ग्राउंड रिपोर्ट: हीरो सब-इंस्पेक्टर गगनदीप सिंह 'अंडरग्राउंड' क्यों हैं
नैनीताल के रामनगर के गरजिया मंदिर के बाहर उग्र हिंदू युवाओं की एक भीड़ से एक मुसलमान को बचाने वाले पुलिस इंस्पेक्टर गगनदीप सिंह ने शायद ही कभी सोचा होगा कि वे रातों रात सुर्खियों में आ जाएंगे.
वो भी अपनी नौकरी के पहले छह महीनों में ही. उन्होंने वैसे तो अपनी ड्यूटी के मुताबिक ही काम किया लेकिन हिंदू-मुसलमान, कथित लव जिहाद और उनका सिख होना
नैनीताल के रामनगर के गरजिया मंदिर के बाहर उग्र हिंदू युवाओं की एक भीड़ से एक मुसलमान को बचाने वाले पुलिस इंस्पेक्टर गगनदीप सिंह ने शायद ही कभी सोचा होगा कि वे रातों रात सुर्खियों में आ जाएंगे.
वो भी अपनी नौकरी के पहले छह महीनों में ही. उन्होंने वैसे तो अपनी ड्यूटी के मुताबिक ही काम किया लेकिन हिंदू-मुसलमान, कथित लव जिहाद और उनका सिख होना, इन सबने मिलकर वो कर दिया, जिससे देखते देखते 27 साल के एक युवा पुलिस सब-इंस्पेक्टर की ज़िंदगी में तूफ़ान आ गया.
वो तूफ़ान ऐसा है कि सोशल मीडिया और अन्य कई हलकों में जिस पुलिस अफ़सर को 'हीरो' माना गया, आज वो मीडिया के सामने आने में असहज महसूस कर रहा है. जब बीबीसी ने उनसे फ़ोन पर बात कर, उनसे मिलकर उनकी कहानी जाननी चाही तो उन्होंने कहा कि इस पर उनके सीनियर ही कोई फ़ैसला कर सकते हैं.
नहीं मिले गगनदीप सिंह
नैनीताल के सीनियर एसपी जनमेजय खंडूरी ने बीबीसी की मुलाकात गगनदीप सिंह से कराने का वादा किया लेकिन वो दिन के इंतज़ार का बाद भी पूरी नहीं हो पाया. खंडूरी के कहने के मुताबिक जब हम दिल्ली से नैनीताल पहुंचे तो उन्होंने हमें एसपी सिटी सती के हवाले कर कहा कि इनसे संपर्क कीजिए, गगनदीप से बात हो जाएगी.
सती ने मुलाकात का भरोसा भी दिलाया, लेकिन कुछ ही घंटों के बाद उन्होंने फ़ोन पर बताया, "गगनदीप सिंह का कुछ पता नहीं चल रहा है, ना तो वो अपने कमरे में है और ना ही थाने में. उनका नंबर भी बंद जा रहा है, हम उसे ट्रेस करने की कोशिश कर रहे हैं."
एक दिन पहले जिस पुलिस अफ़सर की तारीफ़ पूरा देश कर रहा था, अब उनका कुछ अता-पता नहीं था. पुलिस अधिकारियों से बातचीत से ये ज़ाहिर हो रहा था कि कुछ मुश्किल ज़रूर है. हमारे लिए ये समझना मुश्किल नहीं था कि अचानक से मीडिया इंटरव्यू करने की बाढ़ से भी नैनीताल पुलिस के आला अधिकारी सकते में आ गए थे.
छुट्टियों पर भेज दिया गया है...
लेकिन सीनियर एसपी जन्मेजय खंडूरी ने हमें अपने दफ़्तर में बताया, "गगनदीप से मेरी बात हुई है और वो अभी मीडिया से बात करने के लिए सहज नहीं है, उसकी काउंसलिंग कराई जाएगी." लेकिन ये मामला गगनदीप सिंह के अचानक सिलेब्रिटी होने का ही नहीं था.
सोशल मीडिया पर गगनदीप की जितनी तारीफ़ हो रही थी, उतनी ही गालियां भी पड़ रही थीं और ऐसे किसी दबाव को झेलने का अनुभव उनके पास नहीं है. हालांकि उनकी पुलिस ट्रेनिंग के कारण वो भीड़ के सामने अडिग ज़रूर रहे, लेकिन सोशल प्लेटफ़ॉर्म पर अपनों के बीच ट्रोल किए जाने का अनुभव शायद उन्हें पहले कभी नहीं रहा है.
ये बात और है कि उनकी बहादुरी की तारीफ़ करने वालों में फिल्मकार फ़रहान अख़्तर, अदिति राव हैदरी, रिचा चड्ढा जैसे सितारे शामिल रहे लेकिन इन सबकी तारीफ से खुश होने का मौका गगनदीप को नहीं मिला. उन पर गर्व करने वाले उनके ही विभाग के आला अधिकारियों के मुताबिक उन्हें कुछ दिनों के लिए छुट्टियों पर भेज दिया गया है.
रामनगर में चर्चा
पुलिस अधिकारियों के हाव भाव से भी ये ज़ाहिर हो रहा था कि महज़ 27 साल की उम्र के इस इंस्पेक्टर को मीडिया रातों रात हीरो बनाने में क्यों तुला हुआ है. लेकिन उनके 'अंडरग्राउंड' होने की असली वजह का पता रामनगर की फिजाओं में घुमड़ता नज़र आया.
गगनदीप सिंह ने जिस लड़के को भीड़ से बचाया था, वो मुस्लिम समुदाय का यवुक था और हिंदू लड़की के साथ मंदिर परिसर के आस-पास 'पकड़ा' गया था. इस बात को राज्य की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के कई नेताओं ने कथित 'लव जिहाद' का मामला बताया है.
रूद्रपुर से बीजेपी विधायक राज कुमार ठुकराल ने मीडिया के सामने इस मामले को क़ानून व्यवस्था का निकम्मापन ठहराया और कहा कि 'लव जिहाद के किसी मामले को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.' उनके बयान का असर स्थानीय पुलिस अधिकारियों पर साफ़ नज़र आ रहा था.
माहौल बिगाड़ने की कोशिश
रामनगर के गरजिया मंदिर के आस-पास के लोगों के चेहरों के हाव भाव माहौल में शांति के बावजूद बता रहे थे कि कहीं कुछ धधक रहा है.
भाजपा के ज़िला महामंत्री एवं स्थानीय ग्राम प्रधान राकेश नैनवाल ने बीबीसी से कहा, "ये घटना कोई इतनी बड़ी नहीं है कि इसे इतना महिमा मंडित किया जाए. हमारे कार्यकर्ताओं की तरफ़ से लड़के को दो थप्पड़ ही तो मारे गए. आप वीडियो देखो, किसी के पास कोई हथियार नहीं थे."
"आप ये भी देखिए वो लोग मंदिर परिसर में क्या करने आ रहे हैं, अय्याशी करने आ रहे हैं, पुलिस उन लोगों पर ध्यान क्यों नहीं दे रही है."
रामनगर में ऐसे लोग भी मिले जिन्होंने आरोप लगाया कि माहौल बिगाड़ने की कोशिश हो रही है.
ऐसी तस्वीर देखने के लिए तरस रहे हैं...
स्थानीय नागरिक कैसर राना ने बताया, "पिछले कुछ समय से रामनगर की फिज़ा को बिगाड़ने का प्रयास कुछ लोगों की ओर से लगातार किया जा रहा है. लव जिहाद के नाम पर मुसलमानों को घेरा जा रहा है. अगर नौजवान लड़के-लड़कियां मिलते हैं तो कुछ लोग ये फ़रमान कैसे जारी कर सकते हैं कि ये लव जिहाद है?"
रामनगर के एक अन्य निवासी एवं रंगकर्मी अजीत साहनी कहते हैं, "धर्म की बैसाखियों पर ये सियासत का सफ़र, आदमी पर आदमी की जानवर जैसी नज़र. गगनदीप सिंह ने जिस तरह से एक नौजवान को अपनी छाती ले लगा कर उसकी रक्षा की है ऐसी तस्वीर पूरे भारत में देखने के लिए हम तरस रहे हैं."
ऐसे में समझना मुश्किल नहीं है कि बीजेपी के नेताओं के आक्रामक रवैये का दबाव स्थानीय पुलिस पर कम नहीं है. हालांकि एसएसपी जनमेजय खंडूरी कहतें हैं, "हम पर कोई दबाव नहीं है." वो एक ही बात दोहराते रहे कि गगनदीप से इन परिस्थितियों में बात करना सही नहीं होगा.
गगनदीप सिंह की कहानी
ये हो सकता है कि पुलिस विभाग अपने युवा अधिकारी को ज़्यादा मीडिया एक्सपोजर से बचाना चाहते हों, लेकिन उत्तराखंड पुलिस इस मौके पर बाकी पुलिस फ़ोर्स के सामने गगनदीप की मिसाल रखने से चूक रही लगती है.
उत्तराखंड राज्य पुलिस के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों और डीजीपी मुख्यालय के मीडिया सेल प्रभारी प्रदीप गोडबोले ने भी लगातार यही बताया गगनदीप सिंह की कहानी एक पॉजिटिव स्टोरी है, होनी चाहिए और सबने इसके लिए जनमेजय खंडूरी को ही कांटैक्ट पर्सन बताया.
गगनदीप सिंह को सम्मानित करने की फ़िलहाल राज्य सरकार ने पहल नहीं की है, जबकि पुलिस विभाग के सामने चुनौती यही है कि गगनदीप सिंह जैसे पुलिस इंस्पेक्टर हर इलाके में हों. चाहे वो राजनीतिक दबाव हो या फिर विभागीय दबाव, ऐसा मालूम होता है कि गगनदीप सिंह का हौसला कायम है.
28 मई की दोपहर को जब उनका विभाग उन्हें ट्रेस करने की कोशश कर रहा था, उसी वक्त उन्होंने अपनी फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल पिक्चर को बदला. लेकिन सबसे दिलचस्प उनका व्हाट्सऐप स्टेटस है- मैं किसी से बेहतर करुं..क्या फर्क पड़ता है..! मैं 'किसी का' बेहतर करूं...बहुत फर्क पड़ता है...!