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गुजरात: 20 साल बाद 127 मुसलमानों को मिला 'इंसाफ़'

साल 2001 में गिरफ़्तार किए लोगों ने पूछा कि हमारे 20 सालों का हिसाब कौन देगा?

By टीम बीबीसी गुजराती, नई दिल्ली
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हनीफ़ भाई वोरा
BBC
हनीफ़ भाई वोरा

सूरत की एक अदालत ने बीते शनिवार लगभग 20 साल बाद प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी-सीएम) के साथ कथित रूप से जुड़े कुल 127 लोगों को बरी कर दिया है. इस मामले में गिरफ़्तार किए लोगों में से पाँच लोगों की मौत हो चुकी है.

गुजरात पुलिस ने इन लोगों को सूरत के एक होटल से गिरफ़्तार किया था. पुलिस ने अपनी शिकायत में कहा था कि इन लोगों को तत्कालीन ग़ैरक़ानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 का उल्लंघन करने की वजह से गिरफ़्तार किया गया था.

सूरत की एक स्थानीय अदालत ने इस मामले की सुनवाई करते हुए अभियुक्तों के ख़िलाफ़ लगाए गए अभियोग सिद्ध करने के लिए पर्याप्त सबूत न होने की वजह से उन्हें बरी कर दिया है. बीबीसी ने इस मामले में बरी किए गए कुछ लोगों से बात की है.

कोर्ट से बरी किए गए लोग
NARESH SOLANKI
कोर्ट से बरी किए गए लोग

आख़िर क्या था मामला?

साल 2001 में गुजरात के सूरत शहर में अल्पसंख्यक समुदाय की शिक्षा से जुड़ी वर्कशॉप आयोजित की गई थी. इसमें भारत के अलग - अलग हिस्सों से आए लोग शामिल हुए थे.

लेकिन वर्कशॉप शुरू होने से एक दिन पहले सभी लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया.

महाराष्ट्र के औरंगाबाद से आने वाले ज़ियाउद्दीन सिद्दीकी ने बताया कि "पुलिस ने हम सभी को सिमी के कार्यकर्ता होने के आरोप में गिरफ़्तार किया था."

वह कहते हैं, "हमें उस समय ग़ैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत गिरफ़्तार किया गया था. उस समय कोई संशोधन नहीं था. हम लगभग 11 से 13 महीने तक जेल में रहे और फिर उच्च न्यायालय से ज़मानत मिल गई. उसके बाद तारीख़ हर बार आगे बढ़ती रही."

"आज बीस साल बाद फैसला आया है. निर्णय यह है कि जिस क़ानून के तहत हमें गिरफ़्तार किया गया था, वह लागू नहीं है. अदालत ने ग़ैरकानूनी गतिविधि वाले कानून की धारा को अवैध घोषित कर दिया है. राज्य सरकार द्वारा इस मामले में गिरफ़्तारी की मंज़ूरी दी गई थी."

ग़ैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (असंशोधित) के तहत किसी को गिरफ़्तार करने के लिए केंद्र सरकार की इजाज़त की आवश्यकता होती थी. लेकिन इस मामले में गुजरात सरकार की ओर से इजाज़त दी गई थी.

बचाव पक्ष ने कहा है कि शिकायत करने वाले पुलिसकर्मी जांच अधिकारी थे, क़ानूनी रूप से वे या तो अभियोजक या अन्वेषक हो सकते हैं.

वह कहते हैं, "पुलिस शिकायत में कहा गया है कि 'सेमिनार कल आयोजित किया जाना था'. जब कल सेमिनार होना है, तो अगले दिन बुलाना ग़ैरकानूनी कैसे है?"

उन्होंने यह भी कहा कि "जो गतिविधि नहीं हुई वह क़ानूनी या अवैध कैसे हो सकती है? अदालत ने इन सभी मामलों को देखा होगा और 127 लोगों को बरी कर दिया है."

ज़ियाउद्दीन सिद्दीक़ी
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ज़ियाउद्दीन सिद्दीक़ी

20 साल बाद मिला छुटकारा

ज़ियाउद्दीन सिद्दीकी कहते हैं, "हमने लगभग 11 से 13 महीने जेल में बिताए और हमें उच्च न्यायालय से ज़मानत मिली. हर महीने एक तारीख़ थी और आज फ़ैसले की 20वीं वर्षगांठ है. अदालत ने उस मंज़ूरी को अमान्य घोषित कर दिया है जिसके तहत इन लोगों को गिरफ़्तार किया गया था."

ज़ियाउद्दीन कहते हैं, "हमें साल 2001 में गिरफ़्तार किया गया था. इसके बाद मीडिया ट्रायल हुआ. समाज में हमें अलग-थलग करने के लिए हम पर आतंकवाद, सम्प्रदायवाद और जादू-टोना करने जैसे आरोप लगाए गए. लोग हमसे बात करने तक से डरते थे."

"कुछ लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया. कई लोगों के व्यवसाय प्रभावित हुए. पारिवारिक समस्याएं पैदा हुईं. बच्चों की शिक्षा पर सवाल उठाया गया. मुझे हर महीने यहां आना पड़ा और यह 20 साल तक चला. फिर आज अदालत ने कहा कि आप निर्दोष हैं. जब हम पर आरोप लगाए गए, हम तब भी निर्दोष थे और हम आज भी निर्दोष हैं."

"हमारा सवाल सिस्टम के ख़िलाफ़ है कि इन बीस सालों तक हमने जो कुछ झेला है, उसकी भरपाई कौन करेगा? जिन लोगों ने एक साल जेल में बिताया, उनकी नौकरी चली गई, उनके व्यवसाय तबाह हो गए. पारिवारिक समस्याएं आईं, लोगों के बच्चे पढ़ाई पूरी नहीं कर सके. और जो नुकसान होना था, वो हो गया. अब इसकी भरपाई कौन करेगा?"

"ये बात ठीक है कि अदालत ने उन आरोपों को हटा दिया है कि आप बीस साल से आतंकवादी हैं. लेकिन 20 वर्षों तक हमने जो कुछ बर्दाश्त किया, उसका क्या? लोगों ने हमारा बहिष्कार किया. हमारे बीच एक प्रसिद्ध अच्छे पत्रकार थे, लेकिन आज इस केस की वजह से ये स्थिति आ गई है कि उन्हें छोटा-मोटा काम करके अपना घर चलाना पड़ रहा है."

"हम अभी भी उस तनाव के कारण पीड़ित हैं जो सिस्टम ने हमें दिया है. आज हम ख़ुश हैं कि हमें तनाव से राहत मिली है लेकिन सवाल यह है कि जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई कौन करेगा."

"हम नहीं चाहते कि यह तंत्र हमारे जैसे निर्दोष लोगों को फिर से सज़ा दे और 20 साल बाद कहे कि आप निर्दोष हैं. आज हम यह सवाल पूछ रहे हैं और हमें इसका जवाब चाहिए."

क़ानूनी पत्र
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क़ानूनी पत्र

'मैं अभी भी डिप्रेशन की दवा ले रहा हूं'

सूरत के गोपीपुरा के निवासी हनीफ़ भाई गनीभाई वोरा भी उन 127 लोगों में शामिल हैं जिन्हें बरी कर दिया गया है.

हनीफ़ वोरा कहते हैं, "कार्यक्रम के बारे में एक घोषणा हुई थी और मैं भी कार्यक्रम में भाग लेने गया था. पुलिस ने रात में छापा मारा और लोगों को हिरासत में लिया गया."

"हमें अलग-अलग पुलिस स्टेशनों में रखा गया था और पुलिस ने हमारे ख़िलाफ़ एक गंभीर मामला बनाया था. हमें यह भी नहीं पता था कि पुलिस ने एक गंभीर मामला बनाया है. हम ख़ुद नहीं जानते कि यह मामला कैसे और क्यों बना."

"गिरफ़्तारी के 10 महीने बाद, 127 लोगों को उच्च न्यायालय ने टुकड़ों में ज़मानत दे दी. सूरत की अदालत ने कोई ज़मानत नहीं दी. मैं ख़ुद 14 महीने जेल में रहा."

"जेल में रहने के दौरान मेरी पत्नी हायपरटेंशन से पीड़ित हो गईं. मैं जेल में डिप्रेशन का शिकार हो गया और आज भी हूं. मैं डिप्रेशन की दवा लिए बिना आज भी सो नहीं सकता."

"जब तक मैं 14 महीने जेल में था, तब तक मेरी पत्नी और बच्चों को बहुत परेशानी हुई थी. मेरे बच्चे तब बहुत छोटे थे. मेरी उम्र 35 साल की थी अब मैं 55 साल का हूँ. मैं जेल में मानसिक रूप से परेशान था. वड़ोदरा जेल और सूरत सब जेल में मेरा इलाज किया जा रहा था."

"जेल से बाहर आने के बाद मुझे बहुत यातनाएं मिलीं. यह जेल में हुआ क्योंकि बच्चे छोटे थे इसलिए मैं तनाव में रहता था. रिहाई के बाद फिर से सब कुछ सेट करना जीवन को नए सिरे से जीने जैसा था."

"मेरे पास एक अच्छा कंस्ट्रक्शन बिज़नेस था जो ख़राब हो गया. आर्थिक स्थिति भी बिगड़ गई. मुझे इस समस्या से बाहर आने में तीन साल का वक़्त लगा."

"मुझे जो सहना पड़ा, वह सोच से बाहर था. मानसिक रूप से बहुत ज़्यादा कष्टकारी था. आर्थिक रूप से तो भूल ही जाइए. शुक्र इस बात का है कि सब कुछ ठीक हो गया. लेकिन उस मानसिक तनाव का कोई जवाब नहीं है जो कि हमने और हमारे परिवार एवं सहयोगियों ने झेला है."

वकीलों का क्या कहना है?

इस मामले में बचाव पक्ष के वकील अब्दुल वहाब शेख ने बीबीसी संवाददाता ऋषि बनर्जी से कहा, "पुलिस को सूचना मिली कि सूरत में राजेश्री हॉल में जो लोग एकत्रित हुए थे, वे सिमी कार्यकर्ता थे. पुलिस ने सुबह दो बजे इमारत पर छापा मारा और उन सभी को गिरफ़्तार कर लिया. इन सभी लोगों के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाया गया. एक प्रतिबंधित संगठन होने की वजह से ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि अधिनियम के तहत केस चलाया गया."

"गिरफ़्तारी के बाद दायर चार्ज़शीट में केंद्र सरकार से अनुमति लेने के बजाय राज्य सरकार के अधिकारियों से अनुमति मांगी गई थी. मामला दर्ज करने के लिए दी गई अनुमति क़ानूनी रूप से वैध नहीं थी. पुलिस यह भी साबित नहीं कर पाई कि गिरफ़्तार व्यक्ति सिमी के थे."

शेख ने कहा, "जेल में एक साल बाद 120 लोगों को जमानत दी गई. सात आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट से जमानत लेनी पड़ी. इस मामले में गवाहों से लेकर पुलिस अधिकारियों तक कुल 27 लोगों की गवाही हुई.

बीबीसी ने इस मामले पर टिप्पणी करने के लिए सरकार से बात करने की कोशिश की.

सरकार के वकील मयंक सुखड़वाला ने बीबीसी संवाददाता दीपलकुमार शाह से बात करते हुए कहा, "हम फ़ैसले का अध्ययन कर रहे हैं और फिर अपील पर फ़ैसला किया जाएगा."

सरकारी वकील ने यह भी कहा कि अदालत ने मामले पर ध्यान दिया है और चार्ज़शीट दाखिल करने की शक्ति के मामले में अपना फ़ैसला दिया है. मामले का अध्ययन करने के बाद आगे की कार्रवाई पर विचार किया जाएगा.

क्या है मामला?

एक पुलिस शिकायत के अनुसार, दिसंबर 2001 में, दिल्ली के जामियानगर में स्थित अखिल भारतीय अल्पसंख्यक शिक्षा बोर्ड ने कथित तौर पर अल्पसंख्यक समुदाय के शैक्षिक अधिकारों को संवैधानिक मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए सूरत के राजेश्री हॉल में दो दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया था.

सेमिनार में भारत के 10 राज्यों के 127 लोगों ने भाग लिया.

सेमिनार 28 दिसंबर को शुरू होने वाला था और 27 दिसंबर की रात को पुलिस ने सूरत के राजेश्री हॉल में छापा मारा और 127 लोगों को गिरफ़्तार किया. पुलिस ने यह भी कहा कि उन्होंने गिरफ्तारी के बाद 'सिमी' से संबंधित साहित्य जब्त कर लिया था.

पुलिस ने दावा किया कि उन्हें जानकारी मिली है कि स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (CMI) के एक पूर्व सदस्य को 27-30 दिसंबर को सूरत में धार्मिक बैठकें आयोजित करनी थीं और देश के विभिन्न राज्यों के सिमी कार्यकर्ता बैठक में शामिल होने थे.

इस जांच में ये भी कहा गया था कि अखिल भारतीय अल्पसंख्यक शिक्षा बोर्ड का दिल्ली के उस पते पर कोई दफ़्तर नहीं है.

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English summary
Gujarat: 127 Muslims get 'justice' after 20 years
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