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हरियाणा में बहुमत से दूर रहने के बीजेपी को हुए ये राजनीतिक फायदे

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नई दिल्ली- हरियाणा में बीजेपी बहुमत से 6 सीटें पीछे रह गई, लेकिन फिर भी वहां ऐसे सियासी संयोग बनते चले गए कि पार्टी की मौजूदा और भविष्य की राजनीति के लिए भी कई सारे में मौके मिल गए। पांच साल तक अकेले सरकार चलाने के बाद जब भारतीय जनता पार्टी के सामने जनता ने कड़ी चुनौती पेशकश की तो साथ ही साथ उसे उन कठिनाइयों से निकलने का रास्ता भी दे दिया। अभी वहां जिस तरह के सियासी समीकरण बने हैं, उससे लगता है कि अगर अबकी बार मनोहर लाल खट्टर ने स्थायित्व के साथ सरकार चला ली तो यह भविष्य में भी बीजेपी के लिए फायदे का सौदा हो सकता है।

जाटों को रिझाने का मौका

जाटों को रिझाने का मौका

2014 में जब से बीजेपी हरियाणा में सत्ता में आई है, जाटों के साथ उसकी दूरी बनी हुई दिखी है। 2016 के जाट आरक्षण आंदोलन के बाद से तो खट्टर सरकार से उनकी तल्खी और ज्यादा बढ़ती चली गई। मौजूदा चुनाव में कांग्रेस और जननायक जनता पार्टी ने बीजेपी से जाटों की इसी नाराजगी का भरपूर फायदा भी उठाया है। अब जब दुष्यंत चौटाला की पार्टी के साथ पार्टी का चुनाव के बाद गठबंधन हो गया है और वे उपमुख्यमंत्री बनाए जा चुके हैं तो बीजेपी को जाटों की नाराजगी दूर करने का बहुत बड़ा मौका मिला है। खासकर इसलिए क्योंकि, चौधरी देवीलाल भी कांग्रेस विरोध की ही राजनीतिक पैदाइश थे और दुष्यंत अपने परदादा की ही सियासी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। जबकि, हरियाणा में अभी भी कांग्रेस ही बीजेपी की मुख्य प्रतिद्वंद्वी है, जिसकी कमान पिछले करीब डेढ़ दशक से दिग्गज जाट नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा के हाथों में है।

बहुमत नहीं होने के बावजूद स्थायित्व का मौका

बहुमत नहीं होने के बावजूद स्थायित्व का मौका

जैसे ही बीजेपी को लगा कि हरियाणा में सरकार बनाने के लिए उसे 6 सीटें कम पड़ेंगी, उसने तुरंत 7 निर्दलीय विधायकों से संपर्क साधना शुरू कर दिया था। शुरू में वह जनननायक जनता पार्टी से समर्थन लेने से बचना चाहती थी। इसका कारण ये था कि चौटाला को डिप्टी सीएम और कुछ मंत्री पद भी देना पड़ता। लेकिन, भाजपा के मैनेजरों ने तुरंत सोचा कि सिर्फ निर्दलीय विधायकों के दम पर सरकार बनाना खतरे से खाली नहीं है, जबकि 7 में से 5 निर्दलीय विधायक भाजपा के ही बागी हैं। तब पार्टी ने जननायक जनता पार्टी के साथ तालमेल कर लेना ही मुनासिब समझा। इस तरह से हरियाणा में आज हालात ऐसे बन गए हैं कि खट्टर सरकार को तबतक कोई खतरा नहीं है जबतक दुष्यंत और कम से कम 6 निर्दलीय विधायक एकसाथ समर्थन वापस न ले लें।

कांडा के बिना भी बन गया काम

कांडा के बिना भी बन गया काम

एक वक्त तय लग रहा था कि बीजेपी को हरियाणा में विवादित विधायक और लोकहित पार्टी के मुखिया गोपाल कांडा का भी समर्थन लेना पड़ सकता है। कांडा ने खुद अपनी ओर से बीजेपी को ये ऑफर भी दिया था। लेकिन, इसके खिलाफ बीजेपी के अंदर से ही विरोध के सुर फूट पड़े थे। उमा भारती ने सार्वजनिक तौर पर इस विचार का विरोध किया। सोशल मीडिया पर भी बीजेपी की फजीहत शुरू हो गई थी। कांग्रेस ने इस मुद्दे को जिस तरह से उठाना शुरू किया, उससे हरियाणा के बाहर भी बीजेपी को नुकसान झेलना पड़ सकता था। लेकिन, जब 7 निर्दलीय विधायकों और जननायक जनता पार्टी ने बीजेपी को समर्थन दे दिया तो बीजेपी को कांडा से भी समर्थन लेने की आवश्यकता ही नहीं रह गई। कांडा पर गीता शर्मा केस में रेप, प्रताड़ना और खुदकुशी के लिए उकसाने जैसे आरोप हैं। गीता की मौत के 6 महीने बाद उनकी मां ने भी 2013 में आत्महत्या कर ली थी। इस तरह से भले ही बीजेपी हरियाणा में बहुमत से पीछे रह गई, लेकिन वहां चुनाव के बाद सत्ता के समीकरण ऐसे बनते चले गए, जिसने बीजेपी की कमियों की भरपाई तो की ही, भविष्य के लिए उसे बड़े मौके भी दे दिए।

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English summary
Haryana:These political benefits to BJP by staying away from majority
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