गुजरात: नमक बनाने वाले गांव ने अपने दम पर बचा ली पूरी झील
कथित तौर पर सौराष्ट्र की सबसे बड़ी झील की मरम्मत की गुहार जब सरकार ने नहीं सुनी तो गांव वालों ने खुद उठाया बीड़ा.
गुजरात के सुरेंद्रनगर ज़िले के खाराघोड़ा गांव में करीब 12 हज़ार लोग रहते हैं जो खेती करते हैं और नमक बनाते हैं.
किसान खेतों की सिंचाई के लिए 145 साल पुरानी एक झील पर निर्भर हैं. ये इस क्षेत्र के पांच गांवों की सिंचाई का एकमात्र स्रोत है.
लेकिन दो साल पहले ये जलस्रोत सूखने से स्थानीय लोगों पर संकट आ गया था.
बलदेव ठाकोर खाराघोड़ा गांव के किसान हैं. वो और उनका परिवार आजीविका के लिए खेती पर ही निर्भर है.
गांव के बाकी लोगों की तरह ही बलदेव सिंचाई के लिए मीठे पानी की इस बड़ी झील जिसे स्थानीय लोग 'नवा तलाव' कहते हैं, पर निर्भर हैं.
साल 2015 में आई भयंकर बाढ़ के कारण इसका बांध टूट गया और सारा पानी बह जाने से ये झील सूख गई, जिससे गांव की आजीविका पर संकट आ गया.
बलदेव ठाकोर बताते हैं, "जब 2015 में झील सूख गई तो हमारी फसलें बर्बाद हो गईं. हमें पास के पिपली गांव में बसना पड़ा, जहां नहर की सुविधा थी. हमने किराए पर खेत लिए और एक साल तक किसी तरह बिताया. इसके बाद फिर अपने गांव लौट आए."
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गांव वालों ने उठाई ज़िम्मेदारी
वो कहते हैं, "अगर ये झील टूटती है तो खेतिहर मज़दूर किसानों के बाद के सबसे अधिक प्रभावित लोगों में से एक होंगे. उनकी ज़िंदगी तो बर्बाद हो जाएगी."
इस झील का निर्माण 1870 के दशक में अंग्रेज़ों ने पीने के पानी के लिए कराया था.
लगभग 1000 एकड़ में फैली इस झील के बारे में स्थानीय लोगों का दावा है कि ये सौराष्ट्र क्षेत्र की सबसे बड़ी झील है.
जब ये झील सूख गई तो गांव वालों ने सरकार से इसके पुनर्निर्माण के लिए कहा, लेकिन उनकी बात किसी ने नहीं सुनी.
किसानों ने इस मुद्दे को अपने स्तर पर हल करने का फैसला किया और मरम्मत के लिए धन इकट्ठा करने के लिए एक कमेटी बनाई.
इसके लिए हर किसान से प्रति एकड़ 375 रुपये लिए गए और इस तरह कुल 4.75 लाख रुपए इकट्ठे हुए.
टूटे हुए बांध की मरम्मत गांव वालों ने खुद की. गांव वालों ने श्रम दान किया और ट्रैक्टर जैसे अपने संसाधनों का भी इस्तेमाल किया.
संयोग से इस साल इस इलाक़े में काफ़ी बारिश हुई जिससे झील में पर्याप्त पानी भर गया.
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इस पानी को खेतों तक ले जाने के लिए गांव में सैकड़ों डीज़ल इंजन वाले पम्प इस्तेमाल किए जाते हैं.
लेक डेवलपमेंट कमेटी के ट्रस्टी बलदेव पटेल ने बताया, "पांच गांवों के किसान इस झील से सिंचाई करते हैं. इन गांवों में सावदा, चिकसार, ओडू, खाराघोड़ा और पाटदी शामिल हैं. इन पांचों गांवों के लिए यही एकमात्र जल स्रोत है. जब ये झील भर जाती है तो गांव वाले दिवाली की तरह जश्न मनाते हैं. "
अब किसानों ने इस झील की देखरेख की ज़िम्मेदारी खुद संभालने की निर्णय लिया है.
कमेटी के एक अन्य सदस्य अम्बू पटेल कहते हैं, "अगर आम लोग एकजुट हो जाएं तो वो किसी भी समस्या का हल ढूंढ निकालते हैं और यह झील इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है कि कैसे इस झील पर निर्भर रहने वालों ने ही इसकी मरम्मत की."
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