विशेषज्ञ बोले- कोरोना से लड़ने में कारगर नहीं है हर्ड इम्युनिटी
नई दिल्ली: भारत में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 18 लाख के पार हो गई है। सरकार ने लॉकडाउन भी हटा दिया है, ऐसे में माना जा रहा है कि अब हर्ड इम्युनिटी के जरिए कोरोना से लड़ा जाएगा। विशेषज्ञों के मुताबिक हर्ड इम्युनिटी उतनी सफल नहीं है, जितनी मानी जा रही है, क्योंकि औसतन 5 मरीजों में से एक में एंटीबॉडी नहीं बन पा रही है।
न्यूज 18 की रिपोर्ट के मुताबिक विशेषज्ञों ने हर्ड इम्युनिटी को कोरोना से लड़ने का बेहतरीन तरीक नहीं माना है। दिल्ली सरकार ने कोरोना से लड़ने के लिए एक पांच सदस्यीय समिति का गठन किया है। इस समिति के सदस्य डॉ. सरीन के मुताबिक हर्ड इम्युनिटी को बेहतर तरीका मानकर वायरस को फैलने देना अच्छा नहीं है। संक्रमित होने वाले व्यक्ति का तो टेस्ट के जरिए पता चल जाता है, लेकिन उन लोगों का क्या जो बचे रह जाते हैं। उन्होंने कहा कि क्या हर्ड इम्युनिटी उन लोगों का समूह है, जिनमें लक्षण नहीं थे, लेकिन उनके अंदर बीमारी थी? वायरस और बीमारी कैसे मदद करती है?
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उन्होंने बताया कि शुरूआत में आईसीएमआर का मानना था कि एक प्रतिशत लोगों में एंटीबॉडी बनी है, लेकिन दिल्ली के अध्ययन में पता चला कि ये आंकड़ा 23 फीसदी है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में 2 करोड़ लोगों में से 1.5 लाख लोग संक्रमित हुए थे। इसका मतलब 0.6 प्रतिशत लोग कोरोना वायरस की चपेट में थे, लेकिन 23 प्रतिशत लोगों में एंटीबॉडी थी।
डॉ. सरीन के मुताबिक अनुकूली प्रतिरक्षा दो भागों में से एक है। एक जो एंटीबॉडी हर इंसान बनाता है और दूसरा जो उन कोशिकाओं को मारता है, जिसमें वायरस होता है। उन्होंने कहा कि ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन दो मायने में अच्छी है, एक तो वो शरीर में एंटीबॉडी बनाती है, तो दूसरा टी-कोशिका, आपके सफेद कोशिकाओं को भी यह पता लगाने के लिए उत्तेजित करता है कि ये कहां है। उन्होंने कहा कि अगर हर्ड इम्युनिटी विकसित किए जाने की अनुमति दी जाती है, तो ये बहुत ही खतरनाक होगा।