पर्यावरण मामलों पर भारत सरकार के रुख की दुनियाभर में हो रही तारीफ
नई दिल्ली। भारत ने हाल के सालों में मुखरता के साथ जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर बात रखी है, जिससे दुनियाभर में उसकी पहचान बेहतर हुई है। भारत ने एतिहासिक पेरिस क्लाइमेट एग्रीमेंट साइन किया है तो हाल ही में इंटरनेशनल सोलर एलायंस की मेजबानी भी की है।
दिसंबर 2015 में हुए पेरिस एग्रीमेंट में सदस्य देशों को ये तय करना है कि वो कार्बन डाईऑक्साइड के उत्सर्जन को कम करें ताकि ग्लोबल तापमान में आ रही बढ़ोतरी को रोका जा सके। जो हाल के सालों में 1.5 सेल्सियस से ज्यादा बढ़ रहा है। भारत दुनिया की छह फीसदी कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन करता है। चीन 28 फीसदी, अमेरिका 16 प्रतिशत, यूरोपियन यूनियन 10 प्रतिशत कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जित करता है। प्रति व्यक्ति कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन के मामले में दस देश भारत से आगे हैं।
फ्लोरा, फाउना, फॉरेस्ट और वाइल्ड लाइफ के सर्वे के मुताबिक, भाजपा की सरकार बनने के बाद पशु कल्याण, पर्यावरण, वन और जलवायु मंत्रालय पर्यावरण और जंगल से जुड़ी याजनाओं पर काफी काम कर रहे हैं। मंत्रालय ने जो अहम कदम उठाए हैं, उनमें फॉरेस्ट कवर, प्रदूषण रोकथाम और मॉनीटरिंग के लिए कदम, 10 लाख करोड़ के निवेश के लिए 2000 मंजूरियां जोकि 10 लाख नौकरियां पैदा करेंगी। साथ ही 600 से 190 दिनों के मानकीकरण, विकेन्द्रीकरण के प्रोजेक्ट कम किए गए हैं। ये पारदर्शी प्रक्रिया और पेरिस में सीओपी 21 में भारत की स्थिति मजबूत करने को किया गया।
भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल है, जहां फॉरेस्ट कवर बढ़ा है। फॉरेस्ट और पेड़ कवर 2015 के फॉरेस्ट रिपोर्ट के मुताबिक 794,245 स्क्वायर किमी था, जो कि देश के भौगोलिक एरिया का 24 फीसदी है। जो 2013 के मुकाबले 3775 स्क्वायर किमी ज्यादा है। वन और पेड़ के कवर में वृद्धि इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण है कि जंगल ईंधन की लकड़ी की कुल आवश्यकता का लगभग 30 फीसदी, ऊर्जा का प्राथमिक स्रोत, चारे का ज्यादातर भाग वन से आता है। ईंधन की लकड़ी की आवश्यकता बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण और अन्य स्रोतों से मिलती है।
2016 में पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने यूएन जनरल एसेंबली में पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। ये सेरेमनी उस वक्त के यूएन के सेक्रेटरी जनरल बन की मून ने होस्ट की थी। इसके बाद भारत दूसरे विकासशील देशों पर पर्यावरण के लिए बेहतर कदम उठाने का दबाव बना सकता है और देशों को पेरिस समझौते के नये नियमों के मुताबिक, कार्बन उत्सर्जन पर रोक की बात तह सकता है।