क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

इतिहास के पन्नों से- जब कानून और संविधान से उपर उठी इंदिरा गांधी

Google Oneindia News

नई दिल्ली। इंदिरा गांधी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री है उन्हें उनकी सशक्त छवि के लिए आज भी याद किया जाता है। लेकिन उनके कार्यकाल में आपातकाल को आज भी देश का काला समय माना जाता है। 25 जून 1975 में जब देश में आपातकाल की घोषणा की गयी थी तो कई नेताओं सहित देश के लगभत सभी महत्वपूर्ण महकमें की आजादी को पूरी तरह छीन लिया गया था।

indira gandhi

क्या थी वजह- चुनाव में धांधली

इंदिरा गांधी पर चुनाव के दौरान धांधली का आरोप लगा था। जिसपर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मुहर लगायी थी। कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी जिसपर कोर्ट ने गांधी को तत्कालीन राहत देते हुए स्टे लगा दिया था।

लेकिन इस दौरान वह सिर्फ एक सांसद रह सकती हैं और संसद के अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं। कोर्ट के इस फैसले के बाद आपातकाल लगने की पहली शुरुआत हुई। वहीं जेपी आंदोलन इस समय अपने चरम पर था, इस आंदोलन के जरिए इंदिरा से इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद उनका इस्तीफा मांगा गया।

इंदिरा के सामने हुआ कानून हुआ बौना

25 जून को देश के हर राज्य को संविधान की नहीं बल्कि इंदिरा गांधी के आदेशों का पालन करने के लिए कहा गया। तत्कालीन नेताओं ने इंदिरा पर अपने अधिकारों के दुरउपयोग का आरोप लगाया था।

हर विरोध की आवाज हुई गिरफ्तार

इस आपातकाल में संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत इंदिरा गांधी को असाधारण ताकत दे दी थी। इसके जरिए उन्होंने पुलिस का अपनी इच्छानुसार इस्तेमाल किया। इस दौरान अटल बिहारी वाजपेयी, जेपी, मोरारजी देसाई, एलके आड़वाणी सहित कई लोगों को गिरफ्तार करके जेल के पीछे डाल दिया गया था।

यही नहीं जिस भी जगह इंदिरा के खिलाफ प्रदर्शन हुए उन लोगों को गिरफ्तार किया गया। कहा यह भी जाता है कि इस दौरान जेल के भीतर लोगों को इस कदर प्रताड़ित किया गया कि उनकी मौत भी हो गयी थी।

राज्य और केंद्र के चुनावों को खारिज कर दिया गया

आपातकाल में नसबंदी का अभियान चलाया गया, इस दौरान इंदिरा के बेटे संजय गांधी ने नसबंदी अभियान चलाया। उस समय की मीडिया खबरों की मानें तो संजय ने इस अभियान के तहत लोगों की जबरदस्ती नसबंदी करायी। यही नहीं अविवाहित लोगों की भी नसबंदी करायी गयी थी।

हर विरोध की आवाज पर लगी पाबंदी, मीडिया या तो इंदिरा का समर्थन या खामोश

आपाताकाल में देश के हर अखबार को इंदिरा के खिलाफ लिखने पर सख्त पाबंदी लगा दी गयी थी। अखबार, टीवी, रेडियो, मैगजीन सहित सभी माध्यमों पर पूरी तरह से रोक लगा दी गयी थी। इस दौरान इंडियन एक्सप्रेस ने अपने संपादकीय पेज को खाली छोड़ दिया था। जबकि फाइनेंसिल एक्सप्रेस में रवींद्रनाथ टैगोर के कविता को छापा गया था। जहां दिमाग में कोई भय नहीं है और सर हमेशा उंचा है।

कानून बना इंदिरा की हाथ की कठपुतली

आपातकाल में इंदिरा गांधी ने कई कानूनों में संसोधन किया। कांग्रेस के पास दो तिहाई बहुमत था जिसके चलते उनको संविधान में संसोधन का अधिकार प्राप्त हो गया था। गांधी ने कानून की उन धाराओँ में भी परिवर्तन कर दिया जो उनके लिए खतरा साबित हो सकती थी।

वहीं उन्होंने उन राज्यों में भी राष्ट्रपति शासन लगाने की बी संस्तुति की जहां कांग्रेस के खिलाफ पार्टियों की सरकार थी। संविधान में 42वां संसोधन इस आपातकाल का काला संसोधन कहा जाता है।

Comments
English summary
Get to know the Dark phase of indian history Indira Gandhi's Emergency, When India overruled all the power in her favor.
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X