हरियाणा विधानसभा चुनाव: भाजपा का ‘मिशन 75’हो पाएगा पूरा !
बेंगलुरु। हरियाणा में चुनावी संग्राम शुरु हो गया हैं। चुनाव आयोग द्वारा तरीखों की घोषणा के साथ हरियाणा की सत्ता पर काबिज होने के लिए सभी राजनीतिक पार्टियां मैदान में कूद चुकी हैं। सभी पार्टियां अपना जिजाउ उम्मीदवार ही दांव लगाने का मन बना चुकी हैं। हरियाणा चुनाव 2019 में बीजेपी को मिली बंपर जीत के बाद भाजपा हरियाणा में दोबारा काबिज होने के लिए आश्वस्त हैं फिर भाजपा ने टिकट वितरण को लेकर कमर कस ली है। टिकट आवंटन के साथ ही पार्टी का संकल्प पत्र तैयार करने को लेकर भी थिंक टैंक जुटा हुआ है। वहीं कांग्रेस समेत तमाम रीजनल पार्टियों भी अपनी किस्मत अजमाने के लिए टिकट के बंटवारें को लेकर जोड़ तोड़ कर रही हैं।
बता दें दिल्ली से सटे इस राज्य में वोटिंग 21 अक्टूबर को होगी और नतीजे 24 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले दिनों रोहतक की रैली के जरिए पहले ही चुनाव प्रचार का आगाज कर चुके हैं और पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री का चेहरा मनोहर लाल खट्टर हैं यह भी साफ हो चुका हैं। हरियाणा में इस बार अमित शाह ने 'मिशन 75'का नारा दिया है। गृह मंत्री अमित शाह ने हरियाणा में बीजेपी के लिए 90 में से 75 सीट जीतने का मिशन तय किया हैं। बता दें साल 2009 तक बीजेपी के पास 90 उम्मीदवार तक नहीं होते थे और लोग चुनावों से ठीक पहले पार्टी ज्वाइन करते थे और टिकट पा जाते थे.। लेकिन 2019 की बंपर जीत का असर है कि इस विधानसभा चुनाव में हर सीट पर बीजेपी के एक-एक टिकट के लिए मारामारी मची हुई हैं।
गौरतलब है कि फरवरी 2016 में हुए हिंसक जाट आंदोलन ने ना सिर्फ हरियाणा की कानून-व्यवस्था को बर्बाद किया बल्कि सूबे की सामाजिक समरसता को भी गहरे घाव दिए। लगा कि पहली बार मुख्यमंत्री बने मनोहर लाल खट्टर से हरियाणा संभल नहीं पाएगा। लेकिन 2014 विधानसभा चुनाव में करीब 33 प्रतिशत वोट पाने वाली बीजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में करीब 58 फीसदी वोट और लोकसभा की सभी 10 सीटें जीतकर खुद को कतार में सबसे आगे खड़ा कर दिया है।
विगत रविवार को नई दिल्ली में भाजपा प्रदेश चुनाव समिति की बैठक हुई। इसमें टिकट फाइनल करने को लेकर सभी सदस्यों से सुझाव लिए गए। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने बैठक की अध्यक्षता की। सूत्रों के अनुसार भाजपा के मौजूदा सभी 48 विधायकों की टिकट पक्का नहीं है। पार्टी 75 पार का लक्ष्य पूरा करने के लिए चुनाव में सिर्फ और सिर्फ जिताऊ विधायकों पर ही दांव खेलेगी। जीतने की गारंटी न रखने वाले विधायकों की टिकट कटना तय है। उनकी जगह जीतने की क्षमता रखने वाले नए चेहरों को पार्टी हाईकमान चुनाव मैदान में उतारेगा। भाजपा में हर सीट पर टिकटों के लिए मारामारी है। दूसरे दलों से टिकट के चाहवान अनेक नेता भी पाला बदलकर भाजपा में आए हैं। चुनाव समिति की बैठक में उनके नामों पर भी चर्चा हुई। खासकर जो विधायक दूसरे दलों से आए हैं, उनके जीतने को लेकर विचार-विमर्श किया गया।
सर्वे के आधार पर ही भाजपा देगी टिकट
पार्टी सभी नब्बे सीटों पर कराए गए तीन सर्वे को भी ध्यान रखेगी। एक सर्वे जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान हुआ है, जबकि एक प्रदेश भाजपा और तीसरा पार्टी आलाकमान ने कराया है। तीनों सर्वे में खरा उतरने वालों की ही टिकट तय मानी जाएगी। सीएम की जनआशीर्वाद यात्रा के दौरान जुटाई गई भीड़ का दावा करने वाले नेताओं को भी सर्वे में परखा गया है। भीड़ वास्तव में किसने जुटाई, लोग खुद आए या लाए गए, इन सब बातों की पड़ताल हुई है। रविवार को चुनाव समिति की बैठक में सीएम मनोहर लाल ने सभी से जिताऊ प्रत्याशियों को लेकर राय जानी। मौजूदा विधायकों की परफार्मेंस, उनके हो रहे विरोध पर भी चर्चा की गई। जिन सीटों पर उम्मीदवारों को लेकर कोई संशय नहीं है, उनकी सूची पहले या दूसरे नवरात्र में जारी हो सकती है। तीन-चार अक्टूबर तक सारे टिकट बांट दिए जाएंगे ताकि उम्मीदवार नामांकन कर फील्ड में जुट सकें।
कांग्रेस में कलह
कांग्रेस पार्टी बीजेपी से तब पंजा लड़ाए जब उसकी अपनी लड़ाइयां खत्म हों. पार्टी के कद्दावर नेता और दो बार के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुडा को बागी तेवरों के बाद पार्टी ने विधायक दल का नेता बनाया गया है। चुनाव की दहलीज पर कांग्रेस ने अशोक तंवर की जगह कुमारी शैलजा को लाकर अपना प्रदेश अध्यक्ष भी बदला है। अशोक तंवर की तरह ही शैलजा भी दलित समुदाय से हैं. हुडा जाट हैं और उन्हें पार्टी के विधायक दल का नेता बनाकर कांग्रेस ने इशारा दिया है कि वो पार्टी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार हैं। लेकिन जैसे लट्ठ पार्टी में बज रहे हैं उसके चलते वोटर के जहन में तस्वीर साफ नहीं है।
देवी लाल की बिखरी राजनीतिक विरासत
देवी लाल परिवार में दो फाड़ के बाद उनके परिवार की युवा पीढ़ी ने जननायक जनता पार्टी बनायी थी। इसी साल जनवरी में जेजपी ने जींद उपचुनाव की शक्ल में पहला चुनाव लड़ा। बीजेपी जीती और जेजेपी दूसरे नंबर पर रही लेकिन उसके बाद से दो युवा चौटालाओं की ये पार्टी कोई खास असर नहीं छोड़ पाई है। गौरतलब हैं कि जेजेपी ने 2019 का लोकसभा चुनाव 'आम आदमी पार्टी'के साथ मिलकर लड़ा था।
ओमप्रकाश चौटाला की आईएनएलडी के हालिया प्रदर्शन खराब रहे हैं। हरियाणा में जमीन तलाश रही मायावती की बीएसपी और आईएनएलडी के गठबंधन की सुगबुगाहट हुई थी लेकिन वो हुआ नहीं. होता तो जाट और दलित वोट का एक अच्छा सियासी गठजोड़ बन सकता था।
जातीय समीकरण
हरियाणा में जाट करीब 28 प्रतिशत हैं और दलित करीब 19 प्रतिशत है। वैसे पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने 'हिंदू वोटर' की बड़ी छतरी के नीचे जाट, दलित, ब्राह्मण, ठाकुर, यादव, गुज्जर, बनिया, पिछड़े, अति-पिछड़े जैसी जातियों में फैली क्षेत्रिय दलों की पैठ को बुरी तरह प्रभावित किया है। दिसंबर 2018 में हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में कांग्रेस को जिताकर वोटरों ने संदेश दिया था कि विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी के नाम पर वोट नहीं देते. लेकिन कश्मीर में आर्टिकल 370 हटाने और लगातार पाकिस्तान को धमकाने के इस माहौल में हो रहे ये चुनाव आने वाले दिनों का बड़ा राजनीतिक संदेश देंगे।
हरियाणा में वोटर और राजनीतिक पार्टियां
हरियाणा में कुल 1.82 करोड़ वोटर है। लेकिन देश की आबादी में सिर्फ 2 फीसदी हिस्सेदारी करने वाले हरियाणा राज्य में राजनीतिक पार्टियों की लंबी कतार हैं। चुनावी मैदान में भाजपा , जेजेपी, कांग्रेस,आईएनएलडी, बीएसपी, समेत कांग्रेस में मर्ज हो चुकी कुलदीप बिश्नोई की एचजेसी, पूर्व मुख्यमंत्री बंसी लाल की एचवीपी पार्टी अपनी किस्मत अजमाएगी। इस चुनाव में एक तरफ भाजपा होगी और दूसरी तरफ कांग्रेस समेत अन्य पार्टियां होगी ।
2014 के चुनाव के चुनाव परिणाम
बीजेपी
ने
हरियाणा
विधान
सभा
2014
के
चुनाव
में
भाजपा
47
सीट
जीत
कर
सत्ता
पर
काबिज
हुई
थी।
ओमप्रकाश
चौटाला
की
आईएनएलडी
को
मिली
थीं
19
सीट
पर
जीत
मिली
थी।
कांग्रेस
के
हिस्से
15
सीट
आई
थी