क्या अभी भी पार्टियों को महिलाओं पर भरोसा नहीं ?
बेंगलुरु। सिनेमा में सफलता, अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में मेडल जीतने, माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करने और विश्व सुंदरी का ताज जीतने का रिकार्ड जीत कर विश्व में हरियाणा की महिलाओं ने अपना ही नहीं देश का नाम रोशन कर हरियाणा को गौरवान्वित किया लेकिन इसके बावजूद राजनीतिक पार्टियां उनको तबज्जों देने में कोताही बरत रही हैं। हरियाणा राज्य की मुख्य राजनीतिक पार्टियों ने आने वाले विधानसभा चुनावों में जिस तरह से टिकट वितरण किया है उससे यही लगता है कि इस राज्य में महिलाओं के संघर्ष खत्म होने में अभी और वक्त लगेगा। ऐसे में यहीं लगता हैं कि पार्टियों को महिलाओं पर भरोसा नहीं हैं?
पहले जहां हरियाणा की बात होती थी तो वहां पर महिलाओं पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार और 'लड़कियों की हत्या' करने के मामले में बदनाम था। लेकिन अब हरियाणा की बात होती है तो फोगाट बहनों और साक्षी मलिक की कुश्ती, सायना नेहवाल का बैडमिंटन और मानुषी छिल्लर की खूबसूरती जेहन में आती है। समय के साथ-साथ हरियाणा ने काफी हद तक महिलाओं के प्रति अपनी सोच बदली है। नतीजा ये है कि पैदा होते ही बच्चियों को मार देने वाले राज्य में लिंग अनुपात में सुधार आ रहा है। बच्चियां पढ़ाई कर रही हैं, खेलों को अपना रही हैं, करियर बना रही इस राज्य से ऐसे नाम निकलकर आ रहे हैं जो दुनियाभर में हरियाणा का नाम रोशन कर रहे हैं।
चुनाव में सम्मानित भागीदारी न देकर दोहराई जा रही गलती
अब महिलाओं के लिए हरियाणा सांस लेने लायक हो गया है। लेकिन अगर आप इससे ज्यादा की उम्मीद करते हैं तो हरियाणा उतना भी नहीं बदला। क्योंकि महिलाओं को लेकर अक्सर राजनीतिक पार्टियां महिला हित की बातें करती हैं लेकिन जब चुनाव का समय आता है तो राजनीतिक दल के टिकट के बंटवारा ये साबित कर देता हैं कि उनकी कथनी और करनी दोनों अलग हैं। महिलाओं को सत्ता में लाए बिना महिलाओं के हित की बात करना बेमानी है और जब बात हरियाणा जैसे राज्य की छवि को सुधारने और विकास की हो तो महिलाओं को तो आगे लाना ही होगा। क्योंकि वर्षों में अन्य राज्यों की अपेक्षा सबसे अधिक इस प्रदेश की महिलाओं ने पुरुषवादी मानसिकता का दंश झेला हैं।
ऐसे में चुनावों में महिलाओं को राजनीतिक पार्टिंयां टिकट देने में कोताही बरत कर चुनाव में सम्मानित भागीदारी न देकर एक बार फिर वही गलती दोहराई जा रही है। पार्टियों ने जिन भी महिलाओं को टिकट दिया ऐसा ही लग रहा कि हारियाणा में महिलाओं पर सिर्फ एक ही अहसान हो रहा है । हरियाणा में विधानसभा की कुल 90 सीटों पर चुनाव होने हैं। लेकिन उम्मीदवारों की सूची में महिलाओं की संख्या कम हैं। हर क्षेत्र में इस राज्य की महिलाएं आगे हैं लेकिन राजनीति में नहीं। हरियाणा की खास बात ये है कि इस राज्य की 90 सीटों में से 58 सीटें ऐसी हैं जहां से कभी भी कोई महिला विधायक बनी ही नहीं।
कांग्रेस ने मात्र 9 महिलाओं को दिया टिकट
लंबे अरसे से महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग करने वाली कांग्रेस पार्टी ने भी महिलाओं को टिकट देने में कोताही बरती हैं। कांग्रेस ने 90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए केवल 9 सीटों पर महिलाओं को टिकट दिए हैं। यानी विधानसभा में भागीदारी के लिए सिर्फ 10 प्रतिशत महिलाओं को ही मौका दिया गया है। कांग्रेस ने महिलाओं पर तब भरोसा नहीं कि जबकि हरियाणा राज्य की कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष एक महिला हैं। बता दें कांग्रेस पार्टी की वर्तमान अध्यक्ष कुमारी शैलजा ही एकमात्र ऐसी महिला हैं जो तीन बार लोकसभा पहुंच चुकी है। दो बार अंबाला सीट से और एक बार सिरसा सीट से। कांग्रेस ने 2014 के चुनावों में 10 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिनमें से तीन महिलाएं जीती थीं। कांग्रेस अध्यक्ष शैलजा खुद मानती हैं कि हरियाणा ने खूब तरक्की की है, लेकिन जब महिलाओं की बात आती है तो अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। इस समस्या को हल करने के लिए अधिक से अधिक महिलाओं को आगे आना होगा।
भाजपा ने वहीं दांव लगाया जहां जीत की संभावना है प्रबल
मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से मुक्ति दिलाने वाली और महिलाओं के हितों की रक्षक होने का डंका पीटने वाली भारतीय जनता पार्टी जो इस राज्य में सत्ता में है। उसने भी हरियाणा विधान सभा चुनाव में महिलाओं को टिकट देने में कंजूसी दिखायी हैं। इस मामले में भाजपा भी कांग्रेस जैसी ही है। कांग्रेस ने जहां 9 महिलाओं को टिकट देकर चुनावी दंगल में मुकाबले के लिए उतारा हैं वहीं भाजपा ने 90 सीटों में से 12 पर महिला प्रत्याशियों को चुनाव में उतारा है। ऐसा तब हैं जब भाजपा ने 2014 में पार्टी ने 15 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, इनमें से 8 महिलाओं ने जीत दर्ज की थी। इस बार भाजपा ने वहीं दांव लगाया है जहां जीत की संभावना प्रबल हो।
बता दें बीजेपी ने इस बार रेसलर बबीता फोगाट और स्टार सोनाली फोगाट को टिकट दिया है जो दादरी और अदमपुर से चुनाव लड़ेंगी। सोनाली फोगाट को हरियाणा की आदमपुर सीट पर पूर्व सीएम भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा गया हैं। बता दें भजन लाल के परिवार का एक भी सदस्य पिछले 52 साल में कोई भी चुनाव नहीं हारा। भाजपा ने आदमपुर का किला भेंदने के लिए सोनाली फोगाट को टिकट दिया हैं। गौर करने वाली यह बात हैं कि पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी हरियाणा के अंबाला से थीं। उनकी उपलब्धियों से राज्य में बहुत समय से स्थापित रुढ़िवादी वर्जनाओं को तोड़ने में मदद मिली है।इसके साथ ही भाजपा के लिए वह राजनीति का नायाब नगीना थीं।
क्षेत्रीय दलों को महिलाओं पर दिखाया भरोसा
देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियां कांग्रेस और बीजेपी से अच्छे तो यहां के क्षेत्रीय दल हैं जिन्होंने महिलाओं पर इन पार्टियों से ज्यादा भरोसा दिखाया है। आईएनएलडी ने इस बार 15 महिला प्रत्याशियों को टिकट दिए हैं। जबकि जननायक जनता पार्टी जेजेपी ने सिर्फ 7 महिलाओं को ही टिकट दिए। आईएनएलडी ने 2014 में 16 महिलाओं को टिकट दिए थे। इसके अलावा बसपा ने 6, हजकां ने 5, हलोपा ने 12 और निर्दलीय के रूप में 33 महिलाएं चुनाव मैदान में उतरी थीं। 2014 हरियाणा चुनाव में सभी पार्टियों से कुल 115 महिलाएं चुनावी मैदान में उतरी थीं। इस बार के चुनावों में खास बात यह भी है कि राज्य में सात महिलाएं बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनावी दंगल में ताल ठोंक रही हैं। जबकि आज तक कोई निर्दलीय महिला उम्मीदवार विजयी घोषित नहीं हुई है।
बंसीलाल को हराकर पहली सांसद बनी थीं चंद्रवती
पहली महिला सांसद की बात करें तो यह श्रेय चंद्रवती को हासिल है। वह जनता पार्टी के टिकट पर 1977 में भिवानी सीट से विजयी हुईं थीं। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेहद निकट समझे जाने वाले नेता बंसी लाल को हराया था। हालांकि बाद में वह कांग्रेस में शामिल हो गईं थीं और 1990 में वह पुड्डुचेरी की राज्यपाल भी बनीं। राज्य से अब तक 151 सांसद चुने गए हैं जिनमें से सिर्फ आठ महिलाएं ही सांसद बन सकीं हैं। कांग्रेस की कुमारी शैलजा ही एकमात्र ऐसी महिला हैं जो तीन बार लोकसभा पहुंच सकीं है। दो बार अंबाला सीट से और एक बार सिरसा सीट से। भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से 2009 में सांसद रहीं बंसी लाल की पोती एक बार फिर मैदान में हैं। उन्होंने कहा कि महिलाएं सशक्त राजनीतिज्ञ हो सकती हैं। मेरी मां (किरण चौधरी) ने खुद को साबित किया है। यह दुख की बात है कि अब तक बहुत कम संख्या में महिलाएं सांसद निर्वाचित हुई हैं। मैं महिलाओं से आगे आने की अपील करती हूं।
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