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आप ख़ुद से प्यार करना तो नहीं भूल गए?

हम दूसरों से तो प्यार करते हैं लेकिन खुद से प्यार करना भूल जाते हैं.

By BBC News हिन्दी
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ख़ुद से प्यार करना मुश्किल होता है, बेहद मुश्किल...

हम दूसरों से तो आसानी से प्यार कर लेते हैं लेकिन शीशे के सामने खड़े होने पर जो चेहरा हमारी ओर ताकता है उसे प्यार करना आसान नहीं.

हम यह भी जानते हैं कि हमें खुद से मोहब्बत करनी चाहिए लेकिन अक़्सर हम ऐसा करने में कामयाब नहीं हो पाते. कभी अपने चेहरे की बनावट तो कभी हमारे ग़लत निर्णय हमें खुद से नफ़रत करने पर मजबूर करते हैं.

हम अपनी काया से नफ़रत करने लगते हैं, अपनी कमज़ोर आत्मशक्ति से घबराते हैं, यहां तक ही इस बात से भी नफ़रत करने लगते हैं कि हम खुद को ही पसंद नहीं करते.

ये बातें बेहद घुमावदार हैं. आसानी से समझ में ना आने वाली, लेकिन हैं सच के बेहद क़रीब. ऐसा कोई इंसान नहीं जो इन बातों से इंकार कर सके. जो यह कह सके कि उसके भीतर असुरक्षा की भावना नहीं.

जनवरी के महीने में ये मुश्किलें और ज़्यादा बढ़ जाती हैं. लंबी रातें, नया साल, बहुत से ऐसे वादे जो हम ख़ुद से करते हैं और फ़िर सोचने लगते हैं कि क्या साल पूरा होने तक हम ये वादे पूरे कर पाएंगे.

इस तरह की सोच पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं में ज़्यादा होती है. साल 2016 में 48 देशों की लाखों महिलाओं व पुरुषों पर एक शोध किया गया और पाया कि पुरुष महिलाओं के मुक़ाबले खुद पर ज़्यादा भरोसा करते हैं.

यह जानना ज़रूरी है कि जब तक हम खुद से मोहब्बत नहीं करेंगे तब तक हम दूसरों से भी प्यार नहीं कर सकते. आपको बताते हैं ऐसे कुछ रास्ते जो ख़ुद से मोहब्बत की राह पर आपको ले चलेंगे.

ख़ुद से दोस्ती करें

क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट लिंडा ब्लेयर बताती हैं कि हमें ख़ुद से दोस्ती करनी चाहिए. ख़ुद से बातें करें. वे सलाह देती हैं, ''जिस तरह हम अपने दोस्तों का ख़्याल रखते हैं वैसे ही अपना ख़्याल रखना सीखें.''

मान लीजिए किसी दिन आपका ऑफिस में बुरा दिन गुज़रा. आप ख़ुद से नफ़रत करने लगे, आपको लगने लगा कि आप किसी काम में बेहतर नही. उस वक्त ऐसा सोचिए कि अगर आपका कोई दोस्त इन्हीं हालात में आपके सामने आता तो आप उसका हौसला बढ़ाने के लिए क्या कहते. बस उसी तरह खुद का हौसला बढ़ाइए और अपने लिए नए रास्तों की तलाश कीजिए.

जब हमें असुरक्षा की भावना घेरने लगती है तो हम अपनी कमियों पर नज़र डालने लगते हैं, हम अपने मन-मस्तिष्क में अपनी नेगेटिव छवि गढ़ने लगते हैं. हम उन लोगों से ख़ुद को तौलने लगते हैं जो हमारी नज़र में बेहद कामयाब हैं. ये तमाम बातें हमें और ज़्यादा निराश करने लगती हैं.

हमें यह समझने की जरूरत है कि इस दुनिया में कोई भी परफेक्ट नहीं होता, हमारे वो दोस्त भी नहीं जो दिन-रात सोशल मीडिया पर अपनी खूबसूरत तस्वीरें पोस्ट करते रहते हैं.

सोशल मीडिया का इस्तेमाल होशियारी से करें

जो उस्मर ने बहुत सी सेल्फ-हेल्प किताबें लिखी हैं, उनकी एक किताब का नाम है 'दिस बुक विल मेक यू फ़ियरलेस'.

उस्मर कहती हैं कि सोशल मीडिया पर लोग एक-दूसरे से काफ़ी तुलना करते हैं. साल 2016 में लगभग 2000 युवाओं पर एक स्टडी की गई, जिसमें यह बात निकलकर आई की सोशल मीडिया के इस्तेमाल से डिप्रेशन बढ़ता है.

हमें सोशल मीडिया का इस्तेमाल होशियारी से करना चाहिए. हाल में हुई एक स्टडी के अनुसार दिन भर में लगभग पांच घंटे से ज़्यादा वक्त फ़ेसबुक को नहीं देना चाहिए. हमें सोशल मीडिया पर दूसरों के साथ अपनी तुलना करने से भी बचना चाहिए.

खुद से प्यार करें
Thinkstock
खुद से प्यार करें

अपने शरीर से प्यार करें

ख़ुद से नफ़रत करने वाले कारणों में हमारा अपने शरीर के प्रति कम आकर्षण एक बड़ी वजह है. यह बात महिलाओं में बहुत ज़्यादा है.

ब्रिटेन में महज़ 20 प्रतिशत महिलाओं को लगता है कि वे अपने शरीर से ख़ुश हैं. डव सेल्फ एस्टीम स्टडी में यह बात निकलकर आई. इस स्टडी के लिए 13 देशों की 10,500 महिलाओं से बात की गई.

इस स्टडी में महिलाओं ने माना की शरीर के प्रति नाखुशी के चलते वे अपने भीतर मौजूद बाक़ी खूबियों को भी नज़रअंदाज़ करने लगती हैं.

खुद से प्यार करें
Getty Images
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अपनी तारीफ़ लिखें

ख़ुद से प्यार करने की प्रक्रिया में ही उस्मर बताती हैं कि हम उन बातों को लिख कर रख लें जो बाकी लोग हमारी तारीफ़ करते हुए कहते हैं.

वे कहती हैं, ''जैसे ही कोई आपकी तारीफ़ करे, तो जब भी आपको वक्त मिले उसे लिख लें. भले ही वे बहुत कम शब्दों की तारीफ़ हो लेकिन कुछ दिन बाद आप पाएंगे कि आपके पास ख़ुद से प्यार करने लायक बहुत से शब्द हो गए हैं.''

उस्मर कहती हैं कि आमतौर पर हम अपनी नेगेटिव बातों को ही याद रखते हैं. इसिलए अगर हमारे पास ऐसे कुछ शब्द होंगे जो हमें अच्छा महसूस करा सकें तो हमें उन्हें संजोकर रखना चाहिए.

खुद से प्यार करें
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अपने महत्व को समझें

सबसे ज़रूरी बात है कि हम अपने महत्व को समझें, अपना सपोर्ट ख़ुद करें. इसका मतलब यह है कि हम अपनी ज़रूरतों को पहचाने और उसके लिए कोशिश करें.

उस्मर कहती हैं, ''जब आप कोई लक्ष्य हासिल न कर पाएं तो ज़रूरी नहीं कि खुद को कोसें और निराश हो जाएं, हमेशा खुद को दोष देना अच्छा नहीं होता.''

उन चीज़ों का चुनाव करें जिनसे आपको खुशी मिले बजाए कि वे चीज़ें करने के जो आप समझतें हो कि यह करना चाहिए.

एक अंतिम सलाह यह है कि अपनी लिस्ट बनाए जिसका नाम हो 'मैं यह करना चाहता/चाहती हूं'.यह लिस्ट न बनाएं 'मुझे यह करना चाहिए'.

BBC Hindi
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