मानसून की वजह से साउथ एशिया में आई खतरनाक बाढ़ और हुआ भूस्खलन
नई दिल्ली: इस साल अगस्त में मानसून की बारिश दक्षिण एशिया में भयंकर बाढ़ की मुख्य वजह रही। अगस्त के महीनों में हुई बारिश ने म्यांमार,दक्षिण और पश्चिमी भारत को तबाह कर दिया। इस दौरान खरतनाक विनाशकारी बाढ़ और भूस्खलन हुआ। औसत से अधिक बारिश की वजह से नदियां उफान पर आई और अपने तटों को उखाड़ फेंका। इस वजह से पहाड़ियों के अस्थिर होने से कई क्षेत्रों में भूस्खलन हुआ।
दक्षिण एशिया में आमतौर पर मानसून जुलाई और सितंबर में सबसे अधिक प्रभाव डालता है। उदाहरण के तौर पर भारत अपनी वार्षिक वर्षा का लगभग 70 प्रतिशत मानसून से प्राप्त करता है। ताजे पानी आपूर्ति को पूरी करने के लिए और फसलों को पानी देने के लिए बारिश महत्वपूर्ण है। लेकिन देश में कम से कम 15 प्रतिशत हिस्सा बाढ़ से प्रभाविक होता है और मानसून हर साल कई हजार मौतों का कारण भी बनता है।
1 अगस्त से 12 अगस्त के बीच कई जगहों पर 60 सेंटीमीटर या या उससे अधिक वर्षा हुई। ग्लोबल परसिपिटेशन मेजरमेंट(जीपीएम) जिसकी नासा के साथ पार्टनरशिप है, वो सेटेलाइड बेस्ड आंकड़े दे रहा है। इस पृष्ठ की रंगीन तस्वीरें म्यांमार में बाढ़ की स्थिति को नासा के कुछ सैटेलाइट दृश्यों में बादल के आसमान के माध्यम से प्रकट करती हैं। म्यांमार में एक भूस्खलन की वजह से 9 अगस्त को कम से कम 60 लोगों की जान गई थी। संयुक्त राष्ट्र की मदद से 80 हजार लोगों को बाढ़ प्रभावित इलाके से निकाला गया।
भारत में, बाढ़ का सबसे बुरा असर पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र और गुजरात में हुआ। इसमें सैकडो़ं लोग मारे गए। इस दौारान एक लाख से अधिक लोगों को विस्थापित किया गया। बाढ़ के पानी ने कई क्षेत्रों में सड़कों और रेल लाइनों को नुकसान पहुंचाया है, और हजारों हेक्टेयर ग्रीष्मकालीन फसलों को नष्ट कर दिया। भारत मौसम विज्ञान विभाग ने मीडिया को बताया कि 7 से 14 अगस्त के सप्ताह में देश में औसत से 45 फीसदी अधिक वर्षा हुई। हालांकि, 2019 में मानसून के (1 जून) शुरु होने के समय ये औसत 50 फीसदी से एक फीसदी अधिक है।
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