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पहली बार ग्लोबल मंदी की शिकार होती दिख रही है भारतीय अर्थव्यवस्था!

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Modi Government में जो हुआ ऐसा India में पहले कभी नहीं हुआ ? | वनइंडिया हिंदी

बेंगलुरू। पिछले कई ग्लोबल मंदी भारतीय अर्थव्यवस्था का बाल भी बांका नहीं कर पाईं थी, जिसके पीछे भारतीयों पारंपरिक बचत प्रोत्साहन का दिया जाता रहा है, क्योंकि बचत प्रोत्साहन ही वह कड़ी थी, जिससे ग्लोबाल मंदी का असर भारतीय बाजारों पर कम पड़ता था। क्योंकि आर्थिक सुधारों और बैंक रेपो दर के जरिए मंदी के असर भारतीय बाजार को छूकर निकल जाया करती थी, लेकिन इस बार की मंदी घातक नज़र आ रही है।

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इसका संकेत शुक्रवार को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में की गई कटौती से समझा जा सकता है। रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 0.25 की कटौती की घोषणा की, लेकिन शेयर बाजार पर इसका जरा भी असर नहीं पड़ा। उल्टा शेयर बाजार में हाहाकार मच गया।

मंदी के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आधार स्तंभ का काम करने वाले बचत प्रोत्साहन पर आरबीआई की रिपोर्ट और भी डराती है। वित्त वर्ष 2018-19 रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय परिवारों की बचत में भी भारी गिरावट आई है, जो सकल खर्च योग्य आय के 6.5 फीसदी तक लुढ़क गई है, यह बीते आठ सालों में दूसरा सबसे निचला स्तर है।

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गौरतलब है ऐसा पहली बार हुआ जब रेपो दर में कटौती की घोषणा के बाद शेयर बाजार में गिरावट में दर्ज की गई, जिससे निवेशकों को महज एक दिन में 1.43 लाख करोड़ रुपए का नुकसान झेलना पड़ा है जबकि इसके पहले शेयर बाजार में मंदी से निवेशकों को 4.5 लाख करोड़ रुपए का चूना लग चुका है। हालांकि इसके पीछे कई और कारण भी हो सकते हैं, लेकिन ग्लोबल मंदी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए इस बार शुभ संकेत लेकर नहीं आई है, जिसे शेयर बाजार में हालिया गिरावट के लिए उत्तरदायी माना जा सकता है।

शुक्रवार को बीएसई का सेंसेक्स 433.56 अंकों की गिरावट के साथ 37,673.31 पर बंद हुआ जबकि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी 139.25 अंकों की गिरावट के साथ 11,174.75 पर बंद हुआ। सेंसेक्स लगातार पांच सत्रों में अब तक कुल 1,316.43 अंक टूट चुका है।

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शुक्रवार को शेयर बाजार में बैंक, ऑटो और रियल्टी एस्टेट से जुड़े शेयरों में 5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। माना जा रहा हि विकास दर का अनुमान घटाए जाने के बाद बैंकिंग, ऑटो और रियल एस्टेट क्षेत्र के शेयरों में 5 फीसदी तक गिरावट आई है जबकि फेडरल बैंक के शेयर 3.82 फीसदी, कोटक महिंद्रा के 3.46 फीसदी, आईसीआईसीआई बैंक के 3.17 फीसदी एचडीएफसी बैंक के 2.79 फीसदी तक गिरे हैं।

बैंक इंडेक्स में 2.45 फीसदी की गिरावट आई है, जबकि रियल एस्टेट की कंपनियों के प्रेस्टीज एस्टेट प्रोजेक्ट के शेयर 5.28 फीसदी, इंडियाबुल्स के 3.61 फीसदी, डीएलएफ के 1.63 फीसदी टूटे हैं। वहीं, ऑटो कंपनियों में टाटा मोटर्स के 2.37 फीसदी, टीवीएस मोटर्स के 2.07 फीसदी, आयशर मोटर्स के 2.04 फीसदी और मारुति सुजुकी के शेयर 1.53 फीसदी टूट गए।

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उल्लेखनीय है शेयर बाजार में शुक्रवार को आई ताजा गिरावट से इक्विटी बाजार के निवेशकों के 4.5 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा डूब गए हैं। पिछले सप्ताह 27 सितंबर को आखिरी कारोबारी सत्र में बीएसई पर सूचीबद्ध कंपनियों का कुल बाजार पूंजीकरण 1 करोड़ 47 लाख 69 हजार 837 करोड़ रुपए थी, जो इस सप्ताह शुक्रवार को गिरकर 1 करोड़ 43 लाख 18 हजार 262 करोड़ रुपए पर आ गई। इस तरह बाजार पूंजीकरण में सीधे-सीधे 4 लाख 51 हजार 575 करोड़ रुपए की गिरावट दर्ज की गई है।

दरअसल, गुरूवार को कमजोर अंतरराष्ट्रीय संकेतों की वजह से शेयर बाजार में कारोबार की शुरुआत गिरावट के साथ हुई थी। कारोबार के दौरान दिन भर उतार-चढ़ाव रहा और अंत में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) का सेंसेक्स 198 अंक की गिरावट के साथ 38,107 पर बंद हुआ और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) का निफ्टी भी 47 अंक गिरकर 11,313.10 पर बंद हुआ था।

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ऐसा माना जा रहा था की शुक्रवार को रिजर्व बैंक द्वारा मुख्य ब्याज दर में कटौती किए जाने की घोषणा के बाजार में रौनक लौटेगी, लेकिन ब्याज दर में कटौती होने की घोषणा के बाद से ही बाजार में बिकवाली शुरू हो गई और आखिर तक सेंसेक्स में गिरावट का स्तर बढ़ता ही गया।

रिजर्व बैक ने चालू वित्त वर्ष की चौथी दोमाही मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर में 0.25 फीसदी की कटौती कर इसे 5.15 फीसदी करने की घोषणा की। ब्याज दर में कटौती के बाद बैंकों के लोन की दर भी घटने की उम्मीद है, जिससे आम आदमी के लिए लोन की मासिक किस्त में भी कमी आने का अनुमान है।

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हालांकि आरबीआई ने चालू वित्त वर्ष के लिए देश का विकास अनुमान 6.9 फीसदी से घटाकर 6.1 फीसदी कर दिया यह बड़ी कटौती है। हालांकि वित्त वर्ष 2020-21 के लिए जीडीपी का अनुमान 7.2 फीसदी रखा गया है। माना जा रहा है कि रिजर्व बैंक द्वारा विकास अनुमानन 6.9 फीसदी से 6.1 फीसदी किए जाने से निवेशकों को आर्थिक मोर्चे पर भारतीय अर्थव्यवस्था के हालात खराब होने का संकेत गया होगा, जो बाजार में गिरावट का एक बड़ा कारण हो सकता है।

भारतीय रिजर्व बैंक वित्त वर्ष 2018-19 की रिपोर्ट में कह चुकी है कि भारतीय अर्थव्यवस्था चक्रीय मंदी के दौर से गुजर रही है, लेकिन केंद्रीय बैंक ने संरचनात्मक मंदी (स्ट्रक्चरल स्लोडाउन) से इनकार किया था, लेकिन रेपो दर में कटौती के बाद शेयर बाजार गिरावट संकेत है कि मौजूदा ग्लोबल स्लो डाउन पिछले स्लो डाउन से अधिक खतरनाक हो सकता है।

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रिजर्व के इसी रिपोर्ट के अनुसार भारतीय परिवारों की वित्तीय देनदारी वर्ष 2011-12 के बाद सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई है, जो यह साफ संकेत करता है कि लोगों के बचत प्रोत्साहन में सेंध लगी है। क्योंकि वित्त वर्ष 2017-18 की ग्रॉस नेशनल डिस्पोजल इनकम यानी (GNDI) सकल खर्च योग्य आय का 4.3 फीसदी तक चढ़ गई है। साथ ही, भारतीय परिवारों की बचत में भी भारी गिरावट आई है। यह सकल खर्च योग्य आय के 6.5 फीसदी तक लुढ़क गई है, क्योंकि वित्त वर्ष 2016-17 में यह दर 6.2 फीसदी पर था।

यह भी पढ़ें- टैक्स पर भी आर्थिक मंदी का बुरा असर, डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में आई भारी गिरावट

कमजोर वित्तीय नतीजे भी हो सकते हैं कारक

कमजोर वित्तीय नतीजे भी हो सकते हैं कारक

जून तिमाही में ज्यादातर कंपनियों के परिणाम अच्छे नहीं रहे हैं। कई कंपनियो का प्रदर्शन उम्मीद से खराब रहा है। इससे शेयर बाजार के निवेशकों को मायूसी हुई है। अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने साल 2008 की मंदी के बाद पहली बार ब्याज दरें घटाई। अमेरिकी फेड के इस फैसले का असर भारतीय शेयर बाजार में देखने को मिल रहा है। फेडरल रिजर्व ने 2008 के बाद से बुधवार को पहली बार ब्याज दर में 0.25 फीसदी की कटौती की। फेड ने निकट भविष्य में भी ब्याज दरों में कटौती की बात कही। डॉलर के मजबूत होने का भी बाजार पर असर पड़ा है।

विदेशी निवेशकों की ओर से बिकवाली बढ़ी

विदेशी निवेशकों की ओर से बिकवाली बढ़ी

बजट में अमीरों पर टैक्स बढ़ाने की घोषणा के बाद से बाजार से विदेशी निवेशक अपना पैसा निकाल रहे हैं। जुलाई से एक अगस्त तक विदेशी निवेशकों ने 16,000 करोड़ की निकासी की है। वैश्विक बाजारों में भी गिरावट का रुख रहा। अमेरिका, यूरोप समेत एशियाई बाजारों में गिरावट रही। इसका असर भारतीय बाजार पर भी हुआ।

 चार साल में सबसे निचले स्तर पहुंचा बुनियादी उद्योग

चार साल में सबसे निचले स्तर पहुंचा बुनियादी उद्योग

जून महीने में आठ बुनियादी उद्योग की वृद्धि दर मात्र 0.2 फीसदी दर्ज की गई थी। बुनियादी उद्योग का यह प्रदर्शन चार साल का सबसे निचला स्तर है। इससे शेयर बाजार की धारणा प्रभावित हुई और गिरावट तेजी से बढ़ी है। हालांकि ग्लोबल मंदी भी एक बड़ा कारण है।

बजट के बाद 200 अरब डॉलर पूंजी डूबी

बजट के बाद 200 अरब डॉलर पूंजी डूबी

बीएसई का पूंजीकरण बजट के बाद से 200 अरब डॉलर घट गया है। बजट पेश होने के दिन बीएसई का पूंजीकरण 1,52,55,451 करोड़ था जो एक अगस्त को घटकर 1,39,87,400 करोड़ रह गया। बजट में अमीरों पर कर बढ़ाने के फैसले के बाद विदेशी निवेशकों की ओर से की जा रही बिकवाली के कारण बाजार पूंजीकरण घटा है।

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English summary
Indian economy first time in the history seen slow down due to global recession.Indian economy was always in safe hand due to saving habit of their people but earlier RBI report says Indian saving habit gradually being changed.
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