क्विक अलर्ट के लिए
अभी सब्सक्राइव करें  
क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

‘वो मर कर भी हमारे लिए खाने का इंतज़ाम कर गए’

''वो भले ही हमें हमेशा के लिए छोड़कर चले गए हों, लेकिन उनकी मौत ज़ाया नहीं गई. उन्होंने मरकर भी हमें ज़िंदगी दी और ये निश्चित किया कि उनके बाद भी हम भूखे न मरें.''

47 साल की मंजीत कौर इराक़ में मारे गए 52 वर्षीय देविंदर सिंह की विधवा हैं.

देविंदर सिंह इराक़ में मारे गए 39 लोगों में से एक थे. सोमवार को इन मृतकों के अवशेष भारत लाए गए.

By BBC News हिन्दी
Google Oneindia News
‘वो मर कर भी हमारे लिए खाने का इंतज़ाम कर गए’

''वो भले ही हमें हमेशा के लिए छोड़कर चले गए हों, लेकिन उनकी मौत ज़ाया नहीं गई. उन्होंने मरकर भी हमें ज़िंदगी दी और ये निश्चित किया कि उनके बाद भी हम भूखे न मरें.''

47 साल की मंजीत कौर इराक़ में मारे गए 52 वर्षीय देविंदर सिंह की विधवा हैं.

देविंदर सिंह इराक़ में मारे गए 39 लोगों में से एक थे. सोमवार को इन मृतकों के अवशेष भारत लाए गए.

पंजाब के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने मारे गए हर परिवार से एक शख़्स को नौकरी देने की घोषणा की है. साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी कहा कि मृतकों के आश्रितों को 10-10 लाख रुपये की सहायता राशि दी जाएगी.

चरमपंथियों ने की हत्या

इन सभी भारतीयों को साल 2014 में अगवा कर लिया गया था और उसके बाद इराक़ के मूसल शहर में कथित आईएस चरमपंथियों ने उन्हें मौत के घाट उतार दिया था.

सिद्धू ने मारे गए लोगों के परिवारवालों को पाँच-पाँच लाख रुपये देने की घोषणा की है. साथ ही 20 हज़ार रुपये का हर्जाना भी जारी रहेगा.

मंजीत कौर कहती हैं, ''पैसे से किसी के चले जाने का दर्द तो नहीं भरता, लेकिन पैसा होने से कम से कम इस बात का संतोष तो होता है कि जो लोग पीछे बच गए हैं वो आगे की ज़िंदगी सम्मान के साथ गुज़ार लेंगे. वो इतनी दूर इराक़ नौकरी करने इसीलिए गए थे ताकि हम यहाँ एक बेहतर ज़िंदगी बिता सकें. मरकर भी वो हमें रोटी दे गए.''

पति को याद करते हुए कौर का गला रुंध जाता है. वह एक स्थानीय स्कूल में महज़ ढाई हज़ार रुपये प्रति माह के वेतन पर बच्चियों को सिलाई करना सिखाती हैं.

बड़ा लंबा इंतज़ार

कौर और उनका परिवार पूरे दिन शव के आने का इंतज़ार करता रहा.

साथ ही वो टीवी पर आ रही हर छोटी-बड़ी ख़बर पर नज़र बनाए हुए थे.

लगातार उस अधिकारी के संपर्क में भी थे जो उन्हें शव के आने के बारे में हर संभव जानकारी दे रहा था. क्योंकि उसी के बाद अंतिम संस्कार होना था. सोमवार को अंतिम संस्कार नहीं हो पाया, क्योंकि शव परिजनों तक नहीं पहुँच पाए थे.

जालंधर के डिप्टी कमिश्नर वरिंदर शर्मा ने बताया कि शव को आने में तो देर होनी ही थी. दलित आंदोलन के चलते सारी सड़के बंद थीं. ऐसे में हमने सोचा कि अंतिम संस्कार मंगलवार को ही कराना बेहतर होगा.


ये ख़बरें भी पढ़ें:


देविंदर अपने पीछे 14 साल का एक बेटा और आठ साल के जुड़वा बच्चों को छोड़ गए हैं.

पूरे वक़्त 14 साल का बेटा घर के अंदर-बाहर करता रहा. उसकी छटपटाहट से अंदाज़ा लग रहा था कि वो इंतज़ार कर रहा है.

ग़रीबी के चलते गए थे इराक़

देविंदर साल 2011 में इराक़ गए थे. इससे पहले वो यहीं रहकर मजदूरी किया करते थे और हर रोज़ क़रीब 200 से 250 रुपये कमा लेते थे.

देविंदर के परिवार ने बताया कि ग़रीबी के चलते वो इराक़ जाने को मजबूर हो गए थे.

शुरुआती संघर्ष के बाद उन्हें वहाँ मकान बनाने वाले कारीगर का काम मिल गया और उसके बाद वो हर महीने 25 हज़ार रुपये भेजा करते थे.

फ़ोन पर देविंदर से मंजीत की आख़िरी बात जून 2014 में उनके अपहरण से पहले हुई थी.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
He died and arranged for us to eat
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X