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बंदर मारिए इनाम पाइए, लेकिन कोई तैयार नहीं

वो कहती हैं, "बंदर को हिंदू धर्म में हनुमान का रूप माना जाता है. लोग कहते हैं कि वो धार्मिक हैं और बंदरों की सेवा करते हैं. ये भी बंदरों की संख्या कम नहीं होने का एक कारण है."

शिमला में वाइल्ड लाइफ़ विभाग के डॉ. संजय रतन बताते हैं कि बंदरों को वर्मिग कैटेगरी में रखने के बाद भी इसका हिमाचल प्रदेश मे कोई ख़ास असर नहीं दिखा है.

वो कहते हैं, "सरकार की सभी कोशिशों के बावजूद अभी तक बंदरों को मारने के सिर्फ़ 5 ही मामले सामने आए हैं."

By BBC News हिन्दी
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शिमला में बंदर
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शिमला में बंदर

हिमाचल प्रदेश में बंदरों का आतंक इतना बढ़ चुका है कि इसका असर खेती पर दिखने लगा है. यहां के कई किसानों ने बंदरों से त्रस्त होकर खेती छोड़ने का फ़ैसला किया है.

बंदरों का डर इतना अधिक है कि इन्हें मारना भी कानूनन मान्य कर दिया गया है. हालांकि लोग विभिन्न कारणों से अब भी इन्हें मारना नहीं चाहते.

साल 2014 में आई कृषि विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ बंदरों की वजह से फसलों को सालाना 184 करोड़ रुपये का नुक़सान हो रहा है.

हिमाचल किसान सभा के अध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तंवर ने बीबीसी को बताया, "खेती को लेकर पहले ही समस्याएं कम नहीं हैं, कभी पानी की दिक़्क़त होती है तो कभी बारिश के कारण मुश्किल होती है. लेकिन अब बंदरों के कारण भी ये घाटे का सौदा साबित हो रही है. बंदर यहां किसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गए हैं. किसानों की पूरी ताक़त फसलों को बंदरों से बचाने में लग रही है."

वो कहते हैं, "हर साल हिमाचल प्रदेश के कृषि क्षेत्र में बंदरों की वजह से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर करोड़ों रुपये की फसल का नुक़सान हो रहा है. यहां करीब 6.5 लाख हैक्टेयर ज़मीन है जिसमें से क़रीब 75 हजार हैक्टेयर ज़मीन बंदरों और जंगली जानवरों के कारण लोगों ने बंजर छोड़ दी है."

जिला बिलासपुर के बरोग गांव के किसान चेंगू राम ठाकुर
Pankaj Sharma/BBC
जिला बिलासपुर के बरोग गांव के किसान चेंगू राम ठाकुर

ज़िला बिलासपुर के बरोग गांव के किसान चेंगू राम ठाकुर बताते कि बंदर आम आदमी के साथ फसलों का भी बड़ा नुकसान करते हैं.

वो कहते हैं, "बंदर फसलों को खाते हैं और साथ ही फसल ख़राब भी करते हैं. बंदरों के कारण घर से दूर के खेतों में हमें लगातार पहरा देना पड़ता है जो मुश्किल होता है, इसीलिए हमने ज़मीन को बंजर छोड़ दिया है."

किसान चेंगू राम ठाकुर बताते हैं, "एक दिन हमारे खेत में 40-50 लंगूर आए और वो पास में मौजूद एक टावर पर चढ़ गए. वो सारी रात वहीं टावर पर ही रहे और उन्होंने हमारे खेतों को तबाह कर दिया. सूअरों की समस्या भी है यहां पर लेकिन उनसे हम निपट लेते हैं. नीचे जंगलों से सटे इलाकों में खेती करना छोड़ दिया है."

हिमाचल के प्रधान मुख्य अरण्यापाल डॉ. रमेश चंद कंग
Pankaj Sharma/BBC
हिमाचल के प्रधान मुख्य अरण्यापाल डॉ. रमेश चंद कंग

कम ही नहीं होती बंदरों की संख्या?

हिमाचल के मुख्य अरण्यापाल डॉ. रमेश चंद कंग का मानना है कि शहरों में ठोस कचरे का निपटारा सही ढंग से ना होने के कारण कूड़ेदानों के आस-पास बंदरों को आसानी से खाना मिल जाता है.

वो कहते हैं, "बंदर जंगल छोड़ कर शहरों में बस गए हैं. वो 20-25 बंदरों के दलों में ही चलते हैं जिस कारण दहशत रहती है. यहां खुले कूड़ेदान और मंदिरों में खाना डालना मुख्य समस्या है."

गांव की स्थिति के बारे में वो बताते हैं, "पहले लोग मिलजुल कर खेती करते थे और जानवरों से फसलों के बचाव के लिए एक-दूसरे की मदद करते थे. लेकिन आज खेती करने के तौर-तरीक़े बदल गए हैं. बंदर ऐसी जगहों पर जाकर फसलों को बर्बाद कर रहे हैं जहां कम रखवाली होती है. आज कहने को फसलों की पैदावार बढ़ी है लेकिन बंदरों के कारण सीधा नुक़सान भी किसानों को ही हुआ है."

शिमला में बंदर
Pankaj Sharma/BBC
शिमला में बंदर

शिमला शहर के अलावा हिमाचल प्रदेश के कुल 75 तहसीलों और 34 सब तहसीलों में से 53 में बंदर को वर्मिन कैटेगरी में शामिल किया गया है. इसमें उन जानवरों को शामिल किया जाता है जिससे संपत्ति को नुक़सान हो, बीमारी फैलने का ख़तरा हो और जब वो मानव जीवन के लिए ख़तरा बन जाएं. साल 2016 में ये घोषणा की गई थी. फिलहाल 2018 के अंत तक ही बंदरों को वर्मिन माना गया है.

इसके तहत यहां किसानों को बंदरों को मारने की इजाज़त है. तत्कालीन वन मंत्री ठाकुर सिंह भारमौरी ने सितंबर 2016 में बंदरों के मारने पर किसानों को 500 रुपये (प्रति बंदर) का इनाम देने की भी घोषणा की. साथ ही नसबंदी के लिए बंदर पकड़ने के लिए राशि को 700 रुपये रखा गया.

शिमला नगरनिगम की मेयर कुसम सदरेट
Pankaj Sharma/BBC
शिमला नगरनिगम की मेयर कुसम सदरेट

शिमला नगर निगम की मेयर कुसम सदरेट कहती हैं कि सरकार ने पैसे देने की घोषणा की लेकिन लोगों ने एक भी बंदर नहीं मारा.

वो कहती हैं, "बंदर को हिंदू धर्म में हनुमान का रूप माना जाता है. लोग कहते हैं कि वो धार्मिक हैं और बंदरों की सेवा करते हैं. ये भी बंदरों की संख्या कम नहीं होने का एक कारण है."

शिमला में वाइल्ड लाइफ़ विभाग के डॉ. संजय रतन बताते हैं कि बंदरों को वर्मिग कैटेगरी में रखने के बाद भी इसका हिमाचल प्रदेश मे कोई ख़ास असर नहीं दिखा है.

वो कहते हैं, "सरकार की सभी कोशिशों के बावजूद अभी तक बंदरों को मारने के सिर्फ़ 5 ही मामले सामने आए हैं."

बंदरों की संख्या पर काबू करने की कोशिश

शिमला में वाइल्डलाइफ विभाग के डॉ. संजय रतन
Pankaj Sharma/BBC
शिमला में वाइल्डलाइफ विभाग के डॉ. संजय रतन

डॉ. संजय रतन बताते हैं कि साल 2015 में किए गए एक सर्वे के अनुसार हिमाचल प्रदेश में बंदरों की संख्या करीब 2,07,000 थी.

पिछले 12 साल से बंदरों पर काम कर रहे डॉ. संजय रतन का कहना है कि बंदरों की संख्या कम करने के लिए फरवरी 2007 में सबसे पहले नसबंदी अभियान चलाया गया था.

वो बताते हैं, "इससे पहले हर साल बंदरों की ग्रोथ रेट करीब 21.4 फीसदी थी. एक बंदर की औसत आयु करीब 25 से 30 साल तक होती है. नसबंदी से इनकी जनसंख्या में काफी कम हुई है. सिर्फ़ हिमाचल में बंदरों के मास स्टेरिलाइज़ेशन का कार्यक्रम चलाया गया था. हमने अब तक करीब 1,43,000 बंदरों की नसबंदी की है. अगर ऐसा नहीं किया जाता तो इनकी संख्या आज छह से सात लाख तक हो सकती थी."

हिमाचल में बंदर
Pankaj Sharma/BBC
हिमाचल में बंदर

बदल रहा है बंदरों का व्यवहार

वन्य जीव जानकारों का मानना है कि कूड़ेदान और घरों के बाहर आसानी से खाना मिल जाने के कारण बंदरों के व्यवहार में भी बड़ा बदलाव आया है और अब उनके इंसानों पर हमला करने के भी अधिक मामले सामने आ रहे हैं.

डॉ. संजय कहते हैं, "बंदर अब केवल जंगल में पैदा होने वाले फल नहीं खा रहे बल्कि वो उस खाने पर निर्भर करने लगे हैं जो उन्हें कूड़े से मिलता है. इसका असर उनके शरीर पर भी पड़ रहा है, वो पहले से अधिक मोटे और जल्द जवान हो रहे हैं. उनकी प्रजनन क्षमता भी कम उम्र में ही विकसित हो रही है."

शिमला में मौजूद इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज में बंदर के काटने और हमले के पीड़ित मरीज रोज़ाना आते हैं.

अजय कुमार
Pankaj Sharma/BBC
अजय कुमार

संजौली के अजय कुमार ने बीबीसी को बताया एक बार जब वो ख़रीदारी करने बाज़ार गए थे, बंदरों ने उन पर हमला किया था.

वो कहते हैं, "अचानक हुए इस हमले से मैं इतना डर गया कि अब अकेले बाहर जाने में डर लगता है."

मेडिकल कॉलेज में मेरी मुलाक़ात 10 साल के पारस से हुई जो टिटनस का इंजेक्शन लगवाने पहुंचे थे. शिमला के रहने वाले पारस का कहना है, "मैं सब्ज़ी लेने गया था. वहां दो बंदरों में मुझ पर हमला किया."

बंदरों को लेकर राजनीति

हिमाचल प्रदेश में बंदरों को लेकर हमेशा राजनीतिक दलों में भी खींचतान चलती रही है. चुनावों के वक़्त हर पार्टी के घोषणापत्र में बंदरों से मुक्ति के तरीक़े एक बड़ा मुद्दा रहता है. लेकिन कोई भी सरकार अब तक इस समस्या से पूरी तरह निपटाने में कामयाब नहीं हुई है.

हिमाचल में बंदर
Pankaj Sharma/BBC
हिमाचल में बंदर

शिमला नगर निगम की मेयर कुसम सदरेट कहती हैं कि शिमला में बंदरों की समस्या एक गंभीर चुनौती बन गई है.

वो कहती हैं, "नगर निगम इसके लिए लगातार कोशिशें कर रहा है कि कैसे लोगों को जागरूक किया जाए. हम लोगों को बंदरों को खाना नहीं देने की सलाह देने के साथ-साथ कूड़ादानों से जल्दी कूड़ा उठाने की कोशिश भी करते हैं."

वो कहती हैं, "वर्मिन कैटेगरी में होने के बावजूद भी लोग इन्हें खाना खिलाते हैं और इन्हें नहीं मारते. इस कारण बंदरों की समस्या घटने के बजाय बढ़ रही है."हिमाचल प्रदेश एक पहाड़ी प्रदेश है और यहां ज्यादातर लोगों के लिए खेती रोज़गार का एक बड़ा ज़रिया है. बंदरों और जंगली जानवरों के कारण फसलों को नुक़सान की वजह से प्रदेश के किसानों की जेब पर भारी असर पड़ रहा है.

साल 2011 की जनगणना की मानें तो हिमाचल प्रदेश की जनसंख्या 68,64,602 है. इसकी तुलना में राज्य में बंदरों की संख्या 2,07,000 है.

हिसाब करें तो बंदर और इंसान का अनुपात 33:1 है. ये आंकड़ा अपने आप में समस्या की गंभारता को दर्शाने के लिए काफी है.


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