Happy Mother's Day: मां.... जिसके पैरों में है स्वर्ग और आंचल में सिर्फ मोहब्बत
नई दिल्ली। 'मां 'का नाम लेते ही दिल दिमाग पर जो तस्वीर सामने आती है उसके आगे सिर खुद ब खुद नतमस्तक हो जाता है। वक्त बदला, हमारे आस पास की हर चीज में बदलाव है क्योंकि आज जमाना आगे बढ़ने का है, जो इस बदलते वक्त के साथ आगे नहीं बढ़ेगा वो थम जायेगा, उसकी प्रगति रूक जाएगी लेकिन वक्त की इस आंधी में ना तो मां का प्रेम बदला है और ना ही उसकी भावनाएं, उसकी ममता में आज भी किसी भी चीज की मिलावट नहीं है, बच्चे की मुस्कान ही मां की धरोहर होते हैं और उनकी खुशी से ही वो दिवाली और ईद मनाती हैं लेकिन दुनिया ने मां को समर्पित करते हुए एक दिन उसके नाम पर रखा है जिसे हम 'मदर्स डे' कहते हैं।
चलिए जानते हैं इस दिन से जुड़ी कुछ बेहद खास बातें...
'होलमार्क होलीडे'
- 'मदर्स डे' की शुरुआत ने वेस्ट वर्जिनिया में एना जार्विस ने की थी उन्होंने इस दिन अवकाश घोषित कर दिया था। बाद में ये हॉलीडे काफी लोकप्रिय हो गया जिसे कि 'होलमार्क होलीडे' की संज्ञा दे दी गई।
- कहा जाता है कि मातृ पूजा का रिवाज़ पुराने ग्रीस से शुरू हुआ था जो स्य्बेले ग्रीक देवताओं की मां थीं, ग्रीस में यह त्योहार के रूप में 18 मार्च को मनाया जाता था।
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ब्रिटेन में 'मदर्स डे' को एक खास संडे को मनाया जाता है....
यूरोप और ब्रिटेन में 'मदर्स डे' को एक खास संडे को मनाया जाता है जिसे कि 'मदरिंग संडे' कहते हैं। मातृ दिवस, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में कई देशों में 8 मार्च को मनाया जाता हैं, लेकिन भारत में 'मदर्स डे' मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाता है।
अमेरिका और पाकिस्तान
चीन में, मातृ दिवस के दिन मां को उपहार के रूप में गुलनार का फूल दिया जाता है, ये दिन वहां गरीब माताओं की मदद के लिए 1997 में निर्धारित किया गया था। लोग जापान में इस दिन माताओं को उपहार विशेषत: लाल गुलाब देते हैं।
रोमानिया में इसकी शुरूआत 2010 से हुई
अमेरिका और पाकिस्तान में भी यह मई माह के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। पनामा में यह दिवस जहां 8 दिसम्बर को मनाया जाता है वहीं रोमानिया में इसकी शुरूआत 2010 से हुई तथा मई के प्रथम सप्ताह में मनाया गया।
‘सम्मान दिवस'
श्रीलंका में सिंहली, तमिल व बौद्ध सभी धर्मों व वर्गों के लोग मातृ दिवस मनाते हैं। मातृ दिवस को मनाने की परम्परा 20वीं सदी के प्रथम दशक से शुरू मानी जाती है और 21वीं सदी के प्रथम दशक तक इस ‘सम्मान दिवस' का वैश्वीकरण भी हो चुका है।
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