सीएम योगी आदित्यनाथ के पीछे पड़ा 'नोएडा का मनहूस साया' इसलिए हार रही है BJP?
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लखनऊ। 10 राज्यों में हुए लोकसभा की 4 और विधानसभा की 10 सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे गुरुवार को आ चुके हैं, विपक्ष की एकता के सामने भाजपा बुरी तरह से पस्त हो गई है। एकजुट विपक्ष ने 14 में से 11 सीटें जीती हैं जबकि भाजपा ने लोकसभा की दो और विधानसभा की एक सीट गंवा दी है। बीजेपी को सबसे करारा झटका यूपी में लगा है, जहां उसके हाथ से जीती हुईं सीटें निकल गई हैं।
सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व पर उठे सवाल
पूर्ण बहुमत में आने वाली भाजपा के लिए ये हार पचाना काफी मुश्किल हो रहा है, बीजेपी की हार का ठीकरा सीएम योगी आदित्यनाथ के सिर फोड़ा जा रहा है क्योंकि ये हार उनके नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं, योगी के सीएम बनने के बाद से यूपी में 4 चुनावों में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है। जहां विपक्षी दल इसके लिए योगी सरकार कि विफलता को गिना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर राजनीतिक पंडितों ने इसके लिए नोएडा को कोसना शुरू कर दिया है।
सीएम योगी आदित्यनाथ के पीछे पड़ा 'नोएडा' का मनहूस साया?
क्योंकि नोएडा के बारे में हमेशा कहा जाता है कि जो भी सीएम यहां जाता है, वो अपनी गद्दी और ताकत दोनों से हाथ धो बैठता है और लगातार योगी के नाकाम होने की वजह नोएडा को ही बताया जा रहा है। आपको बता दें कि दिसंबर 2017 में योगी आदित्यनाथ ने नोएडा के इस मिथक को तोड़ने का प्रयास किया था और यहां आकर अपनी बहादुरी का परिचय दिया था लेकिन लगता है उनकी बहादुरी अब उन पर भारी पड़ रही है।
कोई सीएम नहीं जाना चाहता है 'नोएडा'?
गौरतलब है 'नोएडा के मनसूह साये' वाले अंधविश्वास की शुरुआत 1980 के दशक में वीर बहादुर सिंह के कार्यकाल के दौरान हुई थी। तब नोएडा दौरे से लौटने के तुरंत बाद उन्हें पार्टी ने हटा दिया था। इसके बाद से यूपी के मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल के दौरान नोएडा जाने से परहेज करने लगे। राजनाथ सिंह भी जब यूपी के सीएम बने तो अपने कार्यकाल में वह भी नोएडा नहीं गए।
माया को भी गंवानी पड़ी थी सत्ता
2011 में मेट्रो सर्विस के उद्घाटन के लिए मायावती नोएडा आईं थीं और 2012 में उन्हें सत्ता से हाथ धोना पड़ा था, इसके बाद सीएम रहते हुए अखिलेश यादव ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा जाने का कभी नाम भी नहीं लिया। उन्होंने अपने लखनऊ आवास से एनसीआर के बड़े प्रॉजेक्ट्स का उद्घाटन किया। हालांकि इसके बावजूद वो बुरी तरह से साल 2017 में सत्ता से बाहर हो गए। खैर अंधविश्वास और विश्वास की ये लड़ाई चलती ही रहेगी, देखते हैं योगी आदित्यनाथ अब इस हार से क्या सबक लेते हैं।
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