मोदी सरकार निजी हाथों में सौंप सकती है यह पेट्रोलियम कंपनी!
बेंगलुरू। मोदी सरकार पेट्रोलियम ईंधन का खुदरा कारोबार करने वाली देश की दूसरी सबसे बड़ी कंपनी भारतीय पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (BPCL) को निजी हाथों में देने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है और अगर सब कुछ योजना मुताबिक बुआ तो कंपनी की लगभग 54 फीसदी अंशधारिता सरकार निजी हाथों में सौंप सकती है। हालांकि निजी हाथों में सौंपने से पहले मोदी सरकार को संसद की अनुमति लेनी होगी। माना जा रही है मोदी सरकार संसद के अगले सत्र में इसका मौसदा संसद को पटल पर रख सकती है।
दरअसल, सरकार पेट्रोलियम ईंधन के खुदरा बाजार में बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लाना चाहती है ताकि बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़े। इसी के मद्देनजर सरकार बीपीसीएल में अपनी 53.3 फीसदी में से बड़ा हिस्सा किसी चुनिंदा भागीदार को बेचने का विचार कर रही है। माना जा रहा है कि बीपीसीएल के विनिवेश से ईंधन के खुदरा बाजार में न केवल बड़ी हलचल हो सकती है, बल्कि इससे सरकार को चालू वित्त वर्ष में 1.05 लाख करोड़ रुपए के विनिवेश का एक तिहाई लक्ष्य हासिल करने में भी मदद मिल सकती है।
उल्लेखनीय है उच्चतम न्यायालय ने सितंबर, 2003 में व्यवस्था दी थी कि बीपीसीएल और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन (HPCL)का निजीकरण सरकार द्वारा कानून में संशोधन के बाद ही किया जा सकता है। संसद ने ही पूर्व में दोनों कंपनियों के राष्ट्रीयकरण के लिए कानून पारित किया था। वैसे, उच्चतम न्यायालय के इस निर्देश से पहले अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार ने दोनों कंपनियों के निजीकरण की योजना बनाई थी।
तब उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद एचपीसीएल में सरकार की अपनी 51.1 फीसदी हिस्सेदारी में से 34.1 प्रतिशत हिस्सा रणनीतिक भागीदार को प्रबंधकीय नियंत्रण के साथ बेचने की योजना रुक गई थी। उस समय रिलायंस इंडस्ट्रीज, ब्रिटेन की बीपी पीएलसी, कुवैत पेट्रोलियम, मलेशिया की पेट्रोनास, शेल-सऊदी अरामको गठजोड़ तथा एस्सार आयल में एचपीसीएल की हिस्सेदारी लेने की इच्छा जताई थी। हालांकि जॉर्ज फर्नांडिस ने तब हिंदुस्तान पेट्रोलियम (एचपीसीएल) और भारत पेट्रोलियम (बीपीसीएल) के निजीकरण का विरोध किया था। वाजपेयी सरकार में रक्षा मंत्री ने कहा था कि बेचने की नीति "अमीर को और अमीर बनाने और एकाधिकार स्थापित करने के लिए है।
यह अलग बात है कि तब राजग के संयोजक रहे जार्ज फर्नाडिज का इस्तेमाल सहयोगी दल वाजपेयी सरकार में विनिवेश मंत्री रहे अरुण शौरी पर हमला करने के लिए करते थे। फर्नांडिस ने उस समय आग्रह किया कि एचपीसीएल के लिए शेल, सऊदी अरामको, रिलायंस, मलेशिया की पेट्रोनास, कुवैत पेट्रोलियम और एस्सार ऑयल के साथ-साथ सरकारी कंपनियों को भी बोली लगाने की अनुमति मिलनी चाहिए। शौरी ने उनके इस विचार का विरोध किया था। यह मामला उच्चतम न्यायालय पहुंचा। उच्चतम न्यायालय ने 16 सितंबर, 2002 को फैसला दिया कि सरकार को एचपीसीएल और बीपीसीएल की बिक्री से पहले संसद की मंजूरी लेनी चाहिए।
बीपीसीएल के निजीकरण पर कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि सऊदी अरब की सऊदी अरामको और फ्रांस की ऊर्जा क्षेत्र की दिग्गज टोटल एसए के लिए बीपीसीएल का अधिग्रहण एक आकर्षक सौदा हो सकता है, क्योंकि दोनों ही कंपनियां दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते ईंधन के खुदरा कारोबार बाजार में उतरने की तैयारी में हैं। बीपीसीएल कंपनी के अधिकारियों के मुताबिक सरकार बीपीसीएल को निजी क्षेत्र की देशी-विदेशी कंपनियों को बेचने के प्रस्ताव पर विचार कर रही है।
गौरतलब है मौजूदा समय में बाजार में सरकारी कंपनियों का दबदबा है। बीपीसीएल का बाजार पूंजीकरण 27 सितंबर को बाजार बंद होने के समय 1.02 लाख करोड़ रुपए था। इस लिहाज से कंपनी में सिर्फ 26 फीसदी हिस्सेदारी बेचने पर सरकार को 26,500 रुपए के अलावा नियंत्रण एवं बाजार प्रवेश प्रीमियम के रूप में 5,000 से 10,000 करोड़ रुपए तक मिल सकते हैं। हालांकि, बीपीसीएल के निजीकरण के लिए संसद की मंजूरी की जरूरत होगी।
इससे पहले, मोदी सरकार ने बुरी तरीके से कर्ज में डूबी एयर इंडिया की हालात सुधारने के लिए एयरइंडिया को बेचने की तैयारी की योजना उसकी पाइपलाइन में हैं। सरकार एयर इंडिया में अपनी 100 फीसदी हिस्सेदारी को बेच सकती है। नागरिक उड्डयन मंत्री हरदीप पुरी के मुताबिक सरकार एयरलाइंस बिजनेस को चलाने की इच्छुक नहीं है। उनका कहना है कि ये काम प्राइवेट कंपनियों को ही करना चाहिए। उन्होंने एयर इंडिया के पूरी तरीके से निजीकरण होने के भी संकेत दिए हैं।
दरअसल, एयर इंडिया काफी लंबे समय से कर्ज से जूझ रही है। पिछले दिनों सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों के बिल का भुगतान नहीं करने के कारण HPCL, BPCL और IOC ने फ्यूल (ATF) की सप्लाई रोक दी थी. एयर इंडिया को हर महीने 300 करोड़ रुपए अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए खर्च करने पड़ते हैं।
इससे पूर्व, मोदी सरकार द्वारा रेलवे की निजीकरण करने की भी कवायद सुर्खियां बनी थीं, लेकिन रेल मंत्री पीयूष गोयल ने रेलवे के निजीकरण की अटकलों खारिज करते हुए कहा कि रेलवे की योजना पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिफ को बढ़ावा देने की है और रेलवे के निजीकरण का सवाल ही नहीं उठता है। उन्होंने संसद में स्पष्ट करते हुए बताया कि रेलवे पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत आईआरसीटीसी को राजधानी दिल्ली-लखनऊ तेजस एक्सप्रेस को चलाने के लिए एक सीमित अवधि के लिए दिया गया है।
रेल मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, "रेलवे का निजीकरण नहीं किया जा सकता है. ऐसे में यह सवाल ही नहीं उठता है। गोयल ने कहा, "सच्चाई यह है कि यदि हम रेलवे की सुविधाओं में सुधार चाहते हैं तो उसके लिए पूंजी की आवश्यकता है। हमें इसकी पूंजी जुटाने की क्षमता बढ़ाना होगी। पीपीपी मॉडल को अनेक प्रोजेक्ट में लागू किया जाएगा। कुछ यूनिट्स जरूर कॉर्पोरेट के हवाले की जाएंगी, मगर कांग्रेस इस पर घड़ियाली आंसू बहा रही है, यह तो उनके समय से ही शुरू हो गया था।
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