हरियाणा विधानसभा चुनाव: पीएम, सीएम बनाने वाले देवीलाल की पार्टी INLD क्यों नहीं रही मुकाबले में
नई दिल्ली। चौधरी देवीलाल चाहते तो भारत के प्रधानमंत्री बन सकते थे। लेकिन नहीं बने। उन्होंने प्रधानमंत्री का ताज विश्वनाथ प्रताप सिंह को दे दिया था। राजनीति में यह त्याग दुर्लभ है। ताऊ के नाम से मशहूर देवीलाल कभी किंग मेकर थे। लालू यादव को उन्होंने ही बिहार में मुख्यमंत्री बनवाया था। उन्होंने पीएम, सीएम बनाये। लेकिन अब वक्त बदल गया है। उन्होंने जिस इंडियन नेशनल लोकदल की स्थापना की थी, अब खंड-खंड हो कर बिखर चुका है। तीसरी पीढ़ी तक आते-आते उनकी पार्टी अब धूल में मिल चुकी है। 2014 के विधानसभा चुनाव में इनेलो के 19 विधायक चुने गये थे। लेकिन 2019 का चुनाव आते-आते इस दल में केवल तीन विधायक बचे, बाकी ने किनारा कर लिया। मौजूदा विधानसभा चुनाव में जो हालात हैं उसके हिसाब से इनेलो मुकाबले में पिछड़ती दिख रही है।
कभी ताऊ के इशारों पर चलती थी राष्ट्रीय राजनीति
1989 के लोकसभा चुनाव में राजीव गांधी की सरकार हार गयी थी। जनमोर्चा के गठन में देवीलाल की सबसे बड़ी भूमिका थी। उस समय केवल हरियाणा में ही गैरकांग्रेस सरकार थी। देवीलाल मुख्यमंत्री थे। राजीव गांधी के खिलाफ बोफोर्स बड़ा मुद्दा बन गया था। विपक्ष की राजनीति को खड़ा करने के लिए हरियाणा मुफीद जगह बन गयी थी। जनमोर्चा बना। जनमोर्चा के गठन में देवीलाल ने तन-मन-धन से मदद की। जनमोर्चा संसदीय दल ने प्रधानमंत्री पद के लिए देवीलाल को नेता चुना था। देवीलाल खुद सक्षम और लोकप्रिय नेता थे। प्रधानमंत्री का पद संभालना उनके लिए आसान था। लेकिन उन्होंने खुद प्रधानमंत्री बनने की बजाय वीपी सिंह को ताज सौंप दिया। खुद उपप्रधानमंत्री बने। राजनीति में सर्वोच्च पद ठुकरा कर देवीलाल ने दुर्लभ त्याग का परिचय दिया था। लेकिन देवीलाल के कृपा से प्रधानमंत्री बनने वाले वीपी सिंह ने बाद में उन्हें ही कैबिनेट से निकाल दिया था। राष्ट्रीय राजनीति के महानायक रहे देवीलाल ने इंडियन नेशनल लोकदल पार्टी बनायी थी। अब ये पार्टी अब हाशिये पर है।
बेटे-पोतों ने मिट्टी में मिलायी साख
देवीलाल के पुत्र ओमप्रकाश चौटाला पांच बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन टीचर भर्ती घोटला में उनके जेल जाने के बाद इंडियन नेशनल लोकदल बिखर गया। ताऊ के बेटों-भतीजों में उत्तराधिकार की ऐसी लड़ाई छिड़ी कि पार्टी रसातल में चली गयी। देवीलाल ने वंशवादी राजनीति को बढ़ावा दिया था। उनके चार बेटे थे। बड़े बेटे ओमप्रकाश को ही सबसे अधिक कामयाबी मिली। उन्हें ही पार्टी की कमान मिली। ओमप्रकाश चौटाला के बाद पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गयी। ओमप्रकाश के बेटे अजय चौटाला और अभय चौटाला आपस में लड़ने लगे। ओमप्रकाश चौटाला जेल में हैं। उन्होंने छोटे बेटे अभय चौटाला का पक्ष लिया। आखिरकार अजय चौटाला और उनके बेटों दुष्यंत और दिग्विजय को इनेलो से निकाल दिया गया। अजय चौटाला भी जेल में ही हैं। अब इनेलो की कमान छोटे बेटे अभय चौटाले के हाथों में है। बड़े फैसलों के लिए ओमप्रकाश चौटाला जेल से ही निर्देश भेजते हैं। हरियाणा की राजनीति में इनेलो अब औंधे मुंह गिर चुकी है। 2019 के चुनाव में चौटाला परिवार के चार सदस्य चुनाव मैदान में हैं। अभय चौटाला इनेलो से, दुष्यंत (अजय चौटाला के पुत्र) और उनकी मां नैना चौटाला जननायक जनता पार्टी से तो आदित्य चौटाला भाजपा से। आदित्य, देवीलाल के सबसे छोटे बेटे जगदीश चौटाला के पुत्र हैं।
2019 का विधानसभा चुनाव
2014 के विधानसभा चुनाव में हरियाणा ने चौंकाने वाला जनादेश दिया था। चार विधायकों वाली भाजपा को 47 सीटों पर जिताकर उसने सबको हौरान कर दिया था। भाजपा ने पहली बार इस राज्य में अपने दम पर पूर्ण बहुमत हासिल किया था। दस साल से सत्ता का सुख भोग रही कांग्रेस की ऐसी बुरी हार हुई कि वह तीसरे स्थान पर फिसल गयी थी। इनेलो के 19 विधायक जीते थे और वह दूसरी बड़ी पार्टी थी। अभय चौटाला नेता प्रतिपक्ष बने। लेकिन बाद में कई विधायकों ने पार्टी छोड़ दी। कुछ का निधन हो गया। टूट-फूट कर कंगाल हो चुकी इनेलो 2019 के चुनावी मैदान में पिछड़ती दिख रही है। जाट राजनीति का किला ढहने से इनेलो और कमजोर हो गयी है। भाजपा के गैरजाट नेता और मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने एक नयी राजनीति की शुरुआत की है। इस चुनाव में भाजपा के सामने कई चुनौतियां हैं, लेकिन कमजोर विपक्ष ने उसकी राह आसान कर दी है। अभय चौटाला की इनेलो और दुष्यंत चौटाला ( अजय चौटाले के पुत्र) की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) आपस में लड़ कर जाट वोटों का बंटवारा कर रही हैं जिसका फायदा भाजपा को मिल रहा है।