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सिंदूर और चूड़ी ना पहनने का मतलब पत्नी को शादी मंजूर नहीं: गुवाहाटी हाई कोर्ट

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गुवाहाटी। गुवाहाटी हाई कोर्ट ने तलाक के एक मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि अगर हिंदू महिला परंपरा मुताबिक शाका (कौड़ियों से बनी चूड़ी) और सिंदूर लगाने से मना करती है तो इसका मतलब यही है कि उसे शादी मंजूर नहीं है। कोर्ट ने इस आधार पर तलाक की याचिका डालने वाले शख्स को तलाक की मंजूरी दे दी है। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को भी पलट दिया है।

फैमिली कोर्ट ने नहीं दी थी तलाक की मंजूरी

फैमिली कोर्ट ने नहीं दी थी तलाक की मंजूरी

इस मामले में फैमिली कोर्ट ने तलाक की मंजूरी से इनकार कर दिया था, जिसके बाद मामला हाई कोर्ट तक पहुंचा। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस अजय लांबा और जस्टिस सौमित्र सैकिया की बेंच ने की है। इससे पहले फैमिली कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि उन्हें पति पर पत्नी की ओर से कोई क्रूरता दिखाई नहीं दे रही है। जिसके चलते तलाक लेने का कोई आधार ही नहीं बनता है। फैमिली कोर्ट के फैसले से शख्स संतुष्ट नहीं था इसलिए उसने हाई कोर्ट में तलाक के लिए याचिका दायर की।

कोर्ट ने क्या है?

कोर्ट ने क्या है?

19 जून को दिए अपने फैसले में हाई कोर्ट ने कहा, 'पत्नी का 'शाका और सिंदूर' लगाने से इनकार करना या तो उसे अविवाहित दिखाता है या फिर ये दिखाता है कि उसे याचिकाकर्ता (पति) से ये शादी मंजूर नहीं है। पत्नी का ऐसा रुख साफ दिखाता है कि वह इस शादी को आगे नहीं बढ़ाना चाहती है।' कोर्ट के मुताबिक याचिका डालने वाले इस शख्स की महिला से 17 फरवरी, 2012 में शादी हुई थी लेकिन इसके बाद से इनके बीच झगड़े होने लगे। पत्नी ने ससुराल वालों से अलग रहने की मांग की। जिसके बाद दोनों 30 जून, 2013 के बाद से अलग रहने लगे थे।

महिला ने लगाया था प्रताड़ना का आरोप

महिला ने लगाया था प्रताड़ना का आरोप

बेंच ने कहा कि महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ उसे प्रताड़ित करने की पुलिस शिकायत दर्ज करवाई थी। लेकिन उसके आरोप प्रमाणित नहीं हो पाए थे। पति और ससुराल पर प्रताड़ना पर प्रमाणित होने योग्य आरोप लगाना क्रूरता के बराबर है। कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने इस तथ्य को भी नजरअंदाज कर दिया था महिला अपने पति को उसकी वृद्ध मां के प्रति वैधानिक कर्तव्यों का पालन करने से रोका करती थी। जो कि मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन एक्ट, 2007 (माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण एवं कल्याण अधिनियम) के तहत आता है। अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि 'इस तरह के सबूतों को क्रूरता माना जाना पर्याप्त है।'

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English summary
guwahati high court grants divorce to man after observing wife refuse to wear shaka sindoor
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