सरकार ने माना कि इंटरनेट पर झूठे और भ्रामक खबरों से लड़े जा रहे हैं धर्मयुद्ध!
बेंगलुरू। सोशल मीडिया के जरिए सांप्रदायिक दंगा फैलने और मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं की बहुतायत को देखते हुए जल्द ही सोशल नेटवर्किंग साइटों की नियमन की संभावना बढ़ गई है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए एक हलफनामे में माना है कि इंटरनेट पर हेट स्पीच और हेट स्टोरीज के जरिए सांप्रदायिक दंगा भड़काने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट को दिए हलफनामे में केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया संस्थानों के कामकाज को निंयत्रित करने के नियमों को अंतिम रूप देने के लिए उससे तीन महीने का अतिरक्त समय की मांग की है। हलफनामे मे केंद्र सरकार की ओर से की गई टिप्पणी में कहा गया है कि इंटरनेट लोकतांत्रिक व्यवस्था में अकल्पनीय नुकसान पहुंचाने वाला शक्तिशाली हथियार बनकर उभरा है।
केंद्र सरकार की ओर से हलफनामा इलेक्ट्रानिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा पेश किया गया इसमें बताया गया कि प्रौद्योगिकी से आर्थिक तरक्की और सामाजिक विकास हुआ है, लेकिन नफरत भरे भाषणों, फर्जी खबरों और राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में भी बहुत वृद्धि हुई है। मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने सोशल मीडिया के जरिए हेट स्पीच और हेट स्टोरीज पर दिए हलफनामे को रिकॉर्ड पर ले लिया है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने गत 24 सितंबर को केंद्र सरकार को निर्देश दिया था कि वह ऑनलाइन निजता और राज्य की संप्रभुता के हितों को संतुलित करके सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के बारे में एक हलफनामा दायर करे। मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपक गुप्ता और अनिरुद्ध बोस की पीठ ने कहा था कि इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
उल्लेखनीय है सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को यह निर्देश फेसबुक इंक. द्वारा मद्रास, बॉम्बे और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में दाखिल उन याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने की याचिका दायर की है, जिसमें सोशल मीडिया अकाउंट्स को आधार से लिंक करने की मांग की गई है।
सुनवाई के दौरान जस्टिस गुप्ता ने मामले पर चिंता जाहिर करते हुए कहा था कि सोशल मीडिया का दुरुपयोग खतरनाक हो गया है और सरकार को जल्द से जल्द इस मुद्दे से निपटने के लिए कदम उठाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इंटरनेट के बारे में सोचने के बजाय देश के बारे में चिंता करना ज्यादा जरूरी है।
उन्होंने कहा कि यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता है कि तकनीक नहीं है बल्कि ऑनलाइन अपराधों के ओरिजन को ट्रैक करना जरूरी है। उनका कहना था कि अगर मूल निर्माताओं के पास हेट स्टोरीज को प्रसारित करने के लिए तकनीक है तो उसका मुकाबला करने की तकनीक है।
जस्टिस गुप्ता ने आगे कहा कि इंटरनेट पर नियमन करने की दायित्व कोर्ट्स का काम नहीं है। सरकारों को सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने होंगे, क्योंकि नीति बनाने का काम सरकारों द्वारा तय की जा सकती है। एक बार सरकार नीति बनाती है तो हम नीति की वैधता पर निर्णय ले सकते हैं, जिसमें निजता जैसे मुद्दों को विनियमित करने की आवश्यकता है। हलफनामे में केंद्र सरकार ने यह भी कहा है कि सूचना तकनीकी के चलते झूठे समाचारों में भारी वृद्धि हुई है।
गौरतलब है इलेक्ट्रानिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव पंकज कुमार की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया है कि लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था में इंटरनेट अकल्पनीय विनाश का शक्तिशाली हथियार बनकर उभरा है, ऐसे में लगता है कि इंटरनेट सुविधा प्रदान करने वाली कंपनियों के प्रभावी नियंत्रण के लिए नियमों में बदलाव की जरूरत है। इसमें लोगों के अधिकार और राष्ट्र की अखंडता, संप्रुभता और सुरक्षा को बढ़ते खतरे को ध्यान में रखा जाए।
हालांकि सोशल मीडिया कंपनियां का दावा करती हैं कि उनके पास आपत्तिजनक कंटेंट का पता लगाने और पता करके उसको ब्लॉक की क्षमता मौजूद है, लेकिन ऐसे कईयों उदाहरण मौजूद हैं जब इन कंपनियों की आर्टिफिशियल इंटलीजेंस (Artificial Intelligence) से लैस सारी ख़ुफ़िया टेक्नोलॉजी धरी की धरी रह जाती है और सोशल मीडिया के जरिए हेट स्पीच करने व हेट स्टीरीज का तांडव बेरोक-टोक इंटरनेट पर फैलते रहते हैं। बाद में ऐसे कंटेंट अथवा वीडियोज को बाद में ब्लॉक करने का कोई फायदा नहीं रह जाता है, क्योंकि तब तक ऐसे कंटेट वायरल हो चुके होते हैं और फिर इनका प्रसार नहीं रूक पाता है।
दरअसल, सोशल मीडिया कंपनियों द्वारा कंटेट के ब्लॉक किए जाने के बाद भी यूट्यूब, ट्विटर और ट्वीटर पर कंटेंट के फुटेज लगातार मौजूद रहते हैं, क्योंकि कंटेट्स की कॉपी, शेयरिंग और मैसेजिंग प्लेटफॉर्म पर बड़ी संख्या में पोस्ट हो चुके होते हैं। वैसे, इसके लिए अकेले सोशल मीडिया कंपनियां ही दोषी नहीं है बल्कि टीआरपी भूखी ब्रॉडकास्ट मीडिया की जिम्मेदारी भी तय करनी होगी जो किसी भी घटना को चटकारे लेकर पूरी दुनिया के सामने परोसती हैं।
अभी हाल ही में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर खट्टर ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद विवादास्पद बयान दिया था। अपने बयान में मनोहर खट्टर ने कहा था कि अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद अब कश्मीरी लड़कियों से शादी रचा सकेंगे। खट्टर के बयान के बाद ट्विटर पर प्रतिक्रिया की बाढ़ आग गई।
खट्टर के बयान का मतलब वह नहीं था, लेकिन ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया पर मौजूद शूरवीर लोगों द्वारा कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने के भारत सरकार मकसद और उसके मुद्दे को रास्ते से भटकाने की पूरी कोशिश की गई, जिसका खट्टर के बयान से कहीं से भी सरोकार नहीं था।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि टेक्नोलॉजी ने लोगों के हाथों में सूचना के प्रचार-प्रसार की ऐसी शक्ति सौंप दी है, जो समझने की शक्ति से कई गुना आगे है, क्योंकि किसी भी संदेश को मोबाइल फोन अथवा मैसेंजर के जरिए साझा करने वाला भले ही नहीं समझ पाए, लेकिन उसके एक बटन से सूचना और संदेश दूसरी ओर फॉरवर्ड जरूर हो जाता है, क्योंकि अभी सोशल मीडिया कंपनियों के पास ऐसा कोई मोड्यूल उपलब्ध नहीं है, जिससे सूचनाओं की मॉनीटरिंग की जा सके। यही कारण है कि बटन पर हाथ रखकर ऐसे अथाह संदिग्ध सूचनाएं सार्वजनिक प्लेटफॉर्म पर धड़ाधड़ डाले जा रहे हैं।
टेक्नोलॉजी ने एक दूसरा अस्त्र हमारे हाथ किया है, वह है गुमनामी का ब्रह्मास्त्र। ऑनलाइन Trollers इसी श्रेणी में आते हैं, जो अपने-अपने मसीहा के पीछे लग हर ऐसी चिंदी सूचना को कबाड़ तैयार करने में लग जाते है जो उनके मसीहा के अलापे गए सुर से सुर मिलाता हो। लेकिन अफसोस यह है कि सूचना से लबरेज इंटरनेट की दुनिया ऐसे भेड़ चाल मानसिकता पर अंकुश लगाने के बजाय उसे निरंतर बढ़ावा दे रही है। इसे कुछ लोग राष्ट्रवाद का उभार बताते हैं, जो असल में यह भेड़ चाल मानसिकता का पूरक है, जिसने सिर्फ चोला बदल लिया है।
आखिरी बात, इंटरनेट एक माध्यम है और यह वहीं परोसता है जो समाज उसको देता है। क्योंकि इंटरनेट की कोई अपनी छवि नहीं है, क्योंकि वह खुद हेट स्टोरीज और हेट स्पीचेज का रचियता नहीं है। यह काम सरकारों का ही कि वह समाज को कैसा तैयार कर रही है।
क्योंकि यदि समाज में ध्रुवीकरण है तो उसका प्रकटीकरण सोशल मीडिया पर होगा, क्योंकि सोशल मीडिया एक पब्लिक प्लेटफार्म है, जहां खूबसूरती और बदसूरती भी होगी औौर अच्छी बातों के साथ नफरत भी परोसी जाएगी। इतिहास गवाह हैं कि ऐसी सोच के चलते सामाजिक ध्रुवीकरण प्रायः धर्मयुद्ध की शक्ल अख्तियार कर लेती थी और ऐसे धर्मयुद्ध ट्विटर पर उड़ेल कर लोग चैन की नींद सो जाते हैं।
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