GST COUNCIL MEET: जीएसटी पर केंद्र सरकार से अधिक मुआवजा क्यों मांग रहे राज्य
नई दिल्ली- आज जीएसटी काउंसिल की 41वीं बैठक बुलाई गई। यह मीटिंग इसीलिए बुलाई गई, क्योंकि कोरोना वायरस महामारी के चलते टैक्स कलेक्शन में भारी कमी दर्ज की गई है। राज्य सरकारें इसकी भरपाई के लिए राज्य केंद्र सरकार से ज्यादा मुआवजे की मांग कर रही हैं। बुधवार को कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एनईईटी और जेईई परीक्षाओं को रद्द करने की मांग को लेकर केंद्र पर दबाव बनाने के लिए 7 विपक्षी मुख्यमंत्रियों की जो बैठक बुलाई थी, उसमें भी यह मुद्दा उठाया गया था। आइए समझने की कोशिश कर रहे हैं कि आखिर राज्यों की ओर से जीएसटी की एवज में ज्यादा मुआवजे की मांग क्यों हो रही है और सरकार के पास इसकी पूर्ति के लिए क्या विकल्प हैं, जीएसटी कलेक्शन की स्थिति क्या है?
Recommended Video
सरकार का टैक्स राजस्व घट गया है
जीएसटी लागू करते समय राज्यों को साथ लेने के लिए केंद्र सरकार इस बात पर राजी हुई थी कि अगले पांच साल तक सालाना कलेक्शन में वृद्धि 14 फीसदी से कम रही तो वह राज्यों को इसकी भरपाई करेगी। कोरोना वायरस और लॉकडाउन की वजह से जीएसटी कलेक्शन में बहुत ज्यादा कमी आई है और इसीलिए इस साल मुआवजे की एवज में केंद्र सरकार को 3.5 लाख करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी। मौजूदा वित्त वर्ष के अप्रैल और मई महीने में जीएसटी कलेक्शन का सबसे बुरा हाल रहा है। अप्रैल में 40 हजार करोड़ से भी कम और मई में करीब 60 हजार करोड़ रुपये ही जीएसटी कलेक्शन हुआ है। जून-जुलाई में इसमें सुधार देखने को मिला है, लेकिन फिर भी यह 1 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े से नीचे रहा है, जो कि जीएसटी लागू होने के बाद से उसके आसपास ही रहता था या उससे भी कहीं ज्यादा। अगर इस वित्त वर्ष के पहले चार महीने में जीएसटी का औसत कलेक्शन देखें तो यह मात्र 68,166 करोड़ रुपये है। बीते चार वित्त वर्षों में सबसे कम।
जीएसटी पर केंद्र से अधिक मुआवजा मांग रहे हैं राज्य
अगर जीएसटी कलेक्शन में सरकारी आंकड़ों को देखें तो सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड, मणिपुर और मिजोरम जैसे उत्तर पूर्व के 5 राज्यों को छोड़कर इस साल सभी में अनुमान से कम टैक्स कलेक्शन के आसार हैं। जुलाई में राजस्थान, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश को छोड़कर हर राज्य में कलेक्शन घटा है। बस राज्य सरकारें केंद्र सरकार से इसी का मुआवजा मांग रहे हैं। लेकिन, केंद्र सरकार के खजाने पर पहले ही बहुत ज्यादा बोझ है। विशेषज्ञों के मुताबिक सरकार के सामने यह बहुत ही असाधाराण परिस्थितियां हैं।
सरकार के पास विकल्प क्या हैं?
ऐसे में सवाल उठता है कि केंद्र सरकार के पास राज्यों की मांग को पूरा करने के लिए विकल्प क्या हैं? वह उधार ले और कर्ज चुकाने के लिए सेस बढ़ाए। सेस बढ़ाए और इसके दायरे का और विस्तार करे यानी ज्यादा सेवाओं को इससे जोड़े। फुटवेयर, कपड़े, खाद पर लेवी बढ़ाए या फिर कुछ चीजों पर जीएसटी रेट बढ़ाया जाए और स्लैब को ज्यादा तर्कसंगत किया जाए? लेकिन, एक्सपर्ट मानते हैं कि दुनिया में इस वक्त खपत बढ़ाने के लिए इस तरह के उपायों को कम करने की कोशिश हो रही है। इसीलिए यह सेस बढ़ाने का सही वक्त नहीं है।
जीएसटी के मौजूदा स्लैब
हकीकत तो ये है कि कार, तंबाकू, सॉफ्ट ड्रिंग और कोयले पर जो पहले से सेस लगा हुआ है, उससे भी इतना राजस्व नहीं आ रहा है कि मुआवजे का भुगतान हो सके। इस समय देश में जीएसटी के 4 स्लैब बने हुए हैं:-
0 से 5 %- 480 चीजें
12%- 221 चीजें
18%- 607 चीजें
28%- 29 चीजें
गौरतलब है कि औसत जीएसटी रेट इस समय 14 % से घटकर करीब 11.60% रह गया है।
इसे भी पढ़ें- सोनिया गांधी का मोदी सरकार पर हमला, कहा-दशकों में बनाई गई संपत्तियां बेच रही है सरकार