ग्राउंड रिपोर्ट: ईस्टर्न पेरिफ़ेरल एक्सप्रेसवे पर हो रही चोरियों के पीछे किस्सा क्या है
दिल्ली से महज़ पचास किलोमीटर दूर ग़ाज़ियाबाद के डासना क़स्बे से हम नेशनल एक्सप्रेसवे-2 पर चढ़े. ज़िला बागपत की तरफ़ क़रीब 20 किलोमीटर चलने के बाद हमने सड़क पर पैदल जा रहे दो लड़कों के बगल में कार रोकी तो वे हमें देखकर चलते बने.
मैले कपड़े, सिर पर गमछा और दोनों के हाथ में एक-एक पोटली थी. उन्हें देखकर लगा कि किसी के लिए दोपहर का खाना लेकर जा रहे थे.
दिल्ली से महज़ पचास किलोमीटर दूर ग़ाज़ियाबाद के डासना क़स्बे से हम नेशनल एक्सप्रेसवे-2 पर चढ़े. ज़िला बागपत की तरफ़ क़रीब 20 किलोमीटर चलने के बाद हमने सड़क पर पैदल जा रहे दो लड़कों के बगल में कार रोकी तो वे हमें देखकर चलते बने.
मैले कपड़े, सिर पर गमछा और दोनों के हाथ में एक-एक पोटली थी. उन्हें देखकर लगा कि किसी के लिए दोपहर का खाना लेकर जा रहे थे.
जब तक मैं उन्हें आवाज़ देता, दोनों लड़के हाइवे से क़रीब तीस फ़ुट नीचे खेतों की तरफ़ उतर चुके थे. मुझे नहीं लगता कि उन्होंने मेरी कोई बात सुनी, लेकिन उनका जवाब सिर्फ़ इतना था, "हमें कुछ ना पता."
उनका डर देखकर लगा कि प्रशासन ने हाइवे पर कुछ सख़्ती की है और शायद ये उन ख़बरों का असर हो, जिनमें दावा किया गया है कि उद्घाटन के बाद से लेकर अब तक क़रीब 4 करोड़ रुपये का सामान हाइवे से चोरी हो गया है.
'हमारा ढाई से तीन करोड़ का सामान गया'
क़रीब 130 किलोमीटर लंबे ईस्टर्न पेरिफ़ेरल एक्सप्रेसवे या कहें नेशनल एक्सप्रेसवे-2 का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 मई को किया था.
लेकिन उद्घाटन होने के दस दिन के भीतर ही हाइवे से काफ़ी सामान ग़ायब होने की ख़बरें आईं. इस हाइवे के एक डिप्टी प्रोजेक्ट मैनेजर पीयूष भावसर के पास चोरी हुए सामान की एक लंबी फ़ेहरिस्त है.
वो गिनवाते हैं कि हाइवे पर कहाँ-कहाँ से सोलर प्लेटें उतार ली गई हैं, कितनी कन्वर्टर बैटरियां चुराई गई हैं, फ़व्वारों के लिए लगीं कुछ पानी की मोटरें ग़ायब हैं और कहीं से तो फ़व्वारों के मुँह खोल लिए गए हैं.
पीयूष भावसर गुजरात की सद्भाव इंजीनियरिंग नाम की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी के लिए काम करते हैं. इस कंपनी ने ईस्टर्न पेरिफ़ेरल एक्सप्रेसवे के छह टुकड़ों में से दो (क़रीब 50 किलोमीटर) का निर्माण किया है.
वो कहते हैं, "एक्सप्रेसवे के नीचे क़रीब 200 अंडर पास बने हैं. इनमें रोशनी के लिए मरकरी लाइटें लगाई गई थीं. काफ़ी जगह से वो ग़ायब हैं. उन्हें ऊर्जा देने के लिए लगाई गईं सोलर प्लेटें और बैटरियाँ भी ग़ायब हैं. हमारे अंतर्गत जो इलाक़ा है, उसी में क़रीब ढाई से तीन करोड़ रुपये का सामान ग़ायब है. सारा जोड़ेंगे तो और ज़्यादा बैठेगा."
'रोड रेलिंग खोलते पकड़े गए'
हाइवे पर इन दिनों सड़क के दोनों तरफ़ सुरक्षा के लिए लगी स्टील की रेलिंग को बचाने की कोशिशें चल रही हैं. बीते दिनों कुछ जगहों से लोग उस रेलिंग को खोलकर ले गए थे, इसलिए अब उनमें लगे नट-बोल्ट पर टाँका (वेल्डिंग) लगाया जा रहा है.
हरियाणा के कुंडली से शुरू होने वाला यह एक्सप्रेसवे छह संसदीय क्षेत्रों से होकर गुज़रता है-. सोनीपत, बाग़पत, ग़ाज़ियाबाद, नोएडा, फ़रीदाबाद और पलवल.
बाग़पत में जिस जगह पीएम मोदी ने सभा करने के बाद इस हाइवे का उद्घाटन किया था, वहाँ काम कर रहे मज़दूरों ने बताया कि खेकड़ा थाना क्षेत्र में गुरुवार को पुलिस ने दो लोगों को स्टील की रेलिंग खोलते वक़्त गिरफ़्तार किया था.
हालांकि बीबीसी से बातचीत में बाग़पत (खेकड़ा सर्कल) की डीएसपी वंदना शर्मा ने गुरुवार की इस घटना पर कुछ नहीं कहा, लेकिन वो बोलीं, "बहुत सी शिक़ायतें मिल रही हैं. हाइवे का क़रीब 21 किलोमीटर हिस्सा बाग़पत ज़िले में पड़ता है. हमने पुलिस की दो गाड़ियाँ गश्त के लिए हाइवे पर तैनात करने का फ़ैसला किया है. हाइवे से सामान चुराने वाला एक गैंग हमने पकड़ा है और उनसे सामान भी बरामद हुआ है."
चोरी के आरोप में पकड़े गए लोगों के बारे में जानकारी देने से वंदना शर्मा ने इनकार कर दिया.
'समाज के लिए शर्म की बात!'
उत्तर प्रदेश में गौतम बुद्ध नगर के ज़िला मजिस्ट्रेट बीएन सिंह ने भी आपराधिक घटनाओं पर चिंता जताते हुए नेशनल हाइवे अथॉरिटी को चिट्ठी लिखी है.
बीएन सिंह कहते हैं कि हाइवे का 132 किलोमीटर में से 86 किलोमीटर इलाक़ा उत्तर प्रदेश में पड़ता है और 86 में से 41 किलोमीटर गौतम बुद्ध नगर में हैं. इसलिए सुरक्षा को लेकर उनकी चिंता सबसे बड़ी है.
बीएन सिंह इन घटनाओं की निंदा करते हुए कहते हैं, "यह समाज के लिए शर्म की बात है."
हाइवे के दोनों तरफ़ बसे जिन गाँव वालों से हमने बात की, उनकी राय भी बीएन सिंह से मिलती-जुलती है.
दिल्ली-सहारनपुर मार्ग पर यमुना से सटे कांठा गाँव में कुछ लोगों से हमने बात की. इस मामले में कैमरे पर बोलने को कोई तैयार नहीं हुआ. लेकिन गाँव के एक बुज़ुर्ग ने छोटी सी कहानी पेश की.
वह बोले, "पहले रेल के डिब्बों में बिजली की सप्लाई के लिए इंजन से एक जेनेरेटर चलता था. उसे चलाने के लिए चमड़े की एक मोटी बेल्ट लगी होती थी. वैसी ही बेल्ट लोगों के कई तरह के काम में आती थी. घरेलू इंजन चलाने से लेकर किसी छोटी फ़ैक्ट्री में उसका इस्तेमाल होता था. ये बाज़ार में आसानी से मिलती था, लेकिन लोगों को लगता था कि रेलवे का माल है तो मज़बूत होगा. इसलिए एक ने चुराया और फिर देखा-देखी बहुत से लोग रेल की चेन खींचकर उसे रोकते और सुनसान जगह में उसकी बेल्ट काट लेते."
उन्होंने बताया कि 80 और 90 के दशक में देहात के इलाक़ों में वो बेल्ट 'रेल का पटा' करके मशहूर थी. लोग जानते थे कि कौन ऐसी बेल्टों को इस्तेमाल कर रहा है, मगर कभी इस बारे में कोई नहीं बोला.
इसके बाद वो ठहाका मारकर मुस्कुराये और बोले, "अब भी कोई नहीं बोलेगा."
किसानों की शिकायत
सद्भाव इंजीनियरिंग कंपनी के अलावा इस हाइवे के निर्माण में लगी जय प्रकाश एसोसिएट्स, अशोका बिल्डकॉन और ओरिएंटल इंजीनियर्स के कर्मचारियों ने बताया कि हाइवे के दोनों तरफ़ जितनी जगह नेशनल हाइवे अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (एनएचएआई) ने किसानों से ली थी, उसका सीमांकन करके, वहाँ लोहे की बाड़ लगाई गई थी. इस बाड़ को कुछ जगह पर लोगों ने अपने खेतों या घर पर लगाने के लिए तोड़ लिया है.
परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में ये दावा किया था कि सरकार हाइवे के दोनों तरफ छोड़ी गई इस पट्टी में क़रीब ढाई लाख पेड़ लगाएगी.
रात में हाइवे पर गश्त लगाने वाली एक टीम ने बताया कि बाड़ टूटने की वजह से कई बड़े मवेशी हाइवे पर आ रहे हैं. इस कारण बीतें दिनों कई बड़े हादसे भी हुए हैं, जिनमें से एक दुर्घटना में एक ही परिवार के सात लोगों की मौत हो गई थी.
हालांकि इस बारे में जब कुछ किसानों से बात हुई तो उन्होंने बाड़ तोड़े जाने की वजह बताई. उत्तर प्रदेश में दादरी के क़रीब कुछ किसानों ने कहा कि इसके लिए सरकार ही ज़िम्मेदार है.
54 साल के हरपाल सिंह सीमांत किसान हैं. उन्होंने कहा, "बहुत से छोटे रास्ते हाइवे के नीचे दब गए. अब कई किसान ऐसे हैं जिनके खेतों तक पहुँचने के लिए रास्ता ही नहीं है. चकबंदी अधिकारियों के यहाँ मामले लटके पड़े हैं. कोई अपने खेत में से दूसरे किसान को रास्ता नहीं देना चाहता. ऐसे में खाली पड़ी इस ज़मीन के ज़रिये लोग आते हैं और बाड़ तोड़कर खेत में घुसते हैं. कई लोगों ने इसे पक्का रास्ता बना लिया है."
चकबंदी विभाग पर किसानों ने जो आरोप लगाए, बीबीसी उनकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता है.
आगे की चुनौतियाँ
सरकारी आंकड़े के मुताबिक़, कुल 11,000 करोड़ रुपये की लागत से बने इस एक्सप्रेसवे पर 36 राष्ट्रीय स्मारकों की प्रतिकृतियाँ बनाई गई हैं.
लेकिन इनमें से कई को आंशिक रूप से तोड़ दिया गया है.
डिप्टी प्रोजेक्ट मैनेजर पीयूष भावसर को संदेह है कि इन स्मारकों को स्थानीय लोगों ने ही तोड़ा है. वो कहते हैं, "सोलर प्लेट तो किसी के काम आ सकती हैं. वो महँगी भी आती हैं. लेकिन इन छोटे स्मारकों को तोड़ने से किसी को क्या फ़ायदा होगा."
बहरहाल, हरियाणा और उत्तर प्रदेश पुलिस का दावा है कि हाइवे की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्लान बनाया जा रहा है.
कोशिश की जा रही है कि डासना, झकौली और छज्जू नगर (पलवल) टोल गेट की तरह सभी आठ टोल गेट जल्द से जल्द शुरू किए जाएं.
साथ ही सितंबर तक वेस्टर्न पेरिफ़ेरल एक्सप्रेसवे को शुरू करने की एक बड़ी चुनौती सामने है, जहाँ ऐसी तमाम घटनाओं को रोकने की कोशिशें पहले से करनी होंगी.
एक्सप्रेसवे पर ट्रकवालों की राय
ज़्यादातर ट्रकवालों ने इसे बड़ी सहूलियत बताया. उनकी राय है कि दिल्ली के बॉर्डर पर खड़े रहना कष्टकारी था. साथ ही दिल्ली के ट्रैफ़िक से पार पाने में जो वक़्त और ईंधन लग जाता था, वो अब बच रहा है.
अलीगढ़ से वास्ता रखने वाले सूरजपाल सिंह बीते 30 सालों से ड्राइवरी कर रहे हैं. वो एक्सप्रेसवे के रूट से खुश हैं, लेकिन उसकी क्वॉलिटी पर सवाल करते हैं.
उन्होंने कहा, "मैं हिमाचल से मेरठ, मोदीनगर और दादरी के बीच माल ढोता हूँ. सिर्फ़ दिल्ली पार करने में जितना वक़्त लग जाता था, उतने वक़्त में अब सोनीपत से दादरी पहुंच जाते हैं. बड़ा आराम हो गया है. लेकिन हाइवे सपाट नहीं बना इनसे. कई जगह बड़ा ऊंचा-नीचा है. ट्रक उछल जाता है."
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