Analysis: हार दर हार के बाद भी नहीं बदली कांग्रेस, गुजरात में भी की वही पुरानी गलती
नई दिल्ली। गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उम्मीद से दोगुना अच्छा प्रदर्शन किया। 22 साल से बीजेपी का गढ़ रहे गुजरात में 'मोदी लहर' का रास्ता रोककर खड़ा होने का माद्दा रखने वाले मौजूदा दौर की राजनीति में कम ही हैं। कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद से राहुल गांधी को भले ही अपनी पार्टी के नेताओं का उतना साथ न मिला हो, लेकिन कम से कम किस्मत ने तो उनको पूरा साथ मिल रहा है। अध्यक्ष बनने से पहले एक बाद एक हार का मुंह देख रहे राहुल गांधी को पहली खुशखबरी पंजाब ने दी, जहां निकाय चुनाव में उनकी पार्टी ने जोरदार जीत दर्ज की। उसके बाद गुजरात में पार्टी ने मोदी के गढ़ में जोरदार संघर्ष किया। हालांकि, हिमाचल प्रदेश में राहुल गांधी को निराशा हाथ लगी और करारी हार का सामना करना पड़ा।
गुजरात में बीजेपी को 100 से नीचे आने पर कांग्रेस खुश
बहरहाल, हिमाचल की हार से दूर कांग्रेस समर्थक गुजरात में बीजेपी को 100 के नीचे धकेलने से बेहद खुश हैं। इसमें शक नहीं कि गुजरात में 99 सीटों तक सिमट जाना बीजेपी के मखमली लिबास में टाट के पैबंद जैसा है। लेकिन बड़ा सवाल यह कि क्या इसे कांग्रेस की जीत माना जाना ठीक है? क्या गुजरात में जो कांग्रेस को समर्थन प्राप्त हुआ वो उसके नेता मतलब राहुल गांधी के प्रति भरोसा है? या बीजेपी की राज्य सरकार के प्रति गुस्सा? आखिर गुजरात से कांग्रेस को क्या संदेश मिला है?
लोकसभा चुनाव 2014 का उदाहरण लेते हैं। उस वक्त कांग्रेस के हाथ सत्ता गई। कारण दो थे- महंगाई और भ्रष्टाचार। जनता ने मोदी को चुना। अब एक तर्क यह भी हो सकता है कि देश के लोगों ने मोदी को इसलिए चुना क्योंकि मौजूदा सरकार खराब थी, लोगों में उसके प्रति गुस्सा था। लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद एक के बाद एक कांग्रेस के हाथों से सत्ता जाती रही और बिना सीएम कैंडिडेट खड़े बीजेपी ने मोदी के नाम पर चुनाव जीते। तो क्या राहुल गांधी के प्रति गुजरात ने भरोसा किया या कांग्रेस के किसी लोकल लीडर के प्रति उनकी आस्था थी? तो इसका जवाब है- नहीं।
नतीजे देखें तो भाजपा कांग्रेस दोनों ही असफल
गुजरात में मौजूदा परिणाम बीजेपी और कांग्रेस दोनों की असफलता की कहानी कहते हैं। बीजेपी की असफलता तो सबने देखी, कि पार्टी 99 पर सिमट गई। लेकिन कांग्रेस की असफलता पर बात ज्यादा नहीं हुई।
कांग्रेस के पास गुजरात में अगर माधव सिंह सोलंकी सरीखा स्थानीय नेता होता तो शायद आज बीजेपी गुजरात की विधानसभा में विपक्ष की कुर्सियों पर होती। गुजरात में कांग्रेस और बीजेपी के बीच सिर्फ एक ही शख्स खड़ा था, जिसका नाम है- नरेंद्र मोदी। गुजरात का एक नेता, गुजरात का बेटा। जैसे बिहार में नीतीश कुमार हैं। जैसे ओडिशा में नवीन पटनायक।
कांग्रेस के पास चेहरा नहीं
कांग्रेस के पास जितने भी नेता गुजरात में हैं, चाहे शक्ति सिंह गोहिल हों या अर्जुन मोढवाडिया या कोई और इनमें से किसी के पास इतनी कुव्वत नहीं कि वे जनता की नाराजगी का प्रतीक या चेहरा बन सकें। यही एक फैक्टर है, जिसकी कमी कांग्रेस को लगातार खल रही है। यूपी के जिस चुनाव में अखिलेश यादव प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता के सिरमौर बने थे, उस चुनाव में राहुल गांधी ने भी जोरदार प्रचार किया था। लेकिन उस चुनाव में कांग्रेस बिना लोकल लीडर के उतरी। उनके पास सीएम का एक भी फेस नहीं था, नतीजा कांग्रेस बुरी तरह हारी।
इसी तरह यूपी में कल्याण सिंह के जाने बाद बीजेपी का बुरा हश्र हुआ और जब मोदी-योगी फैक्टर आया तो उसकी गाड़ी चल निकली। तो सौ बातों की एक बात है कि हारी तो कांग्रेस ही है और सबसे अहम बात वही गलती करके हारी है, जो वह पहले भी 100 बार कर चुकी है चुनाव हार चुकी है।
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