Integral part of India: अब नहीं तो कब गिलगित और बाल्टिस्तान के बारे में सोचेगा भारत?
बंगलुरू। जम्मू-कश्मीर राज्य से विशेष राज्य का दर्जा छिनने के बाद धीरे-धीरे ही सही, लेकिन पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर कब्जा वापस पाने की बहस देश में छिड़ चुकी है। पीओके और अक्साई चीन के भविष्य पर चर्चा इसलिए भी बहुत जरूरी है, क्योंकि पीओके का हिस्सा गिलगित और बाल्टिस्तान विश्व में एकमात्र ऐसा स्थान है, जो अफगानिस्तान, तजाकिस्तान, पाकिस्तान और तिब्बत के बार्डर से सीधे-सीधे जुड़ा हुआ है। भारत की व्यापारिक और सामरिक दोनों दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण गिलगित और बाल्टिस्तान में अधिकांश जनसंख्या शिया मुसलमानों की है, जो पूर्णतयता पाक विरोधी माने जाते हैं और आज भी वो अपनी लड़ाई खुद लड़ रहे हैं।
सामरिक दृष्टि से भारत के लिए महत्वपूर्ण है पीओके
जम्मू कश्मीर की महत्ता जम्मू और कश्मीर क्षेत्र से कम, लद्दाख से अधिक जुड़ी हुई है और गिलगित-बाल्टिस्तान पर कब्जा पाए बिना यह संभव नहीं है। इतिहास गवाह है यूनानियों से लेकर शक, हूण, कुषाण, मुग़लों तक हुए सभी आक्रमण गिलगित से हुए। यही कारण था कि पूर्ववर्ती राजाओं ने भारत को सुरक्षित रखने के लिए दुश्मनों को हिंदूकुश अर्थात गिलगित-बाल्टिस्तान के पार ही रखा।
गिद्ध की तरह निगाह लगाए हुए है चीन
यही वजह थी किसी समय गिलगित में अमेरिका बैठना चाहता था, ब्रिटेन भी गिलगित में बेस बनाना चाहता था। यही नहीं, रूस भी गिलगित में बैठना चाहता था और तो और वर्ष 1965 में पाकिस्तान ने गिलगित रूस को देने का वादा तक कर लिया था। आज चाइना गिलगित पर गिद्ध की तरह निगाह लगाए हुए है और अपने पैर भी लगभग पसार चुका है, लेकिन दुर्भाग्य से गिलगित के महत्व को हिंदुस्तान भूल चुका है। क्योंकि पिछले 70 वर्षों में पीओके पर भारतीय हुक्मरान जरा सा भी संजीदा नहीं दिखे हैं।
कई देशों में हो सकेगी सड़क मार्ग से यात्रा
भारत आज आर्थिक शक्ति बनने की सोच रहा है। गिलगित पर कब्जा वापस हासिल होते ही विश्व के अधिकांश कोनों में सड़क मार्ग से जाया जा सकेगा। सड़क मार्ग के जरिए गिलगित से दुबई की दूरी कुल 5000 किमी है, दिल्ली 1400 किमी, मुंबई 2800 किमी रूस 3500 किमी चेन्नई 3800 किमी और लंदन 8000 दूरी पर है।
कहते हैं जब भारत सोने की चिड़िया कहलाती थी तो इन्हीं रास्तों से सारा व्यापार होता था, क्योंकि 85 % जनसंख्या इन्हीं रास्तों से जुड़ी हुई थी और सेंट्रल एशिया, यूरेशिया, यूरोप, अफ्रीका तक की यात्रा सड़क मार्ग से तय होते थे। पाकिस्तान के कब्जे से पीओके वापस मिलते ही भारत सरकार को ईरान से आने वाले गैस पाइन लाइन के लिए पाकिस्तान की इजाजत की भी जरूरत नहीं होगी।
गिलगित-बाल्टिस्तान में भरा है मिनल्स का खजाना
79000 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैला पाकिस्तान कब्जे वाले पीओके में कश्मीर क्षेत्र का हिस्सा सिर्फ 6000 वर्ग किमी है और इसमें जम्मू का हिस्सा महज 9000 वर्ग किमी है जबकि 64000 वर्ग किमी हिस्सा लद्दाख का है, जो गिलगित-बाल्टिस्तान तक फैला हुआ है, भौगोलिक दृष्टि से यह कभी भी कश्मीर का हिस्सा नहीं रहा। हिमालय की 10 बड़ी चोटियों में से 8 चोटियां गिलगित-बाल्टिस्तान में मौजूद हैं, जहां यूरेनियम और सोने की सैकड़ों बड़ी खदानें हैं।
पिछले 70 वर्षों में नहीं हुआ कोई सार्थक प्रयास
माना जाता है कि पाक अधिकृत कश्मीर पर पुनः कब्जे के लिए पूर्ववर्ती सरकारों ने ज्यादा कुछ नहीं किया। सबसे अधिक हिंदुस्तान की सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस सरकार ने कभी गिलगित-बाल्टिस्तान को वापस भारत में मिलाने के लिए कोई सार्थक प्रयास तक नहीं किया। वर्ष 1998 में पहली बार सत्ता में आई अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने मुद्दे को जरूर गर्माया, लेकिन मुद्दा फिर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने से बढ़ी उम्मीद
हालांकि वर्ष 2014 में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता तक पहुंची नरेंद्र मोदी सरकार में विदेश मंत्री रही दिवंगत सुषमा स्वराज ने पीओके का मसला संसद में उठाकर अपनी नीयत साफ कर दी थी और अगस्त, 2019 में पूरे 70 वर्ष बाद जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 और 35ए का हटाकर संकेत दे दिया है कि मोदी सरकार का अगला कदम पीओके की स्वतंत्रता के लिए उठ सकता है।
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