राहुल की जगह सुशील शिंदे बन सकते हैं कांग्रेस अध्यक्ष, 'फर्स्ट फैमिली' की मुहर?
नई दिल्ली- राहुल गांधी के इस्तीफे को लेकर कांग्रेस में जारी ड्रामा का अबतक कोई हल नहीं निकल पा रहा है। इस बीच ऐसी खबरें सामने आ रही हैं कि पार्टी लीडरशिप पूर्व गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे को कमान सौंपने के लिए तैयार है। हालांकि, राहुल गांधी की जगह को भरने के लिए कुछ और नेताओं के नाम पर भी विचार हो रहा है। लेकिन, माना जा रहा है कि शिंदे ने शनिवार को इसी सिलसिले में राहुल से मुलाकात की है और अगर वे उनके नाम पर तैयार हैं, तो समझा जाएगा कि उनके नाम पर 'फर्स्ट फैमिली' की मुहर है।
शिंदे के नाम पर सब राजी?
संडे गार्जियन लाइव की खबरों के मुताबिक कांग्रेस की 'फर्स्ट फैमिली' और उनके मुख्य सिपहसलारों में इस मुद्दे पर आम राय है कि राहुल गांधी की जगह पार्टी की जिम्मेदारी ऐसे नेता को दी जाए, जो पार्टी के प्रति वफादार रहे। इसलिए, ऐसे नेता के नाम में सुशील कुमार शिंदे की बात हो रही है, जिनकी महत्वाकांक्षाओं ने कभी भी लीडरशिप को परेशानी में नहीं डाला है। उन्होंने हमेशा ही पार्टी की सर्वोच्च सत्ता के आदेशों का एक-एक शब्द पालन किया है। पार्टी ने उन्हें भैरों सिंह शेखावत के मुकाबले उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार भी बनाया था और विलासराव देशमुख को फिर से महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने के लिए उन्हें गवर्नर बनाकर आंध्र प्रदेश भी भेज दिया था। शिंदे ने कभी आलाकमान के इन फैसलों की वजह पूछने तक की कोशिश नहीं की और सिर्फ आदेशों को तामील करते चले गए। केंद्र में भी उन्हें ऊर्जा से लेकर गृहमंत्री तक बनाया गया और उन्होंने पूरी तरह से पार्टी और 'परिवार' के प्रति वफादारी निभाई।
शिंदे के पक्ष में परिस्थतियां?
शिंदे इसबार लोकसभा चुनाव हार गए हैं। लेकिन, इस साल होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के मद्देनजर पार्टी के भीतर उनकी किस्मत चमकने की ज्यादा संभावना लग रही है। उनके पक्ष में उनका दलित होना भी एक बहुत बड़ा कारण हो सकता है। इसके अलावा एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार के साथ भी उनके बहुत ही अच्छे संबंध हैं। उनके द्वारा कांग्रेस एक दांव यह भी चल सकती है कि पवार के साथ उनके निजी ताल्लुकातों के दम पर एनसीपी को कांग्रेस में विलय करवाने का प्रयास किया जाय। क्योंकि, ऐसा होने पर लोकसभा में कांग्रेस को मुख्य विपक्षी दल का दर्जा मिल सकता है। हालांकि, यह इतना आसान नहीं है, क्योंकि पवार बहुत ही पहुंचे हुए नेता हैं और माना जा रहा है कि इसकी एवज में वे अपनी बेटी सुप्रिया सुले के लिए महाराष्ट्र में प्रदेश अध्यक्ष और फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी तक मांग सकते हैं।
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इन नेताओं के भी उछाले जा रहे हैं नाम
अगर किसी वजह से शिंदे का नाम अटक गया, तो मल्लिकार्जुन खड़गे, गुलाम नबी आजाद, अशोक गहलोत, जनार्दन द्विवेदी और एके एंटनी से लेकर मुकुल वासनिक तक को अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा है। खबरों के मुताबिक सोनिया गांधी के एक करीबी नेता ने गहलोत के नाम की सिफारिश की है और उनकी जगह सचिन पायलट को राज्यस्थान का मुख्यमंत्री बनाए जाने की सलाह दी है। लेकिन, जानकारों की राय में किसी युवा नेता को एक बड़े राज्य का सीएम बनाना राहुल गांधी के सियासी हक में भी नहीं है और 'फर्स्ट फैमिली' शायद इस पर विचार करने के लिए भी तैयार नहीं हो। खड़गे पिछले पांच साल तक लोकसभा में कांग्रेस के नेता थे, इसबार वे भी चुनाव हार चुके हैं, लेकिन फिर भी उनका नाम पार्टी अध्यक्ष के लिए लिया जा रहा है। जहां तक आजाद का सवाल है, तो कांग्रेस शायद ही उनके नाम पर मुहर लगाने की हिम्मत दिखा पाए, क्योंकि इससे बीजेपी को ही फायदा मिलने की संभावना बढ़ सकती है। जबकि, एंटनी और द्विवेदी जैसे नेताओं ने खुद को अभ सक्रिय राजनीति से एक तरह से दूर ही कर रखा है।
कांग्रेस के लिए जल्द फैसला लेना क्यों जरूरी?
ऐसी अपुष्ट खबरें हैं कि राज्यसभा में पार्टी के एक बड़े नेता और पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री की पत्नी बीजेपी के बड़े नेताओं के साथ संपर्क में हैं और कई मीटिंग भी कर चुके हैं। यानी कयास लगाए जा रहे हैं कि कुछ लोग कांग्रेस के जहाज को छोड़कर बीजेपी में छलांग भी लगा सकते हैं। इसीलिए कांग्रेस लीडरशिप के सामने अध्यक्ष पद की स्थिति जल्द साफ करने के अलावा कोई उपाय नहीं है। जिस तरह से पार्टी के छोटे नेताओं ने 2019 के लोकसभा चुनावों में हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे की झरी लगानी शुरू की है, उससे बड़े नेताओं पर भी दबाव बढ़ गया है। मजे की बात है कि जिस गैर-निर्वाचित कांग्रेस वर्किंग कमिटी को राहुल गांधी के इस्तीफे पर अंतिम फैसला लेना है या नए अध्यक्ष के नाम पर मुहर लगानी है,उसके एक भी सदस्य ने अभी तक अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया है।
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