ग्राउंड रिपोर्टः 'कोई और जानवर मरे तो कोई बात नहीं पर गाय हमारी माता है'
मुसलमानों के घरों की तरफ जाते हुए हमें उनके मुखिया राजबीर खोखर मिले
हालांकि राजबीर भी शांति की बात कर रहे थे जैसा कि जाट समुदाय कर रहा था.
सवाल पूछने से पहले ही उनका जवाब आ जाता था. वो बार-बार कहते रहे कि गांव में सब कुछ ठीक है कोई भी परेशानी नहीं है. लेकिन उनका चेहरा कुछ और ही बता रहा था.
राजबीर ने कहा, "यामीन का ऐसा कोई इरादा नहीं था.
22 अगस्त को सारी दुनिया में ईद की रौनक थी. लोग एक-दूसरे को बधाइयां दे रहे थे. इसी दिन हरियाणा के रोहतक के गांव टिटौली में इस घर में लगा ताला कुछ और ही कहानी कह रहा था.
दरवाज़े के अंदर बच्चों के स्कूल बैग, कुर्सियां और कुछ बर्तन ऐसे पड़े थे कि मानो इस घर में रहने वाले किसी हड़बड़ी में यहां से गए हों.
ये घर यामीन नाम के उसी युवक का है जिस पर ईद के दिन एक बछिया को मारने का आरोप है.
यामीन के पड़ोस के कुछ घरों पर भी ताला जड़ा था.
ऐसे दावे किए जा रहे हैं कि ईद वाले दिन बछिया की मौत के बाद बहुसंख्यक लोगों की धार्मिक भावना भड़क गई और यामीन के साथ ही कई और परिवारों को गांव छोड़ना पड़ा.
गांव में पुलिस का पहरा
टिटौली में करीब 125 मुस्लिम परिवार रहते हैं. यामीन का परिवार भी इनमें से एक है. करीब 20 हज़ार की आबादी वाले इस गांव में जाट बहुसंख्यक हैं और मुसलमानों के इलाके को धोबी मुहल्ला कहा जाता है.
बीबीसी की टीम ईद के अगले दिन टिटौली गांव पहुंची.
लिंक रोड से करीब डेढ़ किलोमीटर अंदर इस गांव में अज़ीब सी शांति थी. वहां पुलिस की कई गाड़ियां गश्त पर थीं. गांव की हर गली में पुलिस तैनात थी.
बीबीसी की टीम सीधे पहुंची सरपंच के घर. हालांकि सरपंच प्रमिला नाम की एक महिला हैं लेकिन उनकी जगह सारा काम काज उनके जेठ सुरेश कुंडू देखते हैं. सुरेश कुंडू ने ही पुलिस के पास बछिया की मौत की रिपोर्ट की थी. जिसके बाद यामीन और एक और युवक को गिरफ़्तार किया गया.
'दोषियों के ख़िलाफ हो कार्रवाई'
सरपंच के घर हमें कुछ बुज़ुर्ग मिले. गांव वालों की बातें चल रही थी और इलाके के एसडीएम और डीएसपी माहौल पर नज़र रखे थे.
ईद वाले दिन क्या हुआ था, इस सवाल पर बुज़ुर्गों ने एक सुर में कहा, "बछिया मरी तो गांव के युवक गुस्से में आ गए और उनका गुस्सा मुसलमानों के ख़िलाफ़ निकला भी लेकिन अब हालात काबू में हैं और सब ठीक है."
इसी दौरान सुरेश कुंडू भी आ गए. बातचीत के दौरान बछिया की मौत को लेकर उनकी तल्खी साफ़ देखी जा सकती थी.
उन्होंने कहा, "यामीन ने बछिया को जान बूझ कर मारा था. अगर उससे ग़लती हो गई थी तो मान लेता. जो दोषी है, उसे सज़ा मिलनी ही चाहिए. अगर क़ानून अपना काम नहीं करेगा तो समाज उसे सज़ा देगा."
मुसलमानों के गांव छोड़ देने की मांग क्यों उठी? ये पूछने पर सुरेश ने कहा, "गांव के नौजवानों ने ये मांग उठाई थी लेकिन बाद में ये फ़ैसला हुआ कि ऐसा करना ठीक नहीं है लेकिन हमारी एक ही मांग है कि दोषियों के ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई हो."
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अगर गाय की जगह किसी और जानवर की मौत हुई होती तो गांव के बहुसंख्यकों का क्या रुख होता?
इस पर सुरेश कहते हैं, "किसी और जानवर की मौत से फ़र्क नहीं पड़ता लेकिन हम गाय को मां का दर्जा देते हैं. हमें धोबियों (यहां मुसलमानों) से कोई दिक्कत नहीं है. सिर्फ़ जो परिवार दोषी है सज़ा उसे ही मिले."
डरे हुए हैं मुसलमान
वो आगे कहते हैं, "हम सौहार्द बिगड़ने नहीं देंगे, यहां सब कुछ ठीक है."
अगर गांव में सब कुछ ठीक है तो यहां पुलिस का पहरा क्यों है?
सुरेश इस सवाल का जवाब देते हैं, "कुछ हिंदू संगठन दंगा ना भड़का दें. गोरक्षकों और हिंदू संगठनों के फ़ोन आए थे और वो कह रहे थे कि हम गांव आएंगे, पंचायत बुलाओ. कुछ धार्मिक संगठन गांव आकर नारे लगा रहे थे और कह रहे थे कि फ़ैसला करो."
क्या सोशल मीडिया के जरिए मामला भड़काने की कोशिश की गई थी, इस सवाल पर डीएसपी नारायण चंद और एसडीएम राकेश कुमार ने कहा, 'इसके कोई सबूत नहीं मिले'.
एसडीएम राकेश कुमार के मुताबिक घटना के बाद मुसलमानों में डर पैदा हो गया, उम्मीद है कि जो लोग गए हैं वो वापस आ जाएंगे.
डीएसपी नारायण चंद के मुताबिक मामला और न बढ़े इसलिए सभी समुदायों के लोगों को मिलाकर एक पीस कमेटी का गठन किया गया है.
वो कहते हैं कि पुलिस फोर्स तब तक नहीं जाएगी जब तक माहौल शांत नहीं हो जाता.
गोशाला, मंदिर में देते हैं दान
मुसलमानों के घरों की तरफ जाते हुए हमें उनके मुखिया राजबीर खोखर मिले
हालांकि राजबीर भी शांति की बात कर रहे थे जैसा कि जाट समुदाय कर रहा था.
सवाल पूछने से पहले ही उनका जवाब आ जाता था. वो बार-बार कहते रहे कि गांव में सब कुछ ठीक है कोई भी परेशानी नहीं है. लेकिन उनका चेहरा कुछ और ही बता रहा था.
राजबीर ने कहा, "यामीन का ऐसा कोई इरादा नहीं था. बछिया ने एक छोटी बच्ची को चोट पहुंचाई थी इसलिए यामीन को गुस्सा आया था. उसने उस पर वार किया जिससे बछिया मौके पर ही मर गई और वो उसे दफ़न करने ले जा रहे थे."
वो कहते हैं, "गांव वालों से हमारी कोई दुश्मनी नहीं है. हम गोशाला और मंदिर में दान देते रहे हैं."
मुसलमानों के घरों को कौन निशाना बनाने आया था इस पर वो ज्यादा नहीं बोलते है. वो कहते हैं, "मुझे नहीं पता. बस कुछ युवक जोश में आ गए थे. दोनों पक्षों के लोगों को समझा दिया गया है."
बीबीसी ने युवाओं से भी बात करनी चाही लेकिन कोई भी युवक इसके लिए आगे नहीं आया.
कुछ परिवार के घर छोड़ जाने पर राजबीर कहते हैं कि कोई कहीं नहीं गया, जहां तक यामीन के परिवार का सवाल है उन्हें फ़ोन कर दिया जाएगा. वो वापस आ जाएंगे.
क्या पीस कमेटी में मुसलमानों की तरफ से कोई है. यह पूछने पर राजबीर कहते हैं, "नहीं हमारी तरफ़ से कोई नहीं है. क़ानून अपना काम करे. अगर वो दोषी है तो उसे सज़ा सुनाए नहीं तो उसे बरी करे."
कहीं शिकवा-कहीं सफाई
राजबीर के बाद हम यामीन के घर पहुंचे. यामीन के घर के पास चार पांच पुलिस खड़े थे. एसएचओ मंजीत गश्त पर थे.
एक बुज़ुर्ग शख्स ने कहा, "जब लोग घर छोड़ रहे थे तो मैंने उन्हें रोका लेकिन वो नहीं रुके."
उनको किसका डर था ये पूछने पर बुज़ुर्ग कहते हैं, "क्या बताएं, किसका डर था."
पास ही खड़े 10वीं के एक छात्र ने दबी ज़ुबान में बताया कि कुछ लोग घर छोड़ कर घटना वाले दिन ही चले गए थे और आज भी कुछ लोग दो-तीन घंटे पहले ही निकले हैं.
यामीन के घर से थोड़ा आगे बढ़े ही थे कि हमें बहुसंख्यक परिवार की कुछ औरतें मिल गईं.
ईद वाले दिन क्या हुआ था और बछिया की मौत पर उनका क्या कहना है, ये पूछते ही उनका गुस्सा सामने आ गया.
बुज़ुर्ग महिला भरपायी ने कहा, "इन्होंने जान बूझ कर बछिया को मारा है. उसका पोस्टमॉर्टम भी हुआ था. हम गाय की पूजा करते हैं. उसे दफ़न करने हम खुद गए थे."
एक और महिला कमलेश ने कहा, "मैं चाहती हूं कि इन्हें गांव से बाहर निकाल दें. हम गाय की पूजा करते हैं, इन्होंने उसे मार दिया. अगर ये इसे अपना गांव समझते तो हमारी माता को क्यों मारते."
इस मामले में पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज पुलिस स्टेशन में एक अनजान शख्स के ख़िलाफ़ मामला दर्ज़ किया गया है. एसएचओ देवेंद्र मान के मुताबिक घटना वाले दिन एक अनजान शख्स ने वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था. हालांकि वीडियो में किस तरह की सामग्री है, कौन से अकाउंट से पोस्ट किया गया, ये पुलिस नहीं बताती.
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