छत्तीसगढ़ में शहीदों के शव जंगलों में, देखता रहा देश
नई दिल्ली(विवेक शुक्ला) छत्तीसगढ़ की सुकमा घाटी में पहले जालिम माओवादियों ने सुरक्षा बलों को अपने जाल में फंसाकर हमला किया, मारा, घायल किया। फिर उनके जूते, बेल्ट, हथियार, आदि सारे सामान ले गए।
माओवादियों से लोहा लेने वाले सात जवानों के नंग-धड़ंग शव जंगलों में पड़े रहे। रविवार को उनके शव जंगलों से निकाले गए। जो 10 घायल जवान किसी तरह भागे उनका तो इलाज चल रहा है।
निकम्मेपन का जवाब
वरिष्ठ लेखक अवधेश कुमार कहते हैं कि आखिर किस लिए दो दिनों तक शहीद जवानों के शव नहीं उठाए जा सके। कहा जा रहा है कि मौसम साथ नहीं दे रहा था जिससे हेलीकॉप्टर काम में नहीं लाए जा सके।
माओवादियों का काम
पर बड़ा सवाल यह इसी खराब मौसम में माओवादी कैसे अपना काम कर रहे हैं? अगर उनसे मुकाबला करना है तो क्या हमारे सुरक्षा बलों को उसी अवस्था में काम करने में पारंगत नहीं होना चाहिए था? क्या हमारे पास इस अवस्था से निपटने के लिए व्यवस्था नहीं होनी चाहिए थी? यह शर्मनाक स्थिति है कि हमारे जवानों के शव वहां पड़े रहें, और हमारा पूरा सुरक्षा महकमा मौसम का रोना रोये।
दुखी हिन्दुस्तानी
रायपुर के वरिष्ठ पत्रकार राजेश शर्मा कहते हैं कि इस हादसे के चलते हरेक भारतीय का दिल गम और क्षोभ से भरा हुआ है कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है? क्या बारिश और तूफान में हमारे गश्ती दलों पर माओवादी हमला करें तो उनके बचाव में दूसरी टुकड़ियां यही कहतीं आगे नहीं जाएंगी कि मौसम खराब है? क्या माओवाद से लड़ने का तंत्र हमने इसी प्रकार विकसित किया है?