क्या भाजपा-कांग्रेस ने नई दिल्ली सीट से अरविंद केजरीवाल को वॉकओवर दे दिया है?
नई दिल्ली- मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बीजेपी और कांग्रेस प्रत्याशियों का चेहरा देखकर आम आदमी पार्टी की खुशी का ठिकाना नहीं है। पार्टी मानकर चल रही है कि मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा दिल्ली विधानसभा चुनाव में कोई मुख्यमंत्री का चेहरा तो नहीं ही दे पाई, उसे आम आदमी पार्टी सुप्रीमो के खिलाफ ढंग का एक उम्मीदवार तक नहीं मिला। गौरतलब है कि पहले तो बीजेपी और कांग्रेस ने क्रमश: 57 और 54 उम्मीदवारों की जो पहली लिस्ट निकाली, उसमें नई दिल्ली सीट से ही प्रत्याशी का नाम गायब था। सत्ताधारी एएपी ने तभी से दोनों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था कि नई दिल्ली सीट पर सीएम केजरीवाल के कद के सामने दोनों पार्टियों ने पहले ही हथियार डाल दिए हैं। लेकिन, तब कयास लगाए जा रहे थे कि दोनों पार्टियां आखिरी वक्त में कोई मास्टरस्ट्रोक चलकर केजरीवाल को उनके विधानसभा क्षेत्र में ही घेरने की कोशिश करेगी। लेकिन, यह सारी अटकलबाजियां हवा हो गईं हैं और दोनों ने ऐसे उम्मीदवारों को उतारा है जिनका तार्रुफ करवाना ही इन दोनों दलों के लिए पहली चुनौती साबित हो रही है। ऐसे में यह कहा जा रहा है कि बाकी सीटों पर जो भी हो, लेकिन कम से कम नई दिल्ली सीट पर तो अरविंद केजरीवाल को वॉक ओवर दे दिया गया है! आइए जानते हैं कि इन दावों में कितना दम है?
केजरीवाल के खिलाफ भाजपा-कांग्रेस ने उतारे अनजान चेहरे
नई दिल्ली सीट से बीजेपी के उम्मीदवार सुनील यादव और कांग्रेस के प्रत्याशी रोमेश सभरवाल चुनावी राजनीति के लिए बिल्कुल नए चेहरे नजर आ रहे हैं। ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वे आम आदमी पार्टी सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरिवंद केजरीवाल जैसी राजनीतिक शख्सियत को चुनाव मैदान में जरा भी चुनौती दे पाएंगे? नई दिल्ली सीट के लिए केजरीवाल का कद कितना बड़ा है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2013 के अपने पहले चुनाव में ही उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी 25,864 वोटों के बड़े अंतर से हरा दिया था। दीक्षित लगातार तीन-तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री रही थीं और प्रदेश की राजनीति में तब उनसे बड़ी कोई हस्ती नहीं थी। 2015 के चुनाव में अरविंद केजरीवाल के खुद का सियासी कद भी काफी बढ़ चुका था। वह 2014 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी से नरेंद्र मोदी से तो बुरी तरह हार कर आए थे, लेकिन दिल्ली की सिसायत में उनका नाम सबसे बड़ा था। 2015 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा की तेज तर्रार उम्मीदवार नुपुर शर्मा को 31,583 मतों के भारी अंतर से हराया था। कांग्रेस की कद्दावर उम्मीदवार और कई बार दिल्ली की मंत्री रह चुकीं डॉक्टर किरण वालिया तो महज 4,781 वोटों पर ही सिमट गई थीं। ऐसे में बीजेपी के युवा चेहरे सुनील यादव और करीब चार दशकों से कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय रहने के बाद भी अनजान बने रहे रोमेश सभरवाल उन्हें क्या चुनौती दे पाएंगे ये बड़ा सवाल है।
सुनील यादव पर भाजपा ने क्यों लगाया दांव?
केजरीवाल को टक्कर देने के लिए बीजेपी के अंदर से कई बड़े नाम उछकल कर सामने आ रहे थे। कुमार विश्वास (बीजेपी में नहीं हैं), बांसुरी स्वराज, मीनाक्षी लेखी, कपिल मिश्रा और रमेश बिधूड़ी तक के नामों तक की चर्चा हुई। लेकिन, माना जा रहा है कि कोई भी बड़ा नाम अरविंद केजरीवाल को चुनौती देने के लिए तैयार नहीं हो रहा था। दूसरी ओर सुनील यादव हैं, जो भले ही दिल्ली के बाहर भाजपा के अनजान चेहरा हों, लेकिन प्रदेश बीजेपी में वह जाने-माने नाम हैं और जमीनी स्तर से संगठन के काम में काफी योगदान देते रहे हैं। जानकारी के मुताबिक उन्होंने 2015 में भी इसी सीट से अपनी दावेदारी पेश की थी। नई दिल्ली सीट के जोरबाग के स्थानीय होने और उनका युवा और राजनीति में संघर्ष करने की उनकी छवि को देखकर ही शायद पार्टी ने उनपर दांव लगाया है। भारतीय जनता युवा मोर्चा के मंडल अध्यक्ष से सियासी करियर शुरू करते हुए वे युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष तक पहुंचे हैं। उनकी तेज-तर्रार छवि और क्षेत्र में विशेष पहचान होने की वजह से शायद बीजेपी को उनमें उम्मीद की एक किरण दिखाई दे रही है।
रोमेश सभरवाल के नाम पर क्यों लगी मुहर?
कांग्रेस प्रत्याशी रोमेश सभरवाल भी भले ही बाहर के लोगों के लिए अनजान हों, लेकिन वह पुराने कांग्रेसी हैं। एनएसयूआई के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सभरवाल को टिकट मिलने की एक वजह यह भी हो सकती है कि नई दिल्ली सीट से शीला दीक्षित के बाद कांग्रेस का सबसे दमदार चेहरा अजय माकन ने चुनाव लड़ने से ही मना कर दिया था और उनपर दबाव न पड़े शायद यही सोचकर वह ऐन वक्त पर अमेरिका निकल लिए। हो सकता है कि कांग्रेस ने सभरवाल पर इसलिए दांव लगाया हो, क्योंकि वे अजय माकन के विरोधी खेमे के माने जाते हैं और मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा से उनकी अच्छी बनती है। बीजेपी के सुनील यादव की तरह ही सभरवाल क्षेत्र के लिए अनजान नहीं हैं, लेकिन सवाल ये है कि जिस अरविंद केजरीवाल को नई दिल्ली सीट पर शीला दीक्षित और किरण वालिया चुनौती नहीं दे पाईं, क्या वह इस बार क्षेत्र के मतदाताओं का रुख बदलने में कामयाब हो सकेंगे?
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आम आदमी पार्टी का बढ़ा उत्साह
आम आदमी पार्टी, कांग्रेस को तो किसी लड़ाई में ही नहीं मानती और बीजेपी के लिए मानकर चल रही है कि उसने अनजान उम्मीदवारों को अरविंद केजरीवाल के मुकाबले उतारकर एक तरह से चुनाव से पहले ही हथियार डाल दिया है। पार्टी प्रवक्ता और विधायक सौरभ भारद्वाज ने बीजेपी के उम्मीदवार का लिस्ट में नाम देखकर ट्वीट किया है, "इस लिस्ट और अरविंद केजरीवाल के खिलाफ उम्मीदवार को देखने के बाद ऐसा लगता है कि बीजेपी ने सरेंडर कर दिया है।"
8 फरवरी को डाले जाएंगे वोट
बता दें कि दिल्ली में 8 फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जाने हैं। मंगलवार को यहां की सभी 70 सीटों के लिए नामांकन का आखिरी दिन है। 11 फरवरी को वोटों की गिनती होगी। राजधानी की 70 में से 58 विधानसभा सीट सामान्य श्रेणी की हैं, जबकि 12 सीटें अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हैं। 2015 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को यहां 67 सीटों पर कामयाबी मिली थी और बीजेपी सिर्फ 3 सीटें ही जीत पाई थी। जबकि, कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था।
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