गुटबाजी के भंवर में फंसी कांग्रेस को हरियाणा में एक बार फिर ले डूबेंगे बागी?
बेंगलुरू। हरियाणा में गुटबाजी की शिकार कांग्रेस पार्टी के लिए मुसीबतों का दौर खत्म होता नहीं दिख रहा है। हरियाणा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर के इस्तीफे के बाद पार्टी की रही-सही उम्मीद भी धूमिल होती दिख रही है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा और अशोक तंवर के बीच खिंची तलवार का खामियाजा का पार्टी हाईकमान पिछले कई वर्षों से झेल रही थी।
हालांकि पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी को दूर करने के लिए हाल ही में हरियाणा कांग्रेस की कमान कुमारी शैलजा के हाथ में सौंप दी गई थी, लेकिन बागियों के तेवर कमजोर नहीं पड़े। अशोक तंवर के बाद दिग्गज नेता प्रोफेसर संपत सिंह ने भी पार्टी छोड़ने का ऐलान किया है। पूर्व वित्त मंत्री व गृह मंत्री रहे संपत सिंह ने कांग्रेस पर धोखाधड़ी करने का आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ने का ऐलान किया।
कांग्रेस के खिलाफ बगावती तेवर में अपनाए हुए तंवर ने कहा है कि वो अब कांग्रेस का नाश करने वालों के खिलाफ पूरे प्रदेश में प्रचार करेंगे। साथ ही, पूर्व सीएम हुड्डा पर तंज कसते हुए कहा कि हरियाणा में पुत्र मोह में पार्टी का सत्यानाश हुआ है। तंवर का कहना है कि उन्होंने पार्टी के लिए दिन रात काम किया था, लेकिन उनका पांच साल का संघर्ष नहीं दिखा, बल्कि 14 दिन की चौधर देखी गई है। उन्होंने कहा कि पूर्व सीएम भूपिंदर सिंह हुड्डा जहां से चुनाव लड़ रहे, वहां जाकर वो कांग्रेस के खिलाफ चुनाव प्रचार करेंगे।
गौरतलब है कांग्रेस हरियाणा में ही नहीं, पूरे देश में आज अपने अस्तित्व के संकट से गुजर रही है और माना जाता है कि इसकी वजह कांग्रेस के राजनीतिक विरोधी नहीं, बल्कि पार्टी के आंतरिक विरोधाभास हैं। तंवर के मुताबिक कांग्रेस के ही कुछ नेता 'कांग्रेस मुक्त भारत' अभियान चला रहे हैं। अपनी पीड़ा जाहिर करते हुए तंवर ने कहा कि मेरा मसीहा ही मेरा कातिल है!
मालूम हो, अशोक तंवर का इस्तीफा हरियाणा कांग्रेस में इस्तीफे का दौर शुरू गया। तंवर के बाद गुरुग्राम में पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राजेश यादव, लीगल सेल के प्रदेश अध्यक्ष नवीन शर्मा, गुरुग्राम यूथ जिला अध्यक्ष, राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर महावीर, व्यापार सेल प्रदेश चेयरमैन, महिला अध्यक्ष समेत दर्जन भर पदाधिकारियों ने प्रेस वार्ता कर अपने इस्तीफों का ऐलान किया।
दरअसल, अशोक तंवर पार्टी हाईकमान से अपने समर्थकों के लिए 15 टिकट मांग रहे थे, लेकिन जब टिकटों की घोषणा हुई तो तंवर के हिस्से में एक भी सीट नहीं आयी। यही नहीं, तीन दिन पहले नाराज़ तंवर ने अपने समर्थकों के साथ राजधानी दिल्ली में सोनिया गांधी के घर के बाहर शक्ति प्रदर्शन किया था।
तंवर के इस्तीफ़े के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि वो बीजेपी जा सकते हैं, लेकिन इसका खंडन करते हुए तंवर ने कहा कि अगर ऐसा करना होता तो वो पहले ही कर चुके होते। बकौल तंवर, मैं किसी भी दल में शामिल नहीं हुआ हूं, अब मैं आराम करूंगा।
इससे पहले, पूर्व हरियाणा कांग्रेस अशोक तंवर ने पार्टी पर 5 करोड़ रुपए लेकर टिकट बांटने का आरोप लगाया था। अशोक तंवर ने सोहना सीट के लिए 5 करोड़ में टिकट बेचे जाने का आरोप सरेआम लगाया था, जिसके बाद अशोक तंवर के कांग्रेस में बने रहना मुश्किल था। मार्गरेट अल्वा का उदाहरण तो यही कहता है कि कांग्रेस नेतृत्व इस बात को बर्दाश्त नहीं करता।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद से नाराज चल रहे तंवर ने पार्टी के उन नेताओं पर सवाल उठाते हुए कहा कि कमजोर व गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि से आने वाले परिश्रमी कार्यकर्ताओं की कोई इज्जत नहीं है, क्योंकि लगता है कि धन, ब्लैकमेलिंग और दवाब की नीति काम कर रही है। वहीं, नई प्रदेश अध्यक्ष कुमारी शैलजा का कहना है कि अब अशोक तंवर का चैप्टर बंद हो चुका है और वह चुनाव जीतने की कोशिशों में लगी है।
उल्लेखनीय है अशोक तंवर को पांच वर्ष पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांदी ने हरियाणा कांग्रेस की कमान सौंपी थी, लेकिन सोनिया गांधी के अध्यक्ष पद पर लौटते ही अशोक तंवर की कुर्सी चली गई है। तंवर का आरोप है कि कांग्रेस में राहुल गांधी के वफादार नेताओं को पार्टी में किनारे लगाया जा रहा है।
तंवर की बात में दम तो लगता है, क्योंकि अशोक तंवर की ही तरह मुंबई में कांग्रेस नेता संजय निरुपम भी बगावती रूख अख्तियार किए हुए हैं। अशोक तंवर की ही तरह संजय निरुपम का भी आरोप है कि राहुल गांधी से जुड़े लोगों की उपेक्षा की जा रही है। दरअसल, संजय निरुपम भी उन नेताओं में शुमार किए जाते हैं, जो सोनिया गांधी के आलोचक हैं।
यह भी पढ़ें- संजय निरुपम ने खड़गे के खिलाफ खोला मोर्चा, कहा-ऐसे नेता कांग्रेस को बचाएंगे या निपटाएंगे