मल्लखंभ का ये नया रूप आपने देखा?
भारत में मल्लखंभ एक ज़माने से खेला जाता रहा है लेकिन वक़्त के साथ-साथ चीज़ें तेज़ी से बदल रही हैं.
ये विधा अब एक नया रूप ले रही है और तेज़ी से लोकप्रिय भी हो रही है.
आप ये सवाल कर सकते हैं कि इसमें नया क्या है जो पुराने से अलग है.
इसे आसानी से कुछ इस तरह से समझाया जा सकता है.
अब ये आधुनिक एरियल सिल्क स्पोर्ट (हवा में सिल्क कपड़े पर विभिन्न आसन करने का खेल) और पुराने रोप मल्लखंभ का मिलाजुला रूप है.
भारत में मल्लखंभ एक ज़माने से खेला जाता रहा है लेकिन वक़्त के साथ-साथ चीज़ें तेज़ी से बदल रही हैं.
ये विधा अब एक नया रूप ले रही है और तेज़ी से लोकप्रिय भी हो रही है.
आप ये सवाल कर सकते हैं कि इसमें नया क्या है जो पुराने से अलग है.
इसे आसानी से कुछ इस तरह से समझाया जा सकता है.
अब ये आधुनिक एरियल सिल्क स्पोर्ट (हवा में सिल्क कपड़े पर विभिन्न आसन करने का खेल) और पुराने रोप मल्लखंभ का मिलाजुला रूप है.
इसमें सिल्क के 70 फुट लंबे कपड़े पर विभिन्न प्रकार के आसन और योग का मिला-जुला रूप पेश किया जाता है.
सिल्क एसोसिएशन के नेशनल प्रेसिडेंट संजीव सरावगी कहते हैं, "अभी तक भारत के खेल प्राधिकरण ने इसे मान्यता नहीं दी है, लेकिन ये तेज़ी से लोकप्रिय हो रहा है. इस विधा को खेल श्रेणी में शामिल करने पर हामी ज़रूर भरी गई है."
"मल्लखंभ शुद्ध देशी खेल है, जिसकी जड़ें भारत में हैं जबकि एरियल सिल्क दुनिया के बहुत से देशों में प्रसिद्ध है, इसलिए भी इसे स्पोर्ट के तौर पर मान्यता मिलने की उम्मीद है."
बेले डांसर से एरियल सिल्क का सफर
भारत में एरियल सिल्क को स्पोर्ट्स के रूप में प्रसिद्धि दिलाने में वाली वडोदरा की नुपुर शाह प्रशिक्षण के लिए अमरीका, जापान और फ्रांस तक का सफ़र कर चुकी हैं.
वो अच्छी बैले डांसर हैं, लेकिन वह एरियल सिल्क को इसका हिस्सा मानती हैं.
फिलहाल वो मुंबई में रोप मल्लखंभ के नेशनल रेफरी सुनील गंगवानी से ट्रेनिंग ले रही हैं.
वो बताती हैं, "साल 2015 में यूट्यूब पर एरियल सिल्क देख कर मन में इस खेल की प्रेरणा मिली. शुरूआत में घर पर ही दीवार में सिल्क कपड़े को बांध कर आसन करना शुरू किया."
"बाद में स्टेडियम में और दूसरी जगहों पर प्रस्तुत करने का मौका मिल गया, धीरे-धीरे ये पैशन बन गया. इसे लोगों ने काफी सराहा. अब मैं इसे स्पोर्ट के तौर पर खेलती हूं."
8 माह में बन गई टीम
भारत में एरियल सिल्क स्पोर्ट्स के शुरू होने की कहानी भी काफी रोचक है.
हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की नगरी झांसी में 2017 में पहली बार ज़िला खेल प्रतियोगिता में नुपुर शाह ने एरियल सिल्क को प्रस्तुत किया.
तभी से खेल प्रेमी संजीव सरावगी इसे स्पोर्ट्स के रूप में स्थापित करने के प्रयास में जुट गए.
एरियल सिल्क स्पोर्ट्स एसोसिएशन के अधिकारी अनिल पटेल कहते हैं कि जनवरी 2018 में 29 राज्यों के खेल प्रतिनिधियों ने मिलकर राष्ट्रीय स्तर पर एरियल सिल्क स्पोर्ट एसोसिएशन का गठन किया.
इसके बाद 17 राज्यों ने वडोदरा में पहली वर्कशॉप का आयोजन किया गया, जहां पर नेशनल लेवल के 95 जज, 393 प्रशिक्षार्थी और 45 रेफरी को प्रशिक्षित किया गया.
बाद में ज़िला स्तर पर 407 कैंपों का आयोजन कर खेल के नियम-प्रावधान और दूसरी बारीकियां तय की गई और इससे जुड़े लोगों के बारे में उन्हें बताया गया.
अनिल पटेल का दावा है कि भारतीय ओलिंपिक प्राधिकरण से इसे स्पोर्ट्स में शामिल करने का आश्वासन मिला है.
पहला नेशनल एरियल सिल्क ओलंपिक
झांसी में पहला एरियल सिल्क नेशनल स्पोर्ट्स चैंपियशिप का आयोजन 13 से 15 जून तक हुआ. इसमें देश के 27 राज्यों से 393 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया.
मुंबई के आंजिक पाटिल डांसर हैं. एरियरल सिल्क ने उनके डांस को और अधिक निखारा है.
वो कहते हैं, "ये खेल विदेशों में काफी प्रसिद्ध है, लेकिन अब अपने देश में भी यह तेज़ी से लोकप्रिय हो रहा है."
झांसी की नाज़िया ख़ान और कांची पहले रोप मल्लखंभ सीखती थीं, लेकिन अब उनका रुझान एरियल सिल्क में काफी बढ़ गया है.
वह कहती हैं कि यह काफी अच्छा खेल है.
दम तोड़ रही प्राचीन भारतीय विद्या
कहते हैं कि 12वीं सदी में भारत में मल्लखंभ की शुरुआत हुई थी.
पेशवा बाजीराव द्वितीय ने इसे लोकप्रिय बनाने में अहम भूमिका निभाई.
दादा बालमधर देवधर मल्लखंभ के गुरु माने जाते हैं. भारत के कई इलाकों में ये खेल काफी लोकप्रिय है.
कहा जाता है कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और शिवाजी महाराज भी मल्लखंभ करते थे.
मध्य प्रदेश में मल्लखंभ को राज्य खेल का दर्जा है. हालांकि इसे अभी तक राष्ट्रीय खेलों में शामिल नहीं किया गया है जिससे इसके खिलाड़ियों को उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है.