क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

'जम्मू' और 'कश्मीर' की खाई क्या हिंदू बनाम मुस्लिम हो गई है?

"जम्मू में 2008 में हुए अमरनाथ भूमि विवाद के बाद से कम्यूनल राजनीति की करंसी कैश कर गई है. तबसे धीरे-धीरे विभाजनकारी राजनीति जम्मू क्षेत्र में पनप रही थी. उसी की नतीजा है कि जो बीजेपी जम्मू में कभी इतनी स्ट्रॉन्ग नहीं थी, जो मात्र पांच-छह सीटें यहां जीत पाती थी, उसने 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में 11 सीटें जीती थीं जो बड़ी बात थी."

By आदर्श राठौर
Google Oneindia News
@RAVINDERBJPJK

हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में जम्मू-कश्मीर की छह में से तीन सीटों पर भारतीय जनता पार्टी और तीन पर नेशनल कॉन्फ़्रेंस को जीत मिली है.

हिंदू बहुल जम्मू डिविज़न की दो सीटें (जम्मू और उधमपुर) और ग़ैर-मुस्लिम बहुल लद्दाख सीट बीजेपी की झोली में बरक़रार रही हैं जबकि मुस्लिम बहुल कश्मीर घाटी की अनंतनाग, बारामूला और श्रीनगर नेशनल कॉन्फ़्रेंस के खाते में गई है.

2014 लोकसभा चुनाव में तीन सीटें जीतने वाली पीडीपी इस बार वह एक भी सीट नहीं जीत पाई.

जम्मू-कश्मीर में इस बार

  • बीजेपी को 46.39% वोट मिले जबकि 2014 में उसे 32.4% मत मिले थे.
  • पीडीपी 2.37% वोट ही ले पाई जबकि 2014 में उसे मिले मतों का प्रतिशत 20.5% था.

2008 के विधानसभा चुनावों से लेकर इस बार के लोकसभा चुनाव तक भारतीय जनता पार्टी का प्रभाव जम्मू क्षेत्र में लगातार बढ़ा है. यह बात वोट प्रतिशत में भी देखने को मिलती है और सीटों की संख्या में भी.

बहुत से विश्लेषक जम्मू और लद्दाख में बढ़ते बीजेपी के इस प्रभाव के लिए कश्मीर के साथ बढ़ती खाई और ध्रुवीकरण को मुख्य वजह मानते हैं. उनका यह भी मानना है कि 2019 चुनाव के नतीजों में भी इसी क्षेत्रीय और धार्मिक विभाजन की झलक देखने को मिली है.

लद्दाख में जीत का जश्न मनाते बीजेपी कार्यकर्ता

क्या वाकई बढ़ी खाई?

वरिष्ठ पत्रकार अनुराधा भसीन कहती हैं कि 2014 में हुए संसदीय और फिर विधानसभा चुनावों में ही जम्मू और कश्मीर के बीच का क्षेत्रीय विभेद स्पष्ट हो गया था.

नवंबर 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में पीडीपी ने सबसे ज़्यादा 28 सीटें और फिर बीजेपी ने 25 सीटें जीती थीं.

बीजेपी जम्मू डिविज़न से ये सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी जबकि पीडीपी की अधिकांश सीटें घाटी से थी. इससे पहले उसी साल मई हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जम्मू, उधमपुर और लद्दाख की सीटों पर भी जीत हासिल की थी.

अनुराधा भसीन कहती हैं, "जम्मू में 2008 में हुए अमरनाथ भूमि विवाद के बाद से कम्यूनल राजनीति की करंसी कैश कर गई है. तबसे धीरे-धीरे विभाजनकारी राजनीति जम्मू क्षेत्र में पनप रही थी. उसी की नतीजा है कि जो बीजेपी जम्मू में कभी इतनी स्ट्रॉन्ग नहीं थी, जो मात्र पांच-छह सीटें यहां जीत पाती थी, उसने 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में 11 सीटें जीती थीं जो बड़ी बात थी."

वरिष्ठ पत्रकार अल्ताफ़ हुसैन कहते हैं कि जम्मू क्षेत्र कश्मीर के बीच हमेशा से खाई रही है और इसका अक्स चुनावों के परिणामों में भी देखने को मिलता है. जम्मू में किसी और पार्टी को ज़्यादा सीटें मिलती हैं और कश्मीर में किसी और को.

वह कहते है कि, "जम्मू क्षेत्र और कश्मीर के बीच में हमेशा से विभाजन रहा है. बस एक बार जब कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ़्रेंस में गठबंधन हुआ था, तभी जम्मू के साथ-साथ कश्मीर में भी एक जैसा रुझान देखने को मिला था."

कश्मीर बनाम जम्मू

@JKNC_

वरिष्ठ पत्रकार अल्ताफ़ हुसैन कहते हैं कुछ अपवादों को छोड़ दें तो जम्मू में आमतौर पर कांग्रेस अधिकतम सीटें जीतती थीं मगर अब उसकी जगह बीजेपी ने ले ली है.

इसकी वजह क्या है? इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार अनुराधा भसीन कहती हैं कि जम्मू की राजनीति पर बाक़ी देश की राजनीति का असर रहता है.

उनका मानना है, "आज तो जम्मू में बीजेपी को स्पेस मिल गया है वरना यहां कुछ सीटें नेशनल कॉन्फ़्रेंस भी ले जाती थी तो कभी पीडीपी भी. इनका भी कुछ जगहों पर असर था. कांग्रेस तो जम्मू, कश्मीर और लद्दाख- तीनों क्षेत्रों में सीटें लाती रही है. मगर 2014 के बाद से जब देश मे हवा बदली है तो जम्मू में भी बदलेगी ही."

अनुराधा मानती हैं कि जम्मू की राजनीति में पिछले 10 सालों में ख़ासा बदलाव आया है. वह कहती हैं, "पिछले 10-15 साल में, ख़ासकर 10 सालों में यहां का माहौल कश्मीरी विरोधी बन गया है. जो कश्मीर कहेगा, हमें उससे उल्टा करना है. ऐसा मानते हैं जैसे राष्ट्रवाद का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया हो. कश्मीरियों को एंटी-नेशनल माना जाता है. तो एंटी-कश्मीर और प्रो-इंडिया पॉलिसी के मिलन से बनी भावना ही तय करती है कि जम्मू में चुनाव के दौरान किसे फ़ायदा होगा."

वह कहती हैं कि जम्मू क्षेत्र में बीजेपी उम्मीदवारों की जीत यहां के बदले हुए राजनीतिक हालात को बयां करती है.

"जम्मू के अधिकतर इलाक़ों में पीडीपी और एनसी का अच्छा ख़ासा वोटबैंक है, जहां मुस्लिम आबादी है. दोनों के उम्मीदवार न होने पर माना जा रहा था कि यह वोटबैंक कांग्रेस को ट्रांसफ़र हो सकता है. बीजेपी के बाग़ी भी चुनाव मैदान में थे. 2014 की तरह मुस्लिम और सेक्युलर वोटों के बंटने की संभावना भी इस बार नहीं थी. मगर नतीजे बताते हैं कि जम्मू में कम्यूनल राजनीति किस हद तक बढ़ चुकी है."

पीडीपी पर कैसे हावी हुई नेशनल कॉन्फ़्रेंस

@JKNC_

वरिष्ठ पत्रकार अल्ताफ़ हुसैन कहते हैं कि जम्मू से सीटें जीतने वाली बीजेपी और कश्मीर से सीटें जीतने वाली पीडीपी ने राज्य में सरकार चलाने के लिए जो गठबंधन बनाया था, उससे जम्मू और कश्मीर के क़रीब नहीं आए बल्कि दूर हो गए.

वह बीजेपी को इसके लिए ज़िम्मेदार बताते हुए कहते हैं, "बीजेपी के मंत्रियों ने जम्मू-कश्मीर के झंडे को गाड़ी पर लगाने से इनकार कर दिया, फिर बीफ़ का मसला उठा दिया. आख़िरकार यह गठबंधन टूट गया. जो विभाजन पहले से था, बीजेपी के समय और गहरा हो गया. बीजेपी-पीडीपी का गठबंधन दूरी को कम करने के बजाय इसे और बढ़ाने वाला बन गया."

अनुराधा भसीन भी मानती हैं कि इस गठबंधन के कारण ही पीडीपी को नुक़सान झेलना पड़ा है कि उसे एक भी सीट नहीं मिली और यहां तक कि महबूबा मुफ़्ती को भी हार का मुंह देखना पड़ा.

वह कहती हैं, "पीडीपी कहती थी कि हम हिंदुत्व को बाहर रखेंगे मगर फिर बीजेपी के साथ गठबंधन करके उसी को गले लगा लिया. फिर कश्मीर वादी का सूरते हाल भी बहुत बदला. 2016 में बुरहान वानी की एनकाउंटर में मौत के बाद हुए प्रदर्शनों के दौरान पैलट गन के इस्तेमाल और मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों से पीडीपी का ग्राफ़ नीचे गिरा. इससे महबूबा मुफ़्ती ने भी अपना जनाधार खो दिया."

हालांकि अनुराधा भसीन का कहना है कि कश्मीर में मतदान कम हुआ है और ऐसी स्थिति में यह पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता कि कौन सी पार्टी का प्रभुत्व बढ़ा या घटा है.

वह कहती हैं, "कश्मीर में चुनावी राजनीति को लेकर उदासीनता है. पार्टियों ने जनसभाएं नहीं कीं, रोड शो नहीं हुए. डाकबगलों या बंद कमरों में अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों से बैठकें ही हुईं. जब तक माहौल बेहतर नहीं होता, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं होते, यह नहीं कहा जा सकता कि कौन सी पार्टी किस स्थिति में है. नेशनल कॉन्फ़्रेंस को पुराने कैडर के कारण फ़ायदा हुआ है."

'विभाजन के लिए कांग्रेस भी ज़िम्मेदार"

@RAVINDERBJPJK

वरिष्ठ पत्रकार अल्ताफ़ हुसैन का मानना है कि जम्मू और कश्मीर के बीच का विभाजन बढ़ाने के लिए कांग्रेस भी ज़िम्मेदार है.

वह कहते हैं, "कांग्रेस को लेकर जो कहा जाता है कि वह चालाकी से सांप्रदायिक चाल चलती है तो इसका उदाहरण जम्मू-कश्मीर में भी देखने को मिलता है. जब यहां कांग्रेस की सरकार थी तो उसके एक मंत्री ने कहा था कि प्रदेश का मुख्यमंत्री हिंदू होना चाहिए. यह कम्यूनल राजनीति कांग्रेस ने भी की है जिससे रीजनल डिवाइड बढ़ा है."

वह कहते हैं कि मौजूदा हालात भी ठीक नहीं हैं और जम्मू-कश्मीर में अभी जो राजनीति हो रही है, उससे दोनों क्षेत्रों के बीच की खाई और बढ़ रही है.

अल्ताफ़ कहते हैं, "हाल ही में जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने लद्दाख को भी डिविज़न बना दिया जिसका क्षेत्र कश्मीर डिविज़न में था. यह फ़ैसला विधानसभा में लेना चाहिए था मगर उनहोंने अपने आप ही राजनीतिक उद्देश्य से यह क़दम उठा लिया. ऐसे क्षेत्रीय विभाजन को बढ़ाया जा रहा है."

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Has the gap between 'Jammu' and 'Kashmir' become Hindu versus Muslim?
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X