच्चे परीक्षा में भी बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं और रोज़ स्कूल आते हैं।" दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी इस कार्यक्रम की प्रशंसा कर चुकी हैं और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भी ये पहल बहुत पसंद आई थी।
अन्नामृता शब्द का अर्थ है अमृत जैसा शुद्ध भोजन और इस्कॉन फूड रिलीफ फाउंडेशन द्वारा बच्चों तक पोषक युक्त आहार पहुंचाया जाता है। बच्चों तक सात्विक आहार पहुंचाने के उद्देश्य को पूरा करने के साथ अन्नामृता बच्चों को सही पोषण देकर उन्हें आने वाले समय के लिए तैयार कर रही है।
इस कार्यक्रम के तहत कई बच्चे इसका लाभ उठा रहे हैं लेकिन अभी भी कई बच्चों तक इसका पहुंचना बाकी है। जरूरतमंद बच्चों तक अन्नामृता को पहुंचाने में आप भी मदद कर सकते हैं। आपका छोटा सा योगदान भी बहुत महत्वपपूर्ण होगा जो मासूम बच्चों के भविष्य की रक्षा कर सकता है।