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ग्राउंड रिपोर्ट: 24 दलित परिवारों को क्यों छोड़ना पड़ा घरबार

मामला महाराष्ट्र के लातूर ज़िले के रुद्रवाडी गांव का है. यहां सवर्ण मराठा जाति और अनुसूचित मतांग जाति के बीच झगड़े के बाद गांव छोड़कर गए 24 परिवार फ़िलहाल गांव से 25 किलोमीटर दूर उदगीर के पास एक पहाड़ी पर बने टूटे-फूटे हॉस्टल में रह रहे हैं.

गांव में झगड़ा क्यों हुआ और 24 परिवारों को गांव छोड़ने जैसा बड़ा फ़ैसला क्यों लेना पड़ा

By BBC News हिन्दी
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ग्राउंड रिपोर्ट: 24 दलित परिवारों को क्यों छोड़ना पड़ा घरबार

महाराष्ट्र में सवर्णों और दलितों के झगड़े में एक गांव के 24 दलित परिवारों को अपना घर छोड़कर जाना पड़ा है. बताया जा रहा है कि ये झगड़ा एक प्रेम प्रसंग को लेकर शुरू हुआ था.

मामला महाराष्ट्र के लातूर ज़िले के रुद्रवाडी गांव का है. यहां सवर्ण मराठा जाति और अनुसूचित मतांग जाति के बीच झगड़े के बाद गांव छोड़कर गए 24 परिवार फ़िलहाल गांव से 25 किलोमीटर दूर उदगीर के पास एक पहाड़ी पर बने टूटे-फूटे हॉस्टल में रह रहे हैं.

गांव में झगड़ा क्यों हुआ और 24 परिवारों को गांव छोड़ने जैसा बड़ा फ़ैसला क्यों लेना पड़ा, ये जानने के लिए बीबीसी मराठी की टीम रुद्रवाडी गांव पहुंची.

औरंगाबाद से क़रीब 370 किमी. दूर उदगीर पहुंचने के बाद एक पीड़ित परिवार से हमारी बात हो पाई.

रुद्रवाडी गांव उदगीर तहसील में पड़ता है और यहां की जनसंख्या क़रीब 1200 है.

एक शख़्स हमें उदगीर-अहमदपुर रोड पर स्थित लच्छापूर्ति मारुति मंदिर के पास से आगे लेकर गया. हम उस पहाड़ की तरफ़ बढ़े जो इन परिवारों का नया ठिकाना बताया जा रहा था.

हमें एक पुरानी और टूटी-फूटी सी इमारत दिखाई दी. ये श्यामलाल हॉस्टल था जिसे बहुत पहले ही खाली किया जा चुका था.


'हम वापस नहीं लौटेंगे'

जब हमने एक शख़्स से पूछा कि उन्होंने अपना घर क्यों छोड़ा तो उन्होंने कहा, "जाओ और सरपंच बाई से पूछो."

गांव की सरपंच शालू बाई शिंदे भी कुछ देर में वहीं आ गईं. शालू बाई भी दलित समुदाय से हैं. कहने को वो गांव की सरपंच हैं, लेकिन वो भी अपना घर छोड़ होस्टल में रह रही हैं.

उन्होंने बीबीसी को बताया, "सरपंच होने का क्या फ़ायदा? यहां ऐसे कई झगड़े होते रहते हैं. मेरे पति को कई बार निशाना बनाया गया है."

शालू बाई शिंदे कहती हैं कि ''इस तरह के झगड़े अब तक तीन बार हो चुके हैं. इससे पहले दो बार मतांग जाति के गुणवंत शिंदे इसका कारण बने थे.''

"इस बार झगड़ा शादी के सीज़न में हुआ है. अब हम इससे तंग आ चुके हैं. हम अपने गांव वापस नहीं जाना चाहते और इस ​तकरार में और नहीं पड़ना चाहते."

शालू बाई शिंदे के साथ ही खड़े उनके बेटे ईश्वर कहते हैं, "हम अब गांव वापस नहीं जाना चाहते. हम वहां कभी सम्मान के साथ नहीं रह पाएंगे. यहां तक कि हमारे नए कपड़े पहनने पर या रिक्शे पर तेज़ आवाज़ में म्यूज़िक बजाने पर भी वो लोग आपत्ति जताते हैं."


क्या हुआ था घटना के दिन?

ईश्वर शिंदे ने हमें मई में हुई उस घटना के बारे में बताया जिसके बाद उन्होंने गांव छोड़ने का फ़ैसला लिया था. उन्होंने कहा, "मेरी कज़न मनीषा वैजीनाथ शिंदे की शादी नौ मई को होनी थी. आठ मई को हम पास के मारुति मंदिर में हल्दी की रस्म के लिए गए. तब कुछ लड़के आए और हमें पीटने लगे. उनका कहना था कि हम यहां क्या कर रहे हैं. तब हम वहां से चले गए और अगले दिन गांव में शादी हुई."

"हम किसी भी तरह के झगड़े से बचना चाहते थे इसलिए हम तंतामुक्ति (विवाद निवारण) समिति के अध्यक्ष पिराजी अतोलकर और गांव के कुछ प्रतिष्ठित लोगों के पास गए. हमने उनसे दस तारीख़ को एक ​विवाद निवारण के लिए बैठक बुलाने के लिए कहा ताकि हम बातों को सुलझा सकें. बाद में हमें बताया गया कि बैठक 13 तारीख़ को होगी."


ईश्वर शिंदे ने बताया कि इससे पहले ही एक और घटना हो गई. उन्होंने कहा, "हमारे एक और रिश्तेदार का गांव के एक लड़के से झगड़ा हो गया. इसके बाद पूरे गांव ने हम पर हमला कर दिया. तब पुलिस हमें बचाने आई. हमने इसे लेकर ​शिकायत भी दर्ज कराई."

इस दौरान सरपंच शालू बाई शिंदे ने सामाजिक न्याय मंत्री राजकुमार बडोले को एक पत्र लिखकर पीड़ित परिवारों को इस होस्टल में रहने देने की अनुमति मांगी.

वहीं, पुलिस में दर्ज ​​शिकायत में लिखा गया है कि गुणवंत शिंदे का गांव की सवर्ण जाति की एक लड़की के साथ प्रेम प्रसंग होने के कारण अभियुक्त उन्हें लगातार धमका रहे थे.

शिकायत में आठ और 10 मई की घटनाओं का भी ज़िक्र है. इसमें यह भी दर्ज है कि दलितों को घर के अंदर पीटा गया है.

क्या कहता है दूसरा पक्ष?

मामले को पूरी तरह जानने के लिए हमने रुद्रवाडी जाकर कहानी का दूसरा पक्ष जानने की कोशिश की. साथ ही हमने तंतामुक्ति समिति से भी बात की जिन्होंने गुणवंत शिंदे का माफ़ीनामा दिखाया.

गांव के लोगों ने 22 जून को ज़िला प्रशासन के सामने एक बयान प्रस्तुत किया था. इसके मुताबिक उन्होंने दावा किया है, "गांव में जाति के आधार पर दुर्व्यवहार और भेदभाव की कोई घटना नहीं देखी गई है. मराठा समुदाय के 23 लोगों के ख़िलाफ़ प्रताड़ना का झूठा मामला दर्ज किया गया है. कुछ संगठन राजनीतिक द्वेष के कारण क़ानून से छेड़छाड़ कर रहे हैं."

हमने गांव में रहने वाले और लोगों से भी बात की. गांव की कौशल्याबाई राजाराम अतोलकर ने कहा, "आपने हमारे गांव के हालात देखे हैं. बुवाई के इस मौसम में गांव के काम करने वाले मर्दों को गिरफ्तार कर लिया गया है. मैंने कई पीढ़ियों से यहां जातिवाद नहीं देखा है."

जब हम गांव में पहुंचे उस वक्त गांव के कई लोग खेतों पर गए हुए थे. हमने खेत से लौटते कुछ और नौजवानों से बात की.

यादव वैजीनाथ अतोलकर ने पूरे मामले के लिए गुणवंत शिंदे और सवर्ण जाति की उस लड़की के प्रेम प्रसंग को ज़िम्मेदार ठहराया. उन्होंने कहा कि इसे जातिगत रंग दिया जा रहा है.


वहीं, तंतामुक्ति समिति के अध्यक्ष पिराजी अतोलकर ने कहा, "उन्होंने नौ तारीख को विवाद निवारण बैठक की मांग की थी. लेकिन गांव में 12 तारीख को एक और शादी होनी थी, हमने बैठक के लिए 13 तारीख का दिन दिया. लेकिन इस बीच झगड़ा बढ़ गया और बात पुलिस तक पहुंच गई."

इस मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी श्रीधर पवार ने बताया, "हम इस मामले को गंभीरता से ले रहे हैं. सभी पक्षों की जांच की जा रही है. हमने अभी तक 23 में से 11 अभियुक्तों को गिरफ्तार किया है और 12 फ़रार हैं."

सरकार इस मामले में क्या कर रही है इस बारे में समाजिक न्याय मंत्री राजकुमार बडोले का कहना था, "मुझे पहले इस मामले की पूरी जानकारी लेनी होगी और तभी मैं इस पर कुछ कह पाऊंगा."

BBC Hindi
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English summary
Ground Report 24 Dalit families had to leave the house
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