Gujarat elections 2017: सारे सर्वे भूल जाइए ये एक फैक्टर तय करेगा मोदी की जीत-हार
Gujarat elections 2017: सारे सर्वे भूल जाइए ये एक फैक्टर तय करेगा मोदी की जीत-हार
नई दिल्ली। गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए रविवार को वोटिंग हो रही है। पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर राहुल गांधी तक बीजेपी और कांग्रेस के सभी नेता पूरी ताकत इस चुनाव में झोंक रहे हैं। कई सर्वे बीजेपी को बढ़त दिखा रहे हैं तो कई सर्वे कांटे टक्कर। ऐसे में कहना मुश्किल है कि परिणाम किसके पक्ष में जाएगा। बीजेपी पांचवीं बार गुजरात की सत्ता पर काबिज होगी या इस बार कांग्रेस के हाथ रेखा में कोई बड़ी सफलता लिखी है? कहना मुश्किल है, लेकिन इस गणित को समझा जा सकता है।
क्या कहती है गुजरातियों की नब्ज?
आखिर गुजरातियों की नब्ज क्या कहती है? वो कौन सा मुद्दा है, जो गुजरातियों के लिस्ट में सबसे ऊपर है? क्या वोट मुद्दा नोटबंदी है? जीएसटी? किसानों की समस्याएं? सीएम कैंडिडेट? मणिशंकर अय्यर का 'नीच आदमी' वाला बयान? या राहुल गांधी का मंदिर-मंदिर घूमना? क्या दो दशक से ज्यादा के शासन के बाद बीजेपी के खिलाफ एंटी इनकमबैंसी फैक्टर काम करेगा? क्या विकास वाकई पागल हो गया या विकास में दम है? ढेरों मुद्दे हैं, किसानों की कर्जमाफी और पटेल आरक्षण भी गुजरात में बड़ा मुद्दा है। लेकिन सवाल अब भी वहीं खड़ा है, आखिर वोट किस बात पर पड़ेगा? मेरी मानो तो गुजरात में सिर्फ और सिर्फ एक ही फैक्टर काम करेगा और वह है 'हिंदू फर्स्ट'।
गुजरात में 'हिंदू फर्स्ट' फैक्टर ही बनेगा टर्निंग पॉइंट
गुजरात में सिर्फ और सिर्फ एक ही फैक्टर पर काम करेगा और वो है हिंदू फर्स्ट। इसका सबूत है राहुल गांधी की सोमनाथ यात्रा के बाद छिड़ी बहस। जो कांग्रेस कभी राम के अस्तित्व से इनकार करती थी उसे राहुल गांधी को जनेऊधारी बताना पड़ा। खुद राहुल गांधी मंदिर-मंदिर घूमे। एक पुजारी से तो उन्होंने सोनिया गांधी की फोन पर बात भी करा दी। बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ऐलान कर डाला कि गांधी परिवार शिवभक्त है। कुल मिलाकर कांग्रेस ने खुद हिंदू दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, क्योंकि वो भी जानती है कि गुजरात में पटेल... पटेल बाद में है हिंदू पहले है। यही कारण रहा कि प्रधानमंत्री बनने से पहले पीएम मोदी को जब एक मौलाना साहब ने मुस्लिम टोपी भेंट की तो उन्होंने उसे पहना नहीं। 2017 के चुनाव से ठीक पहले आपको याद होगा कि मोदी केदारनाथ गए थे। वहां बड़ी संख्या में गुजराती मौजूद थे, जिन्हें उन्होंने गुजराती में संबोधित भी किया। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह गुजरात की नब्ज जानते हैं।
रियल लाइफ स्टोरी से समझिए गुजरातियों का मिजाज
मैं कभी गुजरात नहीं गया। लेकिन कुछ समय मुंबई रहने के कारण बहुत सारे गुजरातियों से जरूर मिला। मुंबई से दिल्ली ट्रेन के सफर में भी गुजरातियों को देखने और समझने को मौका मिला। बात शायद 2013 की होगी। मैं मुंबई से दिल्ली राजधानी से आ रहा था। मेरी सीट के सामने एक गुजराती फैमिली बैठी थी। उनकी बातों से लगा शायद उनमें कुछ गुजराती एनआरआई भी थे। बेहद विनम्र, हंसते बोलते हुए एकदम मस्त। गुजराती फैमिली में कुछ यंग लड़कियां और लड़के भी थे। उनके पास महंगे मोबाइल फोन थे। लड़कियों ने एकदम मॉर्डन ड्रेस पहनी थी। खैर, फैमिली के कुछ बुजुर्ग मुझसे बात करने लगा और शाम हो गई। मैंने देखा कि लड़के-लड़कियां जो एकदम हाई-फाई लग रहे थे वो हनुमान चालीसा पढ़ रहे थे। सुबह तो सुबह भी मैंने यही देखा उन्होंने पहले हनुमान चालीसा और अन्य पाठ किए, उसके बाद वापस अपना हेडफोन लगाया और बातों में मस्त हो गए। ट्रेन में हनुमान चालीसा पढ़ते मैंने पहली बार किसी को देखा। चूंकि मैं मुंबई से दिल्ली कई बार आया तो उस घटना के बाद मैं नोटिस करने लगा और पाया कि गुजारती पूजा-पाठ नहीं छोड़ते, चाहे कहीं भी हों। उनके दो ही टॉपिक होते हैं पैसा और पूजा पाठ।
हिंदू फर्स्ट फैक्टर है तो किसके सिर बंधेगा जीत का सेहरा
अब कहने की जरूरत नहीं कि अगर हिंदू फर्स्ट के ही आधार पर गुजरात विधानसभा चुनाव का परिणाम आना है तो जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा। जवाब आप अच्छी तरह जानते हैं। इसमें कोई शक नहीं कि राहुल गांधी ने 2017 विधानसभा चुनाव में अपनी भाषण शैली से जान फूंक दी, लेकिन वहां फैक्टर दूसरा चलता है, कांग्रेस के पास न तो स्थानीय स्तर पर वो लीडरशिप है।