कोश्यारी की तरह इन राज्यों में भी भाजपा के लिए गेम चेंजर बने राज्यपाल
बेंगलुरु। महाराष्ट्र के सियासी नाटक में हर बदलते दिन के साथ रंग बदल रहा है, लेकिन खत्म नहीं हो रहा है। शनिवार को सबको चौंकाते हुए भाजपा ने अजीत पवार के समर्थन के साथ सरकार बना ली। देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने और अजीत पवार को डिप्टी सीएम की कुर्सी मिल गई। लेकिन शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के गठबंधन ने इसका विरोध किया और कहा कि उनके पास बहुमत ही नहीं है। इस मामले में राज्यपाल के फैसले पर सवाल उठे।
यहां तक कि रातों रात राज्यपाल द्वारा इस तरह राष्ट्रपति शासन खत्म कर के भाजपा को सरकार बनाने के लिए बुलाने पर भी तमाम सवाल उठा दिए और राज्यपाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचे। लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब राज्यपाल के निर्णय पर संदेह किया जा रहा है।
पिछले तीन वर्षों में देश के चार अन्य राज्यों में राज्यपाल भाजपा के लिए गेम चेंजर बने और भाजपा उन राज्यों में सत्ता पर काबिज होने में सफला हासिल की। यह वह राज्य है मणिपुर, गोवा, मेघालय और कर्नाटक हैं। इन 4 राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के बाद, राज्यपालों पर भाजपा को वरीयता देने के आरोप लगते रहे हैं। आइए जानते है इन राज्यों में कब और किन हालातों में भाजपा ने बहुमत न होने के बावजूद सरकार बनाने में सफलता हासिल की।
वर्ष 2017, मणिपुर
वर्ष 2017 में 60 सदस्यीय मणिपुर विधानसभा में कांग्रेस के 28 विधायक जीते। भाजपा के 21 विधायक जीतकर पहुंचे, लेकिन राज्यपाल ने चुनाव बाद के गठबंधन को आधार बनाकर भाजपा को सरकार बनाने का न्योता दिया। इसके बाद वहां भाजपा की मणिपुर में पहली बार सरकार बनी।
जिसमें एन. बीरेन सिंह ने सीएम पद की शपथ ली। बता दें कांग्रेस मणिपुर में सरकार बनाने जा रही थी लेकिन उसके तगड़ा झटका तब लगा जब गैर कांग्रेसी दलों के सभी सदस्य और एक मात्र निर्दलीय विधायक ने भाजपा को समर्थन दे दिया, और कांग्रेस 28 से आगे अपनी संख्या बढ़ाने में सक्षम नहीं हुई।
वर्ष 2017, गोवा
वर्ष 2017 में गोवा विधानसभा चुनाव के बाद, 40 सदस्यीय विधानसभा में 18 सीटों के साथ कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी, लेकिन राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने भाजपा को सरकार बनाने का न्योता दिया। कांग्रेस ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर पर्रिकर को शपथ लेने से रोकने की मांग की। हालांकि अदालत ने शपथ ग्रहण तो नहीं रोका, लेकिन 16 मार्च, 2017 को दिन में 11 बजे मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर को विश्वासमत हासिल करने को कहा। इस फैसले को लेकर भी राज्यपाल पर सवाल उठे।
वर्ष 2018, मेघालय
वर्ष 2018 में मेघालय विधानसभा चुनाव के बाद 21 सीटों के साथ कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी, लेकिन राज्यपाल ने सरकार बनाने के लिए भाजपा और उसके साथी दलों को बुलाया। भाजपा के पास महज 2 सीटें थीं और उसके साथ गठबंधन करने वाली नेशनल पीपुल्स पार्टी की 19 सीटें थीं।
बता दें मेघालय के 60 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के खाते में 21 , एनपीपी के खाते में 19 और बीजेपी के खाते में दो सीटें आई थीं। मेघालय में कांग्रेस को सबसे ज्यादा 21 सीटें मिली, लेकिन वह बहुमत साबित करने के लिए जरूरी आंकड़े जुटाने से 10 सीट पीछे रह गई तो वहीं दूसरे नंबर पर रही नेशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) के पास 19 विधायक हैं। बीजेपी (2 विधायक), यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (6 विधायक), एचएसपीडीपी (2 विधायक), पीडीएफ (4 विधायक) और 1 निर्दलीय विधायक के साथ आने से इस गठबंधन के पास 34 विधायकों का समर्थन मिल गया ।
वर्ष 2018, कर्नाटक
कर्नाटक में वर्ष 2018 में कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के बाद राज्यपाल वजुभाई वाला ने सबसे बड़े दल भाजपा को सरकार बनाने का आमंत्रण दिया1 भाजपा की सरकार विधानसभा में फ्लोर टेस्ट का के पहले ही बहुमत न जुटा पाने की स्थिहत मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने इस्तीफा दे दिया।
इसके बाद कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार बनी, लेकिन 17 विधायकों ने समर्थन से इनकार कर दिया। इन सभी को स्पीकर ने अयोग्य घोषित किया। बाद में भाजपा के बीएस येदियुरप्पा ने एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इस मामले में राज्यपाल पर कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की उपेक्षा कर भाजपा को तरजीह देने के आरोप लगे।
अब 2019 में कोश्यारी ने निभाई अहम भूमिका
पिछली 24 अक्टूबर को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के तकरीबन महीने भर तक सियासी दलों के एकदूसरे के साथ आने के बनते-बिगड़ते समीकरणों के बीच शनिवार सुबह महाराष्ट्र की सियासत में लिखी गई नई पटकथा में महाराष्ट्र के राज्यपाल के तौर पर भगत सिंह कोश्यारी भूमिका अहम बन गई। जिसने देवेन्द्र फडणवीस को महाराष्ट्र मुख्यमंत्र और अजीत पवार को उपमुख्यमंत्री की शनिवार सुबह शपथ दिला कर सबको चौंका दिया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से गहरे जुड़े रहे कोश्यारी की सादगी जहां पहली ही नजर में असर छोड़ती है, वहीं राजनीति पर अपनी पैनी नजर और गहरी पैठ को लेकर भी वह गाहे-बगाहे लोहा मनवाते रहे हैं। यही वजह है कि उत्तराखंड की सियासत खासतौर पर भाजपा के भीतर उन्हें आज भी बड़े रणनीतिकार के तौर पर देखा जाता है।
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