भाजपा का बहुमत की सरकार बनाने का सपना क्यों हुआ चकनाचूर
बेंगलुरु। हरियाणा के जो चुनाव नतीजे आ रहे हैं, उनसे यहां की लड़ाई काफी दिलचस्प हो गई है। बीजेपी यहां आगे जरूर चल रही है, लेकिन बहुमत का आंकड़ा उससे दूर है। कांग्रेस ने जबरदस्त वापसी की है और जेजेपी भी बढ़िया प्रदर्शन कर रही है। ऐसे में हरियाणा में बीजेपी को सरकार बनाने के लिए जेजेपी की जरूरत पड़ सकती है। बता दें हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 में भारतीय जनता पार्टी ने जीत के लिए आश्वस्त होने के बावजूद अपनी पूरी ताकत झोक दी थी। भाजपा ने अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया था, लेकिन हरियाणा ही नहीं महाराष्ट्र दोनों ही राज्यों से भाजपा को झटका लगा है। चुनाव परिणाम के रुझान को देखते हुए भाजपा की मेहनत रंग लाती नहीं दिख रही हैं।
इसके रुझान भाजपा के लिए किसी झटके से कम नहीं हैं। हरियाणा में तो कांटे की टक्कर दिख रही है और ये भी लग रहा है कि वहां त्रिशंकु विधानसभा की नौबत आ जाएगी। महाराष्ट्र में भी भाजपा अपने दम पर बहुमत लाने की हालत में नहीं दिख रही, जिसका वो सपना देख रही थी। विशेषज्ञ ये मान रहे है कि इन विधानसभा चुनावों में एक सबसे खास बात ये रही कि वोटिंग बहुत ही कम हुई, जिसका सारा नुकसान भाजपा को हुआ। माना जा रहा है कि बहुत से लोग मौजूदा विकल्पों से खुश नहीं हैं, इसलिए वह वोट डालने के लिए निकले ही नहीं। भाजपा ने कम से कम कांग्रेस की तुलना में तो खूब कोशिशें की थीं, लेकिन उनकी नतीजे भाजपा को खुश नहीं कर रहे हैं। हालांकि, चुनावों से पहले तक भाजपा निश्चिंत दिख रही थी, लेकिन अब नरेंद्र मोदी और अमित शाह के माथे में शिकन दिखना लाजमी है।
सू्त्रों के अनुसार ने अपना कार्यक्रम रद्द कर दिया है और वहीं हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को बीजेपी आलाकमान ने दिल्ली बुलाया। विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण में पार्टी के मेहनती चेहरों को पीछे करके गलत तरह से टिकट वितरण करने से अमित शाह नाराज हैं। माना जा रहा है करीब दो दर्जन विधानसभा सीटों पर बागियों ने बीजेपी का खेल बिगाड़ दिया है। कई सीटों पर निर्दलीय के तौर पर लड़ रहे बीजेपी के बागी कार्यकर्ता आगे चल रहे हैं।
गौर करने वाली बात ये है कि भाजपा ने हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए अपनी ताकत झोंक दी थी । 7 रैलियां पीएम मोदी ने कीं और 7 अमित शाह ने कीं। राजनाथ सिंह ने भी कुछ रैलियां की। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस है, जिसके लिए राहुल गांधी ने दो रैलियां कीं और सोनिया गांधी ने तो एक भी रैली नहीं की। यहां तक कि भूपेंद्र सिंह हुडा को भी मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने में देरी की। चुनावों से करीब 15 दिन पहले ही भूपेंद्र सिंह हुडा को कांग्रेस सामने लाई। ये बात हुडा भी मानते हैं कि पार्टी ने उन पर भरोसा दिखाने में देरी की। इन सब के बावजूद कांग्रेस ने भाजपा को कड़ी टक्कर दे दी है। यानी एक बात तो तय है कि लोग खट्टर से खुश नहीं हैं। जो वोट भाजपा को मिले हैं वो भी मोदी और शाह की बदौलत मिले है।
जीत-हार तो लगी रहती है, लेकिन इस बार लोगों का वोटिंग पैटर्न भाजपा को अंदर तक झकझोरने के लिए काफी है। वजह ये कि उनकी तरफ से खूब मेहनत हुई, जबकि कांग्रेस ने तो ना के बराबर कोशिशें कीं। इतना कुछ होने के बावजूद लोग इतनी बड़ी संख्या में अगर कांग्रेस को वोट दे रहे हैं तो कुछ तो दिक्कत जरूर है। माना जा रहा है कि हरियाणा में तो जेजेपी के प्रमुख दुष्यंत चौटाला किंगमेकर की भूमिका में है। इसलिए अगर चौटाला ने भाजपा का हाथ थामा तभी भाजपा यहां सरकार बना पाएगी। लेकिन महाराष्ट्र में भी भाजपा का बहुमत कर सपना टूटता सा दिख रहा है। भाजपा ने भले ही शिवसेना के साथ गठबंधन किया था, लेकिन उन्हें उम्मीद थी कि वह बहुमत से जीतेगी। वैसे भी, शिवसेना आए दिन कुछ ना कुछ ऐसा करती ही है कि भाजपा को दिक्कत होती है। ऐसे में अगर भाजपा बहुमत से जीतती तो शिवसेना पर भी दबाव बनाए रख सकती थी, लेकिन भाजपा को बहुमत मिलता नहीं दिख रहा है। यानी शिवसेना के बिना महाराष्ट्र में उनकी सरकार बनना मुमकिन नहीं हैं।
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